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Rafale Deal पर मोदी सरकार को राहत, जानें 12 साल में कब क्या हुआ

राफेल विमान सौदे पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद फिर से सियासी घमासान शुरू हो सकता है. कोर्ट के फैसले के बाद भी कांग्रेस समेत विपक्ष संसद में जेपीसी जांच की मांग उठा रही है, तो केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने राज्यसभा में चर्चा की बात कही है.

फाइल फोटो (PTI) फाइल फोटो (PTI)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 14 दिसंबर 2018,
  • अपडेटेड 1:01 PM IST

देश में बड़े राजनीतिक विवाद की शक्ल ले चुके राफेल सौदे पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को बड़ा फैसला सुनाते हुए केंद्र की मोदी सराकार को राहत दे दी है. पिछले कई महीनों से इस डील को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी समेत विपक्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर लगातार हमला कर रहे थे. देश की सबसे बड़ी अदालत की ओर से डील को सही बताने के बाद सत्ता पक्ष अब विपक्ष के खिलाफ हमलावर हो सकता है.

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आखिर क्या है पूरा मामला और इसे लेकर कब क्या हुआ, जानने के लिए पढ़िए...

- साल 2007 में वायुसेना की ओर से मीडियम मल्टी रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (MMRCA)खरीदने का प्रस्ताव सरकार को भेजा गया. इसके बाद भारत सरकार ने 126 लड़ाकू विमानों को खरीदने का टेंडर जारी किया.

-  इसके बाद जिन लड़ाकू विमानों को खरीदना था, उनमें अमेरिका के बोइंग F/A-18 सुपर हॉरनेट, फ्रांस का Dassault Rafale, ब्रिटेन का यूरोफाइटर, अमेरिका का लॉकहीड मार्टिन F-16 फाल्‍कन, रूस का मिखोयान MIG-35 और स्वीडन के साब  JAS-39 ग्रिपेन जैसे एयरक्राफ्ट शामिल थे. हालांकि, Dassault एविएशन के राफेल ने बाजी मार ली.

- 4 सितंबर 2008 को मुकेश अंबानी के नेतृत्व वाले रिलायंस ग्रुप ने रिलायंस एयरोस्पेस टेक्नोलॉजीज लिमिटेड (RATL) नाम से एक नई कंपनी बनाई. इसके बाद RATL और Dassault के बीच बातचीत हुई और ज्वाइंट वेंचर बनाने पर सहमति बन गई. इसका मकसद भविष्य में भारत और फ्रांस के बीच होने वाले सभी करार हासिल करना था.

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- मई 2011 में एयर फोर्स ने राफेल और यूरो फाइटर जेट्स को शॉर्ट लिस्टेड किया.

- जनवरी 2012 में राफेल को खरीदने के लिए टेंडर को सार्वजनिक कर दिया गया. इस पर राफेल ने सबसे कम दर पर विमान उपलब्ध कराने को बोली लगाई. शर्तों के मुताबिक भारत को 126 लड़ाकू विमान खरीदने थे. इनमें से 18 लड़ाकू विमानों रेडी हालत में देने की बात थी, जबकि बाकी 108 विमान Dassault की मदद से हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) द्वारा तैयार किया जाना था. हालांकि इस दौरान भारत और फ्रांस के बीच इन विमानों की कीमत और इनको बनाने की प्रक्रिया शुरू करने के समय पर अंतिम समझौता नहीं हुआ था.

-  13 मार्च 2014 तक राफेल विमानों की कीमत, टेक्नोलॉजी, वेपन सिस्टम, कस्टमाइजेशन और इनके रख रखाव को लेकर बातचीत जारी रही. साथ ही HAL और Dassault एविएशन के बीच इसको बनाने के समझौते पर हस्ताक्षर हो गए.

- यूपीए शासनकाल को दौरान राफेल को खरीदने की डील को अंतिम रूप नहीं दिया जा सका. हालांकि कांग्रेस पार्टी दावा करती है कि उसने 526.1 करोड़ रुपये प्रति राफेल विमान की दर से डील की थी. हालांकि यह साफ नहीं हुआ था कि Dassault भारत की जरूरतों के मुताबिक इन विमानों को तय वक्त में उपलब्ध कराएगा या नहीं. इसकी वजह यह है कि यूपीए शासनकाल में यह डील पूरी नहीं हुई थी.

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- इसके बाद एनडीए सत्ता में आई और 28 मार्च 2015 को अनिल अंबनी के नेतृत्व में रिलायंस डिफेंस कंपनी बनाई गई.

- 10 अप्रैल 2015 को पीएम मोदी फ्रांस की राजधानी पेरिस का दौरा किया और उड़ान के लिए तैयार 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने के अपनी सरकार के फैसले का ऐलान किया. इस दौरान उन्होंने कहा कि भारतीय वायुसेना के लिए ये विमान खरीदने बेहद जरूरी हैं.

- जून 2015 में रक्षा मंत्रालय ने 126 एयरक्राफ्ट खरीदने का टेंडर निकाला.

- दिसंबर 2015 में रिलायंस इंटरटेनमेंट ने फ्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति ओलांद की पार्टनर जूली गयेट की मूवी का-प्रोडक्शन में 16 लाख यूरो का निवेश किया. फ्रांस के अखबार मीडिया पार्ट के मुताबिक यह निवेश फ्रांस के एक व्यक्ति के इन्वेस्टमेंट फंड के जरिए किया गया, जो अंबानी को पिछले 25 वर्षों से जानता था. हालांकि, जूली गयेट के प्रोडक्शन रॉग इंटरनेशनल ने अनिल अंबानी या रिलायंस के प्रतिनिधियों से मुलाकात करने की बात को खारिज कर दिया.

