
दरअसल पंजाब में नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करना अकाली दल की एक बड़ी राजनीतिक मजबूरी है. अकाली दल से टूटकर बना अकाली दल टकसाली नागरिकता संशोधन कानून को लेकर मुस्लिम समुदाय से करीबियों को जता रहा था. अकाली दल के नेताओं को डर है कि अगर उन्होंने पंजाब में सीएए का विरोध नहीं किया तो उसका बड़ा फायदा अकाली दल टकसाली को होगा. अगर ऐसा हुआ तो पार्टी अपने परंपरागत मुस्लिम वोट बैंक से हाथ धो बैठेगी.
अकाली दल के वरिष्ठ नेता डॉ दलजीत सिंह चीमा ने 'आज तक' से हुई खास बातचीत में कहा कि उन्होंने नागरिकता संशोधन कानून का स्वागत किया था क्योंकि इससे अफगानिस्तान और पाकिस्तान में प्रताड़ित सिख समुदाय सहित दूसरे अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को नागरिकता हासिल होगी. वे चाहते हैं कि इसमें मुस्लिम समुदाय को भी शामिल किया जाए.
बीजेपी ने रुख बदलने की दी थी नसीहत
वहीं भारतीय जनता पार्टी ने अकाली दल को नागरिकता संशोधन कानून को लेकर अपना स्टैंड बदलने को कहा था. उधर पंजाब में सत्ताधारी दल कांग्रेस ने अब अकाली दल को चुनौती दी है कि यदि वह सचमुच मुस्लिम समुदाय के प्रति चिंतित है तो राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंध (एनडीए) से नाता तोड़कर दिखाए.
कांग्रेस ने CAA विरोध को बताया दिखावा
पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने एक बयान में कहा था कि पहले अकाली दल ने संसद में नागरिकता संशोधन कानून का खुलेआम समर्थन किया. बाद में राजनीतिक कारणों से उसका विरोध कर दिया. उन्होंने कहा कि अकाली दल के नेता सिखों के हिमायती बनने का सिर्फ दंभ भर रहे हैं, जबकि इस कानून को लेकर उनका विरोध महज दिखावा है.
अकाली दल है डूबता 'जहाज'
एक अन्य कांग्रेस नेता जगपाल सिंह अबुलखुराना ने कहा की अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी के बीच बढ़ती दूरियां इस बात का सबूत है कि लोगों द्वारा बुरी तरह नकार दिए जाने के बाद अब दोनों पार्टियां पंजाब में अपना वजूद तलाशने पर मजबूर हैं. पंजाब की प्रमुख विपक्षी पार्टी आम आदमी पार्टी(AAP) के वरिष्ठ नेता अमन अरोड़ा ने अकाली दल को एक डूबता जहाज करार दिया और कहा कि अकाली दल पंजाब में अपना वजूद खो चुका है इसलिए भारतीय जनता पार्टी अकाली दल से किनारा कर रही है.
दरअसल दिल्ली विधानसभा चुनाव न लड़ने के फैसले का चुनाव परिणामों पर उतना ज्यादा असर नहीं होगा जितना कि पंजाब में बीजेपी और अकाली दल के दशकों पुराने संबंधों पर होगा. देखना दिलचस्प होगा कि क्या दोनों पार्टियां राजनीतिक रंजिश भुलाकर पंजाब में अपना गठबंधन जारी रखती है या फिर अपने अलग रास्ते चुनती हैं.