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राफेलः कपिल सिब्बल बोले-गलत जानकारी के लिए AG को पीएसी में बुलाया जाए

देश की सबसे बड़ी अदालत के फैसले पर कपिल सिब्बल ने कहा कि फैसले में कुछ ऐसे तथ्य हैं जो शायद सरकार के हलफिया बयान के कारण सुप्रीम कोर्ट के फैसले में आए हैं. यदि सरकार कोर्ट में गलत तथ्य पेश करती है तो उसके लिए सरकार पूरी तरह जिम्मेदार है न कि कोर्ट.

कपिल मिश्रा (फाइल/PTI) कपिल मिश्रा (फाइल/PTI)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 15 दिसंबर 2018,
  • अपडेटेड 5:40 PM IST

सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद राफेल डील को लेकर आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने कहा कि राफेल मामले में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में गलत जानकारी दी है. इस प्रकरण पर अटॉर्नी जनरल को पीएसी में बुलाया जाना चाहिए.

दूसरी ओर, केंद्र सरकार ने राफेल डील को लेकर सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल करने से पहले सभी याचिकाकर्ताओं को उसकी कॉपी भेज दिया है.

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राफेल पर शनिवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में सिब्बल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने राफेल के मामले में गलत जानकारी दी है. हम चाहते हैं कि पीएसी (लोक लेखा समिति) में अटॉर्नी जनरल को बुलाया जाना चाहिए, जिससे यह साफ हो सके कि एफिडेविट क्यों जमा कराए गए, जिसका वास्तव में कोई जिक्र नहीं है. यह बेहद संवेदनशील मामला है, जिस पर संसद में भी चर्चा होनी चाहिए.

उन्होंने कहा कि कांग्रेस इस मामले में हमेशा स्पष्ट रही है कि इस मामले के लिए सुप्रीम कोर्ट सही जगह नहीं है, यहां पर हर तरह की फाइल का खुलासा नहीं किया जा सकता. यह सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में भी नहीं है.

उन्होंने आगे कहा कि सुप्रीम कोर्ट के हर फैसले में प्रेस रिपोर्ट और सरकार के हलफनामे का हवाला दिया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि अनुच्छेद 32 के तहत कोर्ट के न्यायाधिकार के कारण वो फैसला नहीं कर सकते.

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गलत तथ्य के लिए सरकार दोषी

देश की सबसे बड़ी अदालत के फैसले पर सिब्बल ने कहा कि फैसले में कुछ ऐसे तथ्य हैं जो शायद सरकार के हलफिया बयान के कारण सुप्रीम कोर्ट के फैसले में आए हैं. यदि सरकार कोर्ट में गलत तथ्य पेश करती है तो उसके लिए सरकार पूरी तरह जिम्मेदार है न कि कोर्ट.

उन्होंने कहा कि अगर हिंदुस्तान के संवैधानिक कार्यालय का एक वकील कोर्ट में पेश होता है और गलत तथ्य कोर्ट में पेश करता है तो वो सरकार और उस वकील की गलती है.

कोर्ट के फैसले के बाद आगे के सूरत के बारे में बोलते हुए सिब्बल ने कहा कि कांग्रेस इस मामले में कभी भी कोर्ट में पार्टी नहीं थी और इस बात को हम पहले भी कह चुके हैं. सरकार की ओर से कोर्ट के फैसले को ‘क्लीन चिट’ के रूप में दिखाए जाने पर उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने फाइलें नहीं मंगवाई और नोटिंग नहीं देखी तो फिर अपनी पीठ थपथपाना कि ‘क्लीन चिट’ मिल गया ये बचकानी बातें हैं.

माफी मांगे गृह मंत्री

सिब्बल ने गृह मंत्री राजनाथ सिंह से माफी की मांग करते हुए कहा कि राजनाथ सिंह ने देश को गुमराह किया है और कोर्ट को भी गुमराह किया है इसलिए उनको माफी मांगनी चाहिए. वहीं वित्त मंत्री अगर अपने मंत्रालय का ध्यान ज्यादा रखें और फिक्शन कम पढ़ें तो ज्यादा बेहतर होगा.

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राफेल डील को जेपीसी के पास भेजे जाने पर उन्होंने आगे कहा कि हमारी मांग पहले भी रही है और आगे भी होगी कि बिना जेपीसी के बात आगे नहीं बढ़ सकती.

गलत तथ्य पर हो कार्रवाई

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अपने फैसले के दौरान कहा कि कीमत से जुड़े विवरण सीएजी से साझा किए जा चुके हैं और सीएजी की रिपोर्ट की जांच-परख पीएसी कर चुकी है. इस पर पीएसी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे कह चुके हैं कि उनके पास यह रिपोर्ट आई ही नहीं.

इस विवाद पर सिब्बल ने कहा कि खड़गे पीएसी के अध्यक्ष हैं और उनके सामने कोई रिपोर्ट आई ही नहीं. अगर सुप्रीम कोर्ट के फैसलों में इस प्रकार की तथ्यात्मक गलतियां होने लगीं तो इसका जिम्मेदार कौन है? ये बेहद संगीन मामला है इस पर कार्रवाई होनी चाहिए.

उन्होंने कहा कि जनता में तो ये संदेश जाता है कि सीएजी, पीएसी, संसद सबने देख लिया, लेकिन ये संदेश ही अपने आप में असत्य है. हालांकि समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अप्रत्याशित रूप से कांग्रेस के इतर जाते हुए कहा कि राफेल पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आखिरी है. इस पर टिप्पणी करना अब ठीक नहीं है, लेकिन अब भी अगर किसी को लगता है तो उसे अपनी बात सुप्रीम कोर्ट में ही रखनी चाहिए. हमारी अब जेपीसी की मांग नहीं है.

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सिब्बल ने कहा कि रिलायंस डिफेंस का गठन 28 मार्च को हुआ जबकि रिलायंस एयरोस्ट्रक्चर लिमिटेड का गठन 24 अप्रैल को हुआ. 24 से 30 अप्रैल के बीच ही दसॉल्ट ने संयुक्त उद्यम का फैसला कैसे कर लिया? दसॉल्ट के सीईओ एरिक ट्रैपियर ने कहा कि हमने संयुक्त उद्यम का फैसला इसलिए किया क्योंकि रिलायंस एयरोस्ट्रक्चर लिमिटेड के पास जमीन थी, जो कि गलत बात है.

13 मार्च को जब वर्क शेयर एग्रीमेंट साइन हो गया तो ये बात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के सामने क्यों नहीं रखी, क्योंकि सरकार सुप्रीम कोर्ट को गुमराह करना चाहती थी. अगर कोर्ट के सामने सरकार सही बात ही न रखे तो ये सरकार की गलती है क्योंकि इनकी मंशा यही है कि किसी तरह से जेपीसी जांच न हो और मोदी जी बचे रहें.

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