- जनवरी 2016 में गणतंत्र दिवस कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए फ्रास्वां ओलांद भारत आए. इस दौरान उन्होंने राफेल विमान खरीदने के एक एमओयू पर हस्ताक्षर किए. 24 जनवरी को रिलायंस इंटरटेनमेंट ने प्रेस रिलीज जारी किया. इसमें इंडो-फ्रेंच ज्वाइंट प्रोडक्शन 'number one' की घोषणा की गई.

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- सितंबर, 2016 को भारत और फ्रांस के बीच 36 राफेल विमान खरीदने की फाइनल डील पर दस्तखत हुए. इन विमानों की कीमत 7.87 बिलियन यूरो रखी गई. इस डील के मुताबिक इन विमानों की डिलीवरी सितंबर 2018 से शुरू होने की बात कही गई.

- 3 अक्टूबर, 2016 को अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस लिमिटेड और Dassault Aviation ने एक संयुक्त वेंचर की घोषणा की.

- फरवरी, 2017 को Dassault Reliance Aerospace Ltd (DRAL) ज्वाइंट वेंचर को गठित किया गया.

- इस दौरान कांग्रेस ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार ने HAL को दरकिनार करके अनिल अंबानी की रिलायंस को डील दिलाई. इस पर रिलायंस डिफेंस लिमिटेड के सीईओ राजेश धींगरा ने सफाई देते हुए कहा कि उनकी कंपनी को ज्वाइंट वेंचर कॉन्ट्रैक्स सीधे Dassault से मिला और इसमें सरकार का कोई रोल नहीं था.

- सितंबर, 2018 को राफेल डील (Rafale Deal) पर मचे घमासान के बीच अब फ्रांस्वा ओलांद ने नया खुलासा किया है. फ्रेंच अखबार को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस का नाम खुद भारत सरकार ने सुझाया था. हालांकि, फ्रांस सरकार और Dassault ने इससे किनारा किया है, लेकिन विपक्ष के आरोपों को बल मिल गया है.

- अक्टूबर, 2018 में फ्रांस की एक एविएशन वेबसाइट पोर्टल एविएशन ने Dassault डॉक्यूमेंट पर आधारिक एक नई रिपोर्ट जारी किया था. इससे पहले फ्रांस की पब्लिकेशन कंपनी मीडियापार्ट ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि Dassault ने एकतरफा फैसला लेते हुए अनिल अंबानी की रिलायंस कंपनी को राफेल विमान का ठेका दिया. जबकि फ्रांस की वेबसाइट ने मीडियापार्ट की रिपोर्ट से इतर अपने दावे में कहा कि 'मेक इन इंडिया' क्लॉज के तहत Dassault के शीर्ष प्रबंधन ने फ्रेंच कॉनफेडरेशन ऑफ ट्रेड यूनियन से राय-मशविरा कर रिलायंस को ठेका दिया.

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- नवंबर, 2018 में फ्रांस के शेरपा (Sherpa) नाम के एक एनजीओ ने पूरी डील पर नए सिरे से जांच की मांग की है और इसके लिए उसने शिकायत भी दर्ज कराई.

- 13 नवंबर, 2018 में राफेल बनाने वाली कंपनी Dassault एविएशन के सीईओ एरिक ट्रैपियर ने राहुल गांधी के आरोपों पर कहा कि वो झूठ नहीं बोलते, भारत से हुई राफेल डील सच्ची है. रिलायंस को ऑफसेट पार्टनर चुनने का फैसला सिर्फ और सिर्फ उनकी कंपनी का है. और जो पैसा Dassault लगा रही है वो रिलायंस में नहीं बल्कि कॉन्ट्रैक्ट के मुताबिक ज्वाइंट वेंचर में लगा रही है. Dassault के सीईओ ने ये भी ऐलान किया कि अब वो 36 विमान खरीदे जा रहे हैं, उसकी कीमत उतनी ही है जितनी यूपीए डील में 18 विमानों की थी और इस वजह से अब राफेल विमान पहले के मुकाबले 9 फीसदी सस्ता पड़ रहा है.

- 14 नवंबर, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने राफेल विमान सौदे की कोर्ट की निगरानी में जांच के लिए दायर याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. साथ ही न्यायालय ने कहा कि राफेल विमानों के दाम पर चर्चा तभी हो सकती है जब वह फैसला कर लेगा कि कीमतों के तथ्यों को सार्वजनिक किया जाए या नहीं.

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- 14 दिसंबर, 2018 को राफेल डील पर जांच करने की याचिका पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि राफेल सौदे में कोई संदेह नहीं है. राफेल की गुणवत्ता पर कोई सवाल नहीं है. हमने सौदे की पूरी प्रक्रिया पढ़ी है. विमान की कीमत देखना हमारा काम नहीं है. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने राफेल सौदे की जांच को लेकर सभी याचिकाओं को खारिज भी कर दिया.

इससे पहले, राफेल डील में कथित अनियमितताओं का आरोप लगाते हुए सबसे पहले अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा ने जनहित याचिका दायर की थी. इसके बाद, एक अन्य अधिवक्ता विनीत ढांडा ने याचिका दायर कर शीर्ष अदालत की निगरानी में इस सौदे की जांच कराने का अनुरोध किया था. इस सौदे को लेकर आप पार्टी के सांसद संजय सिंह और इसके बाद दो पूर्व मंत्रियों तथा बीजेपी नेताओं यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी के साथ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने एक अलग याचिका दायर की थी.

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