
जनरल अशफाक परवेज कियानी के बाद पाकिस्तानी सेना के नए प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल राहील शरीफ होंगे. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने बुधवार को इसका ऐलान किया. जनरल शरीफ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के परिवार के करीबी माने जाते हैं. इसके अलावा उन्हें मौजूदा जनरल कयानी का भी राइट हैंड कहा जाता है. इसके अलावा पीएम शरीफ ने लेफ्टिनेंट जनरल राशिद महमूद को ज्वाइंट चीफ आफ स्टाफ कमेटी का प्रमुख बनाया गया है. राष्ट्रपति मैमून हुसैन ने दोनों नियुक्तियों को अपनी मंजूरी दे दी है.
पीएम और कयानी, दोनों के करीबी हैं नए जनरल
लेफ्टिनेंट जनरल शरीफ 61 वर्षीय जनरल अशफाक परवेज कियानी का स्थान लेंगे जो छह साल तक सेना की कमान संभालने के बाद शुक्रवार को सेवानिवृत्त होने जा रहे हैं. लेफ्टिनेंट जनरल शरीफ अपने शौर्य के लिए देश का प्रतिष्ठित निशान-ए-हैदर सम्मान हासिल करने वाले शब्बीर शरीफ के भाई हैं, जो 1971 में भारत के साथ युद्ध में मारे गए थे.
बताया जाता है कि शरीफ के पूर्व सेना प्रमुखों और शीषर्स्थ अधिकारियों के साथ ही लाहौर की सियासत में गहरा दखल रखने वालों से बहुत अच्छे ताल्लुकात हैं. महमूद के नवाज परिवार के साथ अच्छे रिश्ते हैं और वह कयानी के विश्वासपात्रों में एक हैं. उन्हें कयानी का दाहिना हाथ कहा जाता है. लेफ्टिनेंट शरीफ ने इससे पहले गुजरांवाला कोर के कमांडर, पाकिस्तान सैन्य अकादमी काकुल के कमांडर और जनरल आफिसर कमांडिंग लाहौर से भी मुलाकात की.
उधर लेफ्टिनेंट महमूद ने लाहौर के कोर कमांडर के तौर पर अपनी सेवाएं दी हैं और वह पूर्व राष्ट्रपति रफीक तरार के सैन्य सचिव भी रहे हैं. महमूद बलोच रेजीमेंट के हैं और उन्होंने आईएसआई के उप महानिदेशक के तौर पर जनरल कयानी के मातहत काम किया है.
दोनों जनरल को लेफ्टिनेंट जनरल हारून इस्लाम पर तरजीह दी गई है, जो इस समय कयानी के बाद सबसे वरिष्ठ जनरल हैं और लोजिस्टिक्स स्टाफ के प्रमुख हैं. वह अप्रैल में सेवा निवृत्त होने वाले हैं. कयानी को पूर्व सैनिक शासक जनरल परवेज मुशर्रफ ने 2007 में सेना प्रमुख के तौर पर चुना था. उन्हें प्रधानमंत्री युसुफ रजा जिलानी ने 2010 में तीन वर्ष का अभूतपूर्व कार्य विस्तार दिया.
अपने जनरल से दो बार धोखा खा चुके हैं शरीफ
पाकिस्तानी सेना प्रमुख को चुनना असैनिक सरकार के लिए आसान काम नहीं है और इस मामले में दो बार धोखा खा चुके शरीफ के लिए तो बिलकुल नहीं.यह चौथा मौका है, जब शरीफ ने किसी सेना प्रमुख का चयन किया है. उन्होंने 1993 में अब्दुल वहीद काकर को सेना प्रमुख बनाया, लेकिन उन्होंने शरीफ को धोखा दे दिया और एक समय तो ऐसा आया, जब उन्होंने शरीफ को इस्तीफे के रास्ते तक ले जाने में अहम भूमिका निभाई.काकर को कम से कम चार वरिष्ठ जनरल पर तरजीह दी गई थी.
1998 में शरीफ ने कम से कम दो जनरलों पर परवेज मुशर्रफ को तरजीह दी, लेकिन उन्होंने 1999 में कारगिल संघर्ष की साजिश रचने के साथ ही उसी साल प्रधानमंत्री के खिलाफ बगावत को हवा दी.अक्तूबर 1999 में शरीफ ने जियाउद्दीन बट्ट को चुना, लेकिन मुशर्रफ की फैलाई बगावत के कारण वह शपथ नहीं ले पाए.
नये सेना प्रमुख को ऐसे समय में कार्यभार सौंपा गया है, जब अफगानिस्तान से विदेशी सेनाएं वापस लौट रही हैं और पाकिस्तानी तालिबान तथा नवाज शरीफ सरकार के बीच बातचीत का खेल चल रहा है.भारत के साथ सरकार के राजनयिक दांवपेच के साथ ही उन्हें अमेरिका, चीन और खाड़ी देशों के साथ रिश्तों की नैया पार लगानी है और घरेलू मोर्चे पर भी कई चुनौतियों का सामना करना है.