
राफेल शब्द का मतलब ही होता है तूफान, विस्तार से कहें तो 'अचानक उठा हवा का झोंका'. अपने नाम के मुताबिक ही राफेल ने साल 2018-19 में भारतीय राजनीति में तूफान मचा कर रख दिया था. इस तूफान शब्द का राफेल बनाने वाली कंपनी दसॉल्ट एविएशन और भारतीय रक्षा क्षेत्र से बहुत पुराना ताल्लुक है. ये ताल्लुकात साल 1953 तक जाते हैं जब भारत ने राफेल को बना रही इसी कंपनी से बमवर्षक विमान 'तूफानी' खरीदा था.
'तूफानी' से तूफान यानी कि राफेल तक सफर
इतिहास के पन्ने को पलटें तो 'तूफानी' से शुरू हुआ ये रक्षा सफर राफेल यानी की 'तूफान' तक आता दिखाई दे रहा है. कुछ ही घंटों में दक्षिण फ्रांस के मेरीगनेक एयरबेस से चले 5 राफेल फाइटर जेट 7000 किलोमीटर के लंबे सफर के बाद अंबाला एयरफोर्स स्टेशन पर पहुंचने वाले हैं.
दसॉल्ट एविएशन और इंडियन एयरफोर्स की साझेदारी को समझने के लिए हमें 60 के दशक में जाना होगा. नए-नए आजाद हुए भारत की वायु ताकत कुछ खास नहीं थी. इस कमी को दूर करने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की नजरें फ्रांस के दसॉल्ट एविएशन पर गई.
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद दसॉल्ट एविएशन तेजी से आगे बढ़ा
द्वितीय विश्व युद्ध में जर्मनी-इटली के हाथों फ्रांस को काफी नुकसान पहुंचा था. यूरोप का पूरा विमानन सेक्टर ध्वस्त हो चुका था. लेकिन इस बाधा को पार पाते हुए फ्रांस की दसॉल्ट एविएशन तेजी से आगे बढ़ रही थी. दसॉल्ट एविएशन 1947-49 में Ouragan फाइटर प्लेन बना रहा था. इस फाइटर प्लेन में 20 एमएम की चार गन लगी हुई थीं और इसके पंखों के नीचे 450-450 किलो के दो बम लगाए जा सकते थे. भारतीय वायुसेना को ये विमान पसंद आए और तत्कालीन पीएम पंडित नेहरू ने इसके लिए ऑर्डर दे दिया. Ouragan फ्रेंच भाषा में अर्थ होता है तूफान (Hurricane). इंडियन एयरफोर्स ने भारतीय संदर्भ में इस विमान का नामकरण किया और इसे पहचान मिली तूफानी नाम से.
25 जून 1953 को भारत ने दिया 71 Ouragans का ऑर्डर
ये डील 1953 में हुई थी. दसॉल्ट एविएशन की वेबसाइट में लिखा है, "25 जून 1953 को भारत ने 71 Ouragans का ऑर्डर दिया, उन्होंने इसका नाम तूफानी रख दिया. बाद में इस ऑर्डर को बढ़ाकर 113 कर दिया गया." इस डील के साथ भारत दसॉल्ट का पहला विदेशी कस्टमर बना था.
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तूफानी की रफ्तार ध्वनि की रफ्तार से कम थी. जिस वक्त भारत ने इस विमान को खरीदा उस वक्त विमानन उद्योग में तेजी से बदलाव हो रहा था. 60 का दशक खत्म होते-होते सुपरसोनिक एयरक्राफ्ट (ध्वनि की रफ्तार से तेज चलने वाले) आने लगे.
तूफानी ने पुर्तगाली ठिकानों पर बरसाए बम
भारत ने इस विमान का इस्तेमाल 1961 में भारत के द्वीप दीव को पुर्तगाली कब्जे से आजाद कराने के लिए उसके ठिकानों पर किया. 1962 में असम और नगालैंड में उग्रवादियों को खदेड़ने में भी ये विमान बड़ा काम आया. 1962 में चीन के साथ युद्ध के दौरान भी इसका इस्तेमाल किया गया. 1965 में वायुसेना ने इस विमान की सेवाएं लेनी बंद कर दीं. इससे पहले 1957 में ही वायुसेना दसॉल्ट से 100 Mystère IV-A लड़ाकू विमान खरीद चुकी थी, जो तूफानी से ज्यादा शक्तिशाली और घातक थे.
दसॉल्ट के साथ जारी रही IAF की साझेदारी
Ouragans के बाद Mystère IV-A और इसके बाद भी दसॉल्ट एविएशन और भारत की साझेदारी जारी रही. 1978 में भारत ने फ्रांस से जगुआर बमबर्षक विमान खरीदा. भारत को 40 जगुआर 'रेडी टू फ्लाई' कंडीशन में मिले, जबकि 120 को दसॉल्ट के लाइसेंस पर हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स में बनाया गया. 1987 से 90 के बीच इस विमान ने श्रीलंका में भारत के शांति रक्षक सेना की इस विमान ने बड़ी मदद की. करगिल की लड़ाई में भी ये विमान कारगर साबित हुआ. लेजर गाइडेड बमों से लैस इस मिसाइल पाकिस्तानी खेमे में कहर बरपा दिया.
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बालाकोट ने याद दिलाया मिराज का शौर्य
1985 में भारत ने दसॉल्ट एविएशन के साथ 49 मिराज 2000 लड़ाकू विमानों का सौदा किया. करगिल की लड़ाई में ऊंची घाटियों में मिराज की मारक क्षमता ने दुश्मन खेमे में कोहराम मचा दिया.
अगर मिराज के ताजा शौर्य को याद करें तो 26 फरवरी 2019 को इन्हीं लड़ाकू विमानों के जरिए भारत ने पाकिस्तान के बालाकोट में घुसकर जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी अड्डों को नष्ट कर दिया था. पाकिस्तान का ये जख्म इतना गहरा है कि आजतक उसने इस जगह को विदेशी मडिया को नहीं दिखाया. लड़ाकू विमान मिराज 2000 के बेड़े को दसॉल्ट एविएशन समझौते के तहत लगातार तकनीकी और सामरिक रूप से अपग्रेड करती रहती है.
IAF की जरूरतों को पूरा करने पर प्रतिबद्ध
इसके बाद भारत और दसॉल्ट एविएशन ने राजनीतिक झंझावतों का शिकार हुए राफेल का सौदा किया. फ्रांस ने 27 जुलाई को 5 राफेल लड़ाकू विमानों की डिलिवरी दे दी है. इस मौके पर दसॉल्ट एविएशन के चेयरमैन एरिक ट्रैपियर ने कहा कि ये नया मील का पत्थर 1953 से शुरू हुए दसॉल्ट एविएशन और भारतीय वायुसेना के बीच शानदार साझेदारी को दिखाता है और आने वाले दशकों में भारतीय वायुसेना की जरूरतों को पूरा करने की हमारी पूर्ण प्रतिबद्धता का परिचायक है.