
जापानी बुखार पूर्वांचल के लिए एक अभिशाप है. हर साल इस बीमारी से हजारों जान जाती रही हैं. स्थानीय अखबारों में यह मुद्दा उठता रहा लेकिन इसकी आवाज दिल्ली तक कम ही पहुंची. 39 सालों में तकरीबन 10 हजार मौत के बाद भी इस बीमारी से निपटने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया.
पूरा पूर्वांचल रहता है चपेट में
बरसात के मौसम में जापानी बुखार पूर्वांचल पर अपना कहर बरसाता है. पूर्वी यूपी से लेकर पश्चिमी बिहार और नेपाल के तराई इलाकों तक इसका असर होता है. पूर्वांचल में यूपी के गोरखपुर, बस्ती, देवरिया, आजमगढ़, बलिया, बहराइच और गाजीपुर जैसे महत्वपूर्ण जिले इस बीमारी से परेशान होते हैं तो वहीं बिहार में यह सीवान से लेकर छपरा तक अपना असर दिखाता है. बारिश के बाद हुआ जलभराव इसे तेजी से फैलाता है. गांव में फैली गंदगी और घरों में साफ-सफाई ना होने की वजह से अधिकतर कम उम्र बच्चे इस बीमारी का शिकार होते हैं.
क्या है दिमागी बुखार
दिमागी बुखार के कारण ब्रेन में सूजन आ जाती है जोकि कई तरह के वायरस के कारण हो सकती है. ब्रेन टिश्यूज पर अटैक करने के कारण भी ब्रेन में सूजन आ सकती है. इसके सिम्प्टम्स में हाई फीवर, सिरदर्द, तेज रोशनी से तकलीफ, गर्दन और कमर अकड़ना, उल्टी, सिर घूमना और कई सीरियस मामलों में पैरालिसिस और कोमा जैसी स्थिति भी हो सकती है. बच्चों और बुजुर्गों में इस बीमारी के होने के चांस सबसे ज्यादा होते हैं.
पूर्वांचल ने मोदी को बहुत दिया
पूर्वांचल हमेशा से बीजेपी का गढ़ रहा है. लोकसभा और यूपी की विधानसभा चुनावों में बीजेपी को सबसे ज्यादा सीटें इसी इलाके से मिलीं. लोकसभा में आजमगढ़ से जीते मुलायम सिंह यादव को छोड़ दें तो सभी सीटें बीजेपी के हाथ लगी थीं. तो वहीं विधानसभा चुनावों में पूर्वांचल के 25 जिलों की 141 सीटों में से 111 सीटें बीजेपी को दीं. 25 में से 10 जिले तो ऐसे थे जहां किसी और दल का खाता ही नहीं खुला. दरअसल बीजेपी की नजर पूर्वांचल की सीटों पर पहले से ही थी यही वजह थी कि मोदी की रैली सबसे ज्यादा पूर्वी उत्तर प्रदेश के जिलों में हुई और मोदी अंत में तीन दिन तक वाराणसी में ही टिके रहे.
मोदी ने पूर्वांचल को क्या दिया
योगी आदित्यनाथ जापानी बुखार से लड़ने के लिए एक अदद एम्स की मांग को लेकर लंबे समय से लड़ाई लड़ रहे थे. जिसके चलते 2011 में यूपीए सरकार ने संसद में इस बात का आश्वासन दिया था कि AES (एक्यूट इन्सेफलाइटिस सिंड्रोम) से लड़ने के लिए गोरखपुर में जल्द से जल्द एम्स जैसा संस्थान बनेगा. 2014 में मोदी सरकार के आने के बाद भी पूर्वांचल की इस त्रासदी को रोकने के लिए कोई बड़ा कदम नहीं उठाया गया.
कब पूरा होगा एम्स
मोदी सरकार ने 2016 में 750 बेड वाले एम्स अस्पताल के निर्माण को मंजूरी दी. पीएम नरेंद्र मोदी ने खुद जुलाई 2016 में एम्स की नींव रखी थी. लेकिन एम्स 2019 से पहले बनने की हालात में नहीं है. ऐसे में 950 बेड वाला बीआरडी मेडिकल कॉलेज ही पूर्वांचल के लोगों का एकमात्र सहारा है.
अखिलेश पर लगे जमीन नहीं देने के आरोप
गोरखपुर में एम्स को लेकर हुई देरी के लिए सिर्फ बीजेपी सरकार ही जिम्मेदार नहीं है. दरअसल इसको लेकर योगी अखिलेश को भी निशाने पर ले चुके हैं. योगी आदित्यनाथ ने अखिलेश यादव पर एम्स के लिए जमीन ना देने का आरोप लगाया था. चूनाव पूर्व उन्होंने कहा था कि अखिलेश सरकार जान बूझकर एम्स गोरखपुर के लिए विवादित जमीन दे रही है जिसके चलते एम्स निर्माण का रास्ता अटका हुआ है.
एक रुपए सालाना किराए पर मिली एम्स को जमीन
गोरखपुर में एयर फोर्स के पास महादेव झारखंडी के टुकड़ा नंबर दो में गन्ना शोध संस्थान की 112 एकड़ जमीन पर गोरखपुर का एम्स प्रस्तावित है. काफी राजनीतिक आरोपों-प्रत्यारोपों और विवादों के बाद इस जमीन को एम्स के लिए चुना गया. एम्स जिस जमीन पर बन रहा है उस जमीन की कीमत करीब 700 करोड़ रुपए है. लेकिन प्रदेश सरकार ने इस जमीन को केंद्र सरकार को एम्स बनाने के लिए जनहित में केवल 90 रुपए में दी है. एक रुपए सालाना किराया दर पर यह जमीन 90 साल के लिए लीज पर दी गई है. लीज जरुरत पड़ने पर बढाई भी जा सकती है.