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उनके जीवन काल में संपत्ति के नाम पर उनके पास क्या था? विरासत के नाम क्या, जिस पर आने वाली पीढ़ियां अपना दावा करतीं? महामना मदन मोहन मालवीय का जीवन देश और शिक्षा को समर्पित था. आजादी की लड़ाई में भागीदारी और उनकी खड़ी की हुई बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (बीएचयू) ही जिंदगी का कुल सरमाया थी. इस सरमाया पर किसकी दावेदारी होती? यह तो सबका था. पूरे देश का था. उन्होंने ऐसा जीवन भी नहीं जिया, जो सिर्फ अपने परिवार तक सीमित होता. लेकिन आज उनके नाम की विरासत पर दावेदारी को लेकर पीढ़ियों में तकरार हो रही है.
परिवार में आपसी तकरार पहले भी रही होगी, लेकिन उन्हें भारत रत्न दिए जाने की घोषणा के साथ ही यह सतह पर आ गई. विवाद इस बात को लेकर था कि राष्ट्रपति के हाथों यह सम्मान कौन ग्रहण करेगा? परिवार की सबसे बड़ी बहू 92 वर्षीया सरस्वती मालवीय ने सक्वमान पर अपना दावा ठोक दिया. कुछ ही दिनों में यह विवाद राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की चौखट तक जा पहुंचा, जब सरस्वती मालवीय ने उन्हें पत्र लिखकर उनका ध्यान महामना के वसीयतनामे की ओर दिलाया. उन्होंने दावा किया कि महामना मालवीय ने वर्ष 1942 में लिखे वसीयतनामे में अपने सबसे बड़े बेटे रमाकांत मालवीय को ही अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था. अगले ही साल 1943 में रमाकांत की असामयिक मृत्यु के बाद नए वसीयतनामे में उनके बेटे श्रीधर मालवीय को उत्तराधिकारी घोषित किया गया. सरस्वती का तर्कथा कि वे वसीयतनामे में नामित उत्तराधिकारी की विधवा हैं और इस नाते महामना का भारत रत्न सम्मान ग्रहण करना उनका हक है.
तीन महीने तक जब विवाद का कोई हल नहीं निकला तो केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 30 मार्च को राष्ट्रपति भवन में संपन्न हुए सम्मान समारोह में शिरकत करने के लिए हेम शर्मा, गिरिधर मालवीय, प्रेमधर मालवीय और सरस्वती मालवीय को संयुक्त रूप से बुलावा भेजा. कान से कम सुनाई देने के बावजूद भारत रत्न की बात छिड़ते ही सरस्वती मालवीय की आंखों में चमक आ जाती है. वे कहती हैं, ''राष्ट्रपति ने मेरे ही हाथ में भारत रत्न दिया था. सब वहां मौजूद थे. सब लोगों ने देखा कि मुझे ही मिला था. उन तीनों को नहीं दिया. ʼʼ वे यहीं नहीं ठहरतीं, ''मैंने कहा था कि भारत रत्न पहले इलाहाबाद लाया जाए, जहां वे पैदा हुए थे. लेकिन कुछ ऐसा हुआ कि भारत रत्न बीएचयू ले जाया गया.ʼʼ वे इशारों-इशारों में गिरिधर मालवीय पर निशाना साधती हैं.
न्यायाधीश के रूप में सैकड़ों मुकदमों को सुलझा चुके 78 वर्षीय गिरिधर मालवीय लगातार इस विवाद से दूरी बनाए हुए हैं. वे बेहद सहज अंदाज में कहते हैं, ''यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण था, जब अखबारों में भारत रत्न ग्रहण करने को लेकर मालवीय परिवार में हो रहे विवाद की खबरें आईं. मैंने सरकार से कहा था कि सम्मान जिसे भी मिले, लेकिन उसे रखा बीएचयू में ही जाए. यहां 30,000 से अधिक छात्र-छात्राएं हैं. यहां के कला भवन में ही महामना के जीवन से जुड़ी सारी चीजें रखी हुई हैं.ʼʼ
बहाना भले भारत रत्न रहा हो, लेकिन अचानक उठ खड़े हुए दावेदारी के इस विवाद के मूल में इलाहाबाद का पुश्तैनी बंगला भी है. उस पर एकाधिपत्य की जद्दोजहद ने ही महामना के असली वारिस की होड़ को अचानक हवा दे दी.
