
पिछले दो दिनों से अचानक कुछ नेताओं ने सर्जिकल ऑपरेशन को लेकर सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं. इससे मौका पाकिस्तान को भी मिल गया. इसी के बाद ये आवाज उठने लगी कि सरकार सर्जिकल ऑपरेशन के सबूत के तौर पर वीडियो दुनिया को दिखा दे. पर क्या ये सही रहेगा? क्या सरकार को सर्जिकल ऑपरेशन के सबूतों को आम करना चाहिए? क्या इससे PAK फौज को मुश्किल नहीं आएगी? क्या इससे आगे के ऐसे किसी सर्जिकल ऑपरेशन में दुश्वारी पेश नहीं आएगी?
हमारे कुछ नेता बोल हिंदुस्तान में रहे हैं, पर सुना पाकिस्तान रहा है. सवाल हिंदुस्तान में उछाले जा रहे हैं और जवाब पाकिस्तान दे रहा है. पाकिस्तानी टीवी और अखबार हमारे ही नताओं के बोल की सुर्खियों और हेडलाइंस से भरे पड़े हैं. सुलगता सवाल यही है कि क्या पिछले हफ्ते भारत ने एलओसी यानी लाइन ऑफ कंट्रोल के उस पार घुस कर दुश्मन के खेमे में सर्जिकल स्ट्राइक किया था? पाकिस्तान पहले दिन से ही इसे झूठा करार दे रहा है. मगर अब खुद हमारे अपने कुछ नेताओं के सर्जिकल ऑपरेशन पर सवाल उठाए जाने के बाद मामला और गर्म हो गया है.
यहां तक कि इस विवाद के बाद खुद भारतीय सेना को ये कहना पड़ा कि सरकार चाहे तो सर्जिकल ऑपरेशन के सबूत यानी वीडियो जारी कर ऐसे लोगों का मुंह बंद कर सकती है. मगर साथ ही सेना का ये भी कहना था कि सबूत जारी करने या ना जारी करने का फैसला पूरी तरह सरकार का है. अब ऐसे में सवाल यही है कि क्या चौतरफा राजनीतिक दबाव के आगे झुक कर सरकार को सर्जिकल ऑपरेशन के वीडियो जारी करने चाहिए? क्या ऐसा करना ठीक होगा? क्या ये आगे चल कर सेना के लिए खतरनाक नहीं होगा?
सूत्रों के मुताबिक सर्जिकल ऑपरेशन से जुड़े वीडियो जारी करने का फैसला सरकार पर छोड़ने के सेना के बयान के बाद नई दिल्ली में इस बारे में एक हाई लेवल मीटिंग हुई. उस मीटिंग में कुछ मंत्री सबूत आम करने के पक्ष में थे, तो एनएसए समेत बाकी इसके विरोध में. आखिर में ये फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर छोड़ दिया गया. सूत्रों के मुताबिक नरेंद्र मोदी एनएसए यानी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के फैसले से सहमत थे कि फिलहाल सिर्फ राजनीतिक दबाव में आकर वीडियो नहीं जारी किया जाना चाहिए.
सूत्रों की मानें तो एनएसए ने सर्जिकल ऑपरेशन से जुड़े वीडियो जारी करने के सात बड़े खतरे बताए थे. वो खतरे ये हैं:
1. ऑपरेशन के दौरान इस्तेमाल किए गए हथियारों की दुश्मन को जानकारी मिल जाएगी.
2. ऑपरेशन के तरीके दुश्मन भांप जाएंगे.
3. पाक सेना को एंट्री और एक्जिट का तरीका पता चल जाएगा.
4. ऑपरेशन का पैटर्न आम होते ही अगले किसी सर्जिकल स्ट्राइक की तैयारी में दुश्वारी होगी.
5. पाक सेना पर बदला लेने का दबाव बढ़ जाएगा.
6. एलओसी पार करने और सीजफायर के उल्लंघन के मामले में एक तरह से ये भारतीय सेना का कबूलनामा होगा.
7. दबाव में सबूत जारी करने से भविष्य में सरकार के लिए ये गलत परंपरा बन जाएगी.
सूत्रों के मुताबिक सेना ने सरकार को करीब डेढ़ घंटे का ऑपरेशन का विजुअल सौंप दिया है. दावा किया जा रहा है कि कमांडो के हेलमेट, नाइट विजन कैमरे और ड्रोन कैमरे की मदद से सर्जिकल ऑपरेशन को शूट किया गया था. यानी अब आखिरी फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेना है. लेकिन एनएसए के कड़े रुख को देखते हुए फिलहाल इस बात की उम्मीद कम ही है कि सर्जिकल ऑपरेशन का वीडियो सामने आएगा.
ऐसा नहीं है कि भारत ने 26 सितंबर को एलओसी में घुस कर जो सर्जिकल ऑपरेशन किया, वो भारत का इस तरह का कोई पहला सर्जिकल ऑपरेशन था. इससे पहले भी एलओसी पर ऐसे सर्जिकल ऑपरेशन होते रहे हैं. 'आज तक' को मिली जानकारी के मुताबिक पिछले 18 सालों में भारतीय सेना ने एलओसी पर ऐसे कुल 9 सर्जिकल ऑपरेशन कर पाक फौज को भारी नुकसान पहुंचाया था. हालांकि इससे पहले कभी ऐसे ऑपरेशन को सार्वजनिक नहीं किया गया.