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इस बार हाथ में आरी लेकर विरोधियों को ललकार रहे हैं राजा भैया

प्रतापगढ़ जिले के कुंडा से पांच बार विधायक रह चुके राजा भैया 1993 से लगातार इस सीट से निर्दलीय जीतते रहे हैं और इस बार फिर से चुनाव मैदान में हैं. हमेशा कि तरह वो इस बार भी निर्दलीय ही चुनाव लड़ रहे हैं, जहां 23 फरवरी को मतदान होना है.

रघुराज प्रताप सिंह रघुराज प्रताप सिंह
बालकृष्ण/सुरभि गुप्ता
  • नई दिल्ली,
  • 21 फरवरी 2017,
  • अपडेटेड 6:52 PM IST

राजा भैया के नाम से मशहूर रघुराज प्रताप सिंह के बेथी महल की झील में मगरमच्छ हैं या नहीं इसको लेकर कई तरह की कहानियां हैं. उनके विरोधियों का कहना है कि इस झील में राजा भैया ने मगरमच्छ पाल रखे हैं, जिसमें वह अपने दुश्मनों को फेंकवा देते हैं. लेकिन कई लोगों का कहना है कि ये कहानियां बढ़ा-चढ़ा कर बताईं जाती हैं.

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उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने उन्हें एक बार कुंडा का गुंडा कहा था, तो मायावती ने उनके महल पर छापा डलवा कर कथित तौर पर तालाब से ऐके 47 बरामद करवाया था. मायावती ने तो उनके ऊपर पोटा लगाकर उन्हें जेल भी भेजवाया था. इस बात से कोई इनकार नहीं करता है कि राजा भैया की इस इलाके में तूती बोलती है.

इस बार भी निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं राजा भैया
प्रतापगढ़ जिले के कुंडा से पांच बार विधायक रह चुके राजा भैया 1993 से लगातार इस सीट से निर्दलीय जीतते रहे हैं और इस बार फिर से चुनाव मैदान में हैं. हमेशा कि तरह वो इस बार भी निर्दलीय ही चुनाव लड़ रहे हैं, जहां 23 फरवरी को मतदान होना है. वो जब पहली बार विधायक बने, तब उनकी उम्र मात्र 25 वर्ष थी. इसके बाद बीएसपी को छोड़कर लगभग हर सरकार में ना सिर्फ सत्ता के करीब रहे बल्कि मंत्री भी बनते रहे.

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लकड़ी काटने वाली आरी है चुनाव चिन्ह
रघुराज प्रताप सिंह भदरी राजघराने के उदय प्रताप सिंह के बेटे हैं और उनके पिता ने दून स्कूल से पढ़ाई की थी. उनकी छवि के मुताबिक इस बार उनका चुनाव चिन्ह लकड़ी काटने वाली आरी है और उनकी रैलियों में समर्थक लकड़ी की आरी हवा में तलवार की तरह उठाकर राजा भैया जिंदाबाद के नारे लगाते हैं.

पिछली बार 88 हजार मतों से जीते थे राजा भैया
समाजवादी पार्टी और कांग्रेस गठबंधन ने राजा भैया के खिलाफ उम्मीदवार नहीं खड़ा किया है. बीजेपी ने उनके खिलाफ जानकी शरण पांडे और बीएसपी ने परवेज अख्तर अंसारी को टिकट दिया है. दोनों को ही कमजोर उम्मीदवार माना जा रहा है. चार दूसरे निर्दलीय उम्मीदवारों ने पर्चा भरा था, लेकिन दो ने नाम वापस ले लिया. पिछली बार राजा भैया 88 हजार मतों से जीते थे. इस बार उनकी लोकप्रियता बढ़ी है या घटी है इस पर सबकी नजरें हैं.

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