बंगले पर आरोप-प्रत्यारोप
इलाहाबाद के जॉर्ज टाउन के ए.एन. झा मार्ग पर 24 नंबर की सफेद कोठी के बाहर अप्रैल-मई में पडऩे वाली छुट्टियों की सूची चस्पां है. बंगले में सन्नाटा है, जिसे भीतर से आ रही बच्चों की आवाजें चीरने की कोशिश कर रही हैं. अंदर घुसते ही ''क्रेचʼʼ (शिशुगृह) देखकर माजरा समझ में आ जाता है. सरस्वती मालवीय इसी बंगले में अपनी दो बेटियों रंजना मालवीय और इलाहाबाद मेडिकल कॉलेज से सेवानिवृत्त हुईं डॉ. वीना बापट के साथ रहती हैं. सरस्वती की उम्र महज 25 साल थी, जब 1948 में उनके पति श्रीधर मालवीय की मृत्यु हुई. शादी के बाद से इसी घर में रहीं सरस्वती ने पति की मृत्यु के बाद हाइस्कूल से आगे की पढ़ाई की. 1981 में उन्होंने इसी बंगले में छोटे बच्चों की देखभाल के लिए इलाहाबाद का पहला क्रेच भी खोला. अब उनकी बेटी रंजना क्रेच की देखरेख करती हैं.
यह बंगला सरस्वती के श्वसुर और महामना के सबसे बड़े बेटे रमाकांत मालवीय ने 1930 में बनवाया था. रमाकांत राजस्थान में तत्कालीन नादवाड़ा राज्य में दीवान थे. इस बंगले पर दावेदारी का विवाद भी न्यायालय की चौखट लांघ चुका है. रमाकांत मालवीय परिवार के कई सदस्यों ने दो एकड़ से ज्यादा जमीन पर फैले इस बंगले पर अपनी हिस्सेदारी का दावा कर रखा है. परिवार के एक वरिष्ठ सदस्य कहते हैं, ''सरस्वती ने महामना का भारत रत्न सम्मान ग्रहण करने के लिए जो पेशबंदी की, उसकी जड़ में इस बंगले से जुड़ा विवाद ही है. इसके जरिए वे खुद को महामना परिवार की असली वारिस साबित करना चाहती हैं.ʼʼ बंगले को लेकर चल रही खींचतान में सरस्वती काफी असहज दिखाई देती हैं. वे कहती हैं, ''कुछ लोग मेरे मकान के पीछे पड़े हैं. वे जालसाजी कर रहे हैं. हमने इस मकान को फ्री होल्ड करवाने के लिए एडीएम नजूल के कार्यालय में दरख्वास्त दे रखी है.ʼʼ
परिवार में विवाद उस वक्त भी उठा था, जब बीएचयू के सामने लंका इलाके में महामना के बेटे गोविंद मालवीय का बनवाया गया मकान बेचा गया था. 1995 में देखरेख न कर पाने के चलते जब गिरिधर मालवीय ने अपने पिता के बनवाए मकान को बेचने की प्रक्रिया शुरू की तो बीएचयू छात्रों ने आंदोलन छेड़ दिया. छात्रों का आरोप था कि यह मकान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और वाराणसी के उद्योगपति शिवप्रसाद गुप्ता ने महामना को दान दिया था. इसे गिरधर मालवीय कैसे बेच सकते हैं? गिरधर मालवीय कहते हैं, ''महामना ने पूरे जीवन में अपने लिए दान की कोई वस्तु स्वीकारी नहीं थी. ये आरोप निराधार थे.ʼʼ हालांकि महामना अपने परिवार के लिए खरीदी गई संपत्तियों पर कोई विवाद नहीं है. इलाहाबाद जिला मुख्यालय से छह किमी दूर दक्षिण में मालवीय नगर में वह पुराना मकान भी है, जहां उनका जन्म हुआ था. महामना ने अपने परिवार वालों से इसे खरीदकर यहां भगवान कृष्ण के मंदिर की स्थापना की थी. अब इस घर में उनके सबसे बड़े भाई लक्ष्मीनारायण मालवीय के पौत्र आनंद और विवेक अपने परिवार के साथ रहते हैं. इस मकान की बगल में और सामने भी महामना ने दो मकान खरीदे, जिसे उन्होंने रमाकांत और गौरीकांत के परिवार को सौंप दिया.
जॉर्ज टाउन में सरस्वती मालवीय के बंगले से सटे गेरुए और सफेद रंग वाले बंगले में गिरधर मालवीय रहते हैं. 1911 में वकालत छोड़ने से पहले महामना मालवीय ने तीन एकड़ में फैला यह बंगला बनवाया था. उन्होंने इसके दो हिस्से किए. एक गोविंद को दिया, जहां अब गिरधर मालवीय रहते हैं. दूसरा हिस्सा राधाकांत मालवीय को दिया. बाद में राधाकांत ने अपने मकान के तीन हिस्से कर अपने तीनों बेटों यशोधर, चक्रधर और सुधाधर में बांट दिया.
महामना ने अपने सबसे छोटे बेटे गोविंद मालवीय को ही अपना निजी सचिव बनाया था. उनके इकलौते पुत्र गिरिधर मालवीय ही इकलौते व्यक्ति हैं, जो महामना से जुड़ी स्मृतियों और विरासत को संजोने में जुटे हैं. महामना मालवीय कहा करते थे मर जाऊं मांगूं नहीं मैं निज हित के काज, परमारथ के काज में मोहि न आवत लाज.ʼʼ लेकिन क्या उनके अपने परिवार के सदस्य ही इस दर्शन को आत्मसात कर पाए?