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...और इंदिरा गांधी ने ऐसे दी थी ऑपरेशन ब्‍लूस्‍टार को मंजूरी

आज़ाद हिंदुस्तान में असैनिक संघर्ष के इतिहास में ऑपरेशन ब्लू स्टार सबसे खूनी लड़ाई थी. अमृतसर के स्वर्ण मंदिर के पास अपने हथियारबंद साथियों के साथ छिपे बैठे जनरैल सिंह भिंडरावाले और उसकी छोटी-सी टुकड़ी को काबू करने के लिए सेना ने अभि‍यान चलाया. इसे ऑपरेशन ब्लू स्टार का नाम दिया गया.

इंदिरा गांधी ने आखिरकार सिखों की धार्मिक भावनाओं को आहत करने का रिस्क ले लिया था इंदिरा गांधी ने आखिरकार सिखों की धार्मिक भावनाओं को आहत करने का रिस्क ले लिया था
परवेज़ सागर
  • नई दिल्ली,
  • 06 जून 2018,
  • अपडेटेड 11:24 AM IST

आज़ाद हिंदुस्तान में असैनिक संघर्ष के इतिहास में ऑपरेशन ब्लू स्टार सबसे खूनी लड़ाई थी. अमृतसर के स्वर्ण मंदिर के पास अपने हथियारबंद साथियों के साथ छिपे बैठे जनरैल सिंह भिंडरावाले और उसकी छोटी-सी टुकड़ी को काबू करने के लिए सेना ने अभि‍यान चलाया. इसे ऑपरेशन ब्लू स्टार का नाम दिया गया.

इस ऑपरेशन में मशीनगन, हल्की तोपें, रॉकेट और आखिरकार लड़ाकू टैंक तक आजमाने पड़े. इस ऑपरेशन में सिखों का सर्वोच्च स्थल अकाल तख्त भी तबाह हो गया. स्वर्ण मंदिर से उग्रवादियों का सफाया करने का आदेश तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने दिया था. ऑपरेशन ब्लूस्टार में 83 सेनाकर्मी और 492 नागरिक मारे गए थे.

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आपरेशन ब्लू स्टार भारतीय सेना ने 3 से 6 जून 1984 को पंजाब के अमृतसर स्थित हरिमंदिर साहिब परिसर को ख़ालिस्तान समर्थक जनरैल सिंह भिंडरावाले और उसके समर्थकों से मुक्त कराने के लिए चलाया गया अभियान था. बताया जाता है कि उस दौर में पंजाब में भिंडरावाले के नेतृत्व में अलगाववादी ताकतें सशक्त हो रही थीं, जिन्हें पाकिस्तान से समर्थन मिल रहा था. इसके चलते उस वक्त पंजाब के हालात बहुत खराब थे.

पंजाब में इस समस्या की शुरुआत 1970 के दशक से अकाली राजनीति में खींचतान और अकालियों की पंजाब संबंधित मांगों के रूप में हुई थी. 1973 और 1978 में अकाली दल ने आनंदपुर साहिब प्रस्ताव पारित किया था. मूल प्रस्ताव में सुझाया गया था कि भारत की केंद्र सरकार का केवल रक्षा, विदेश नीति, संचार और मुद्रा पर अधिकार हो जबकि अन्य विषयों पर राज्यों को पूर्ण अधिकार हों. वे भारत के उत्तरी क्षेत्र में स्वायत्तता चाहते थे.

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उनकी मांग थी कि चंडीगढ़ केवल पंजाब की ही राजधानी हो, पंजाबी भाषी क्षेत्र पंजाब में शामिल किए जाएं, नदियों के पानी के मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय की राय ली जाए, 'नहरों के हेडवर्क्स' और पन-बिजली बनाने के मूलभूत ढांचे का प्रबंधन पंजाब के पास हो, फ़ौज में भर्ती काबिलियत के आधार पर हो और इसमें सिखों की भर्ती पर लगी कथित सीमा हटाई जाए, तथा अखिल भारतीय गुरुद्वारा क़ानून बनाया जाए.

अकालियों का समर्थन और प्रभाव बढ़ने लगा. इसी बीच अमृतसर में 13 अप्रैल 1978 को अकाली कार्यकर्ताओं और निरंकारियों के बीच हिंसक झड़प हुई थी. इसमें 13 अकाली मारे गए थे. रोष दिवस में सिख धर्म प्रचार की संस्था के प्रमुख जरनैल सिंह भिंडरांवाले ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था. अनेक पर्यवेक्षक इस घटना को पंजाब में चरमपंथ की शुरुआत के रूप में देखते हैं.

भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर सिख समुदाय में अकाली दल के जनाधार को घटाने के लिए जरनैल सिंह भिंडरांवाले को परोक्ष रूप से प्रोत्साहन देने का आरोप लगाया जाता है. अकाली दल भारत की राजनीतिक मुख्यधारा में रहकर पंजाब और सिखों की मांगों की बात कर रहा था, लेकिन उसका रवैया ढुलमुल माना जाता था. जरनैल सिंह भिंडरांवाले ने इनपर कड़ा रुख़ अपनाया और केंद्र सरकार को दोषी ठहराना शुरु कर दिया.

