
कांग्रेस पार्टी में नए अध्यक्ष की तलाश पूरी हो चुकी है और अगले माह राहुल गांधी अध्यक्ष पद संभालेंगे. कांग्रेस की विरासत को संजोए हुए राहुल सोई हुई पार्टी को दोबारा जगाने की कोशिश करेंगे. वह युवा हैं तो देश के युवाओं से खुद को कनेक्ट करना भी उनके लिए काफी अहम होगा. पहली नजर में तीन चुनौतियों के आसरे 19 दिसबंर को राहुल गांधी की ताजपोशी होगी, तो क्या वाकई कांग्रेस करवट ले लेगी.
साल 2004 में ही जब राहुल गांधी चुनावी पर्चा भरने निकले तो बीजेपी ही नहीं संघ परिवार में भी ये बहस शुरू हो गई थी कि बीजेपी को भी युवा चेहरा चाहिए, यानी वाजपेयी-आडवाणी से आगे देखने की शुरुआत सही मायने में राहुल गांधी के राजनीति में कूदने से ही संघ परिवार में शुरू हुई थी. अब जब राहुल गांधी कांग्रेस की कमान संभालेंगे तो अगला सवाल यही होगा कि क्या बीजेपी-संघ परिवार में फिर कोई नया चिंतन शुरू होगा? या फिर बीजेपी के सामने सबसे कमजोर कांग्रेसी अध्यक्ष होगा?
मजबूत विपक्ष की भूमिका
इन दोनों सवालों से समझना ये जरूरी है कि कांग्रेस के हाथों जिन वजहों से सत्ता गई और बीजेपी की सत्ता के दौर में कांग्रेस को लेकर जिस तरह मोदी सरकार बेफिक्र है उसकी वजह दो ही है. पहली, कांग्रेस विपक्ष की भूमिका में कमजोर रही और बीजेपी विपक्ष में भूमिका में हमेशा मजबूत रही है. लेकिन राहुल गांधी बतौर अध्यक्ष कांग्रेस के लिए ऑक्सीजन का काम करेंगे, ये आने वाला वक्त तय करेगा.
तेजी से फैसले लेने की क्षमता
अब तक कांग्रेस में जो अनिर्णय की स्थिति रहती थी क्या उस पर राहुल की ताजपोशी के बाद लगाम कसेगी. चुनाव आते ही कांग्रेस की कई हलकों से प्रियंका गांधी को कमान देने की मांग भी उठती रही है तो अब राहुल के अध्यक्ष बनने से प्रियंका के शोर पर विराम लग जाएगा. कांग्रेस पंरपरागत राजनीति छोड़ तेजी से बदलाव की ओर भी आगे बढ़ सकती है. यहीं से राहुल की कार्यशौली और निर्णय लेने की क्षमता बताएगी कि कांग्रेस में बदलाव कैसे आएंगे.
जनता से कनेक्शन
मौजूदा वक्त में हर बुजुर्ग कांग्रेसी का वंश कांग्रेस में सत्ता के लिए हाथ पैर मार रहा है. साथ ही कांग्रेसी खुद को सत्ताधारी मानते हैं, विपक्ष में रहकर संघर्ष करना ही नहीं जानते और कई तो कद्दावर नेता तो आरामपंसद है, उन्हें फर्क पड़ता ही नहीं सत्ता किसी की भी रहे. ऐसे में राहुल गांधी को कांग्रेस बदलनी नहीं है बल्कि कांग्रेस को संघर्ष के उस रास्ते लाकर खड़ा करना है. जहां नेता-कार्यकर्ता का भेद खत्म हो और 10 जनपथ का डर खत्म हो. चापलूसों की जगह न रहे और कांग्रेसी विपक्ष में रहते हुए संघर्ष करना भी सीख जाए.