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फिल्‍म समीक्षा: खट्टी-मिट्टी प्रेम कहानी 'रांझणा'

बनारस के एक अक्खड़ लौंडे की प्रेम कहानी है रांझणा जिसका जीवन का एकमात्र उद्देश्य अपने प्रेम को हासिल करना है. आइए जानते हैं धनुष और सोनम की अनोखी जोड़ी वाली इस फिल्म की क्या खासियत और क्या है खामियां.

नरेंद्र सैनी
  • नई दिल्ली,
  • 21 जून 2013,
  • अपडेटेड 12:28 AM IST

फिल्‍म: 'रांझणा'
डायरेक्टर आनंद एल. राय
कलाकार धनुष, सोनम कपूर और अभय देओल
बजट 35 करोड़ रु.

बनारस का एक सीधा-सादा लेकिन मुंहफट और अक्खड़ लौंडा एक लड़की से प्यार करता है. उसका यह इश्क बचपन से शुरू हो जाता है और जवानी तक कायम रहता है. किसी भी आम लौंडे की तरह हीरो कुंदन हीरोइन जोया को लुभाने की हर कोशिश करता है. कामयाब नहीं हो पाता है. वह हिंदू और लड़की मुस्लिम है. लड़की दूर चली जाती है, फिर भी उसका एकतरफा प्यार कम नहीं होता है.

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इस कहानी के बीच में प्यारे-प्यारे गीत आते हैं जो सुनने में अच्छे लगते हैं. बनारस के आंखों को पसंद आने वाले सीन काफी भाते हैं. फिल्म में प्रेम की इंटेसिटी दिखाने की कोशिश की गई है. बॉलीवुड की रटी-रटाई गलती 'रांझणा' में भी नजर आती है. पहला हाफ बढ़िया है और दूसरा दिल तोड़ने वाला. धनुष ने अच्छी ऐक्टिंग करने की कोशिश की है. उनके फ्लैट वनलाइनर कहीं-कहीं बहुत अच्छे लगते हैं.

कहानी में कितना दम
'रांझणा' की कहानी बनारस में रची गई है. कुंदन जोया से प्यार करता है. उसका नाम जानने के लिए पंद्रह चांटों तक का स्वाद चखता है. जोया चली जाती है. लंबे अरसे बाद लौटकर आती है तो भी कुंदन का प्यार जस का तस रहता है. 'रांझणा' में प्यार से जुड़े कुछ खास लम्हे हैं तो कुछ विरोधाभासी मौके भी हैं. फिल्म में ईव टीजिंग को लेकर व्याख्यान है तो दूसरी ओर कुंदन (धनुष) लड़कपन से ही जोया (सोनम कपूर) से हां कराने के लिए तरह-तरह के प्रपंच रचता है. जिसमें लड़की के पीछा करने से लेकर उसका गाल चूमना तक शामिल है. कुंदन जोया को धमकाता भी है. बेशक यह आनंद एल. राय एक बड़ी मीठी और इंटेंस प्रेम कहानी का सृजन कर रहे थे लेकिन कुंदन का यह रूप थोड़े समय के लिए ही सही, हीरो के तौर पर परेशान करता है. डायरेक्शन पर कलात्मकता की झलक ज्यादा है. ए.आर. रहमान का संगीत भी फिल्म को मजबूत कंधा देता है.

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स्टार अपील
धनुष और सोनम की जोड़ी परदे पर हर सीन में कॉम्प्लीमेंट करती नजर नहीं आती है. कहीं-कहीं दोनों एकदम जुदा लगते हैं. यही बात आकर्षण भी पैदा करती है. जहां तक दोनों के किशोर बनने की बात है, तो वह सीन कुछ ज्यादा ही अटपटे हो जाते हैं. साफ नजर आता है कि उन्हें कॉस्ट्यूम और ड्रेसिंग के जरिये किशोर बनाने की कोशिश की गई है जो बहुत जमती नहीं है. ऐक्टिंग के मामले में सोनम को अभी और हाथ साफ करने हैं. धनुष कई सीन्स में अच्छे लगते हैं और अपनी तरफ से कुंदन में पूरी जान डालते नजर आते हैं. अभय देओल जमे हैं, उन्हें जितना मौका मिला उतने में अपने हाथ दिखा गए. स्वरा भास्कर और मोहम्मद जीशान अयुब भी धमाल हैं. दोनों ने फिल्म में जान डाल दी है और कहीं-कहीं तो ये मेन लीड्स को खा जाते हैं.

कमाई की बात
इन दिनों बॉलीवुड में लव स्टोरियों का दौर है, तो फिल्म के बॉक्स ऑफिस प्रदर्शन को लेकर कुछ नहीं कहा जा सकता क्योंकि 'आशिकी-2' और 'यह जवानी है दीवानी' अपने संगीत और प्रेम प्रसंगों के दम पर पहले ही 100 करोड़ रु. का आंकड़ा पार कर चुकी हैं. सोनम-धनुष की अनऑर्थोडॉक्स जोड़ी है. गली-मोहल्ले के रोमांस से लेकर कॉलेज पॉलिटिक्स जैसा मसाला शामिल है. डायलॉगबाजी चटपटी है. फिल्म का बजट भी ज्यादा नहीं है. ऐसे में जनता के मुंह से निकले शब्द फिल्म का भविष्य तय करेंगे.

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