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भिंडरांवाले ने विवादास्पद राजनीतिक मुद्दों, धर्म और उसकी मर्यादा पर नियमित तौर पर भाषण देने लगे. उन्हें एक तबके का समर्थन भी मिलने लगा. पंजाब में हिंसक घटनाएं होने लगी. सितंबर 1981 में हिंदी समाचार पत्र पंजाब केसरी अख़बार समूह के संपादक लाला जगत नारायण की हत्या कर दी गई. जालंधर, तरन तारन, अमृतसर, फ़रीदकोट और गुरदासपुर में हिंसक घटनाएं हुई. भिंडरांवाले पर हिंसा भड़काने के आरोप लगे. पुलिस पर्याप्त सबूत नहीं होने की बात कहकर कार्यवाई से बचती रही.

सितंबर 1981 में भिंडरांवाले को महता चौक गुरुद्वारे के सामने गिरफ़्तार कर लिया गया. इसी दौरान वहां भारी भीड़ और पुलिस के बीच गोलीबारी हुई. ग्यारह व्यक्तियों की मौत हो गई. पंजाब में हिंसा का दौर शुरु हो गया. इसके कुछ ही दिन बाद सिख छात्र संघ के सदस्यों ने एयर इंडिया के विमान का अपहरण कर लिया.

भिंडरांवाले को जनसमर्थन मिलता देख अकाली दल के नेता भी उनके समर्थन में बयान देने लगे. 1982 में भिंडरांवाले चौक महता गुरुद्वारा छोड़ पहले स्वर्ण मंदिर परिसर में गुरु नानक निवास और इसके कुछ महीने बाद सिखों की सर्वोच्च धार्मिक संस्था अकाल तख्त से अपने विचार व्यक्त करने लगे.

अकाली दल ने सतलुज-यमुना लिंक नहर बनाने के ख़िलाफ़ जुलाई 1982 में अपना 'नहर रोको मोर्चा' छेड़ रखा था. जिसके तहत अकाली कार्यकर्ता लगातार गिरफ़्तारियां दे रहे थे. इसी बीच स्वर्ण मंदिर परिसर से भिंडरांवाले ने अपने साथी अखिल भारतीय सिख छात्र संघ के प्रमुख अमरीक सिंह की रिहाई के लिए नया अभियान शुरु किया. अकालियों ने अपने मोर्चे का भिंडरांवाले के मोर्चे में विलय कर दिया और धर्म युद्ध मोर्चे के तहत गिरफ़्तारियां देने लगे.

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हिंसक घटनाएं और बढ़ने लगीं. पटियाला के पुलिस उपमहानिरीक्षक के दफ़्तर में बम विस्फोट हुआ. पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री दरबारा सिंह पर भी हमला हुआ. अप्रैल 1983 में पंजाब पुलिस के उपमहानिरीक्षक ए.एस. अटवाल को दिन दहाड़े हरिमंदिर साहब परिसर में गोली मार दी गई. पुलिस का मनोबल गिरता चला गया. कुछ महीने बाद पंजाब रोडवेज़ की एक बस में घुसे बंदूकधारियों ने जालंधर के पास कई हिंदुओं को मार डाला.

इंदिरा गांधी सरकार ने पंजाब में दरबारा सिंह की कांग्रेस सरकार को बर्खास्त कर दिया और राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया. लेकिन पंजाब की स्थिति बिगड़ती गई. मार्च 1984 तक हिंसक घटनाओं में 298 लोग मारे जा चुके थे. इंदिरा गांधी सरकार की अकाली नेताओं के साथ तीन बार बातचीत हुई. आख़िरी चरण की बातचीत फ़रवरी 1984 में तब टूट गई जब हरियाणा में सिखों के ख़िलाफ़ हिंसा हुई. 1 जून को भी स्वर्ण मंदिर परिसर और उसके बाहर तैनात केंद्रीय रिज़र्व आरक्षी बल के बीच गोलीबारी हुई.

संत जरनैल सिंह, कोर्ट मार्शल किए गए मेजर जनरल सुभेग सिंह और सिख सटूडेंट्स फ़ेडरेशन ने स्वर्ण मंदिर परिसर के चारों तरफ़ ख़ासी मोर्चाबंदी कर ली थी. उन्होंने भारी मात्रा में आधुनिक हथियार और गोला-बारूद भी जमा कर लिया था. 1985 में होने वाले आम चुनाव से ठीक पहले इंदिरा गांधी इस समस्या को सुलझाना चाहती थीं. अंततः उन्होंने सिक्खों की धार्मिक भावनाएं आहत करने के जोखिम को उठाकर भी इस समस्या का अंत करने का निश्चय किया और सेना को ऑपरेशन ब्लू स्टार करने का आदेश दिया.

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