
पुणे शहर से लगभग 40 किलोमीटर दूर सहयाद्रि पहाड़ियों में बसा ऐतिहासिक सिंहगढ़ किला 2000 साल पुराना है. छत्रपति शिवाजी महाराज के बहादुर योद्धा तानाजी मालुसिरे ने इसे 1670 में दोबारा अपने कब्जे में लेने के लिए जंग लड़ी थी. इसी जंग के बहादुरी वाले कारनामों की वजह से आजतक ये किला इतिहास प्रेमियों के बीच चर्चा का विषय रहा है.
वैसे तो रोज इस किले पर सैलानियों का तांता लगा रहता है लेकिन छुट्टी के दिन इस किले पर बहुत भीड़ होती है. सबसे मुश्किल होता है संकरी सड़क से होकर किले पर जाना. बारिश के दिनों में ऊंची पहाड़ी से छोटे पत्थर या फिर मिट्टी का खिसकना सड़क पर गाड़ी चलाना मुश्किल कर देता है.
ऐसा ही कुछ रविवार की शाम को हुआ. पहाड़ी से चट्टान खिसकने का अंदेशा किले की इस सडक पर गश्त कर रहे सिक्योरिटी गॉर्ड को हुआ. एक ओर गहरी खाई और दूसरी ओर ऊंची उड़ान, जैसे-जैसे मलबा खिसकने लगा, दोनों छोर से सैलानियों को सड़क पर जाने से रोक लिया गया.
पलक झपकते ही पहले बड़ी सी चट्टान खिसकी और फिर बड़े-बड़े पत्थरों के साथ मिट्टी का मलबा सड़क पर आ गिरा. गनीमत है कि किसी के पास न होने से कोई भी इस भूस्खलन की चपेट में नहीं आया.
अगले तीन से चार घंटे में मलबा हटाने के बाद पहाड़ी पर फंसे सैलानी नीचे आ सके. अब अगले हफ्ते भर के लिए सिंहगढ़ किले पर सैलानियों को जाने की इजाजत नहीं है. सात से आठ दिनों में पहाड़ी पर जाने वाली सड़क के किनारे वाले चट्टानों से उस हिस्से को निकालने का काम होगा जहां भूस्खलन की संभावना है.