
सोशल मीडिया रणनीति में बदलाव के बाद राहुल गांधी को इस प्लेटफॉर्म पर मिल रहे अच्छे रिस्पॉन्स से कांग्रेस नए जोश में है. राहुल फ्रंटफुट पर बैटिंग करते दिखें, इसके लिए उनके ट्विटर हैंडल में भी अहम बदलाव करने की तैयारी है. अब जल्दी ही राहुल ट्विटर पर अपने नाम यानी @rahulgandhi के साथ नजर आ सकते हैं.
दिवाली के बाद मौसम का मिजाज बदलता है. हवा में हल्की ठंडक अभी से महसूस की जा रही है. लेकिन कुछ महीने पहले सोशल मीडिया टीम बदलने के बाद कांग्रेस को सियासी मौसम भी सुहावना होता दिख रहा है. क्या वाकई देश की राजनीतिक फिजा का मिजाज बदलने की सुगबुगाहट है.
2014 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सत्ता पर काबिज हुए तो उनकी लोकप्रियता आसमान छू रही थी. टीवी के साथ साथ सोशल मीडिया पर भी वो छाए हुए थे. मोदी की उस आंधी में दूर दूर तक उनका कोई विरोधी नेता नहीं टिक सका. मोदी मैजिक के उस दौर में किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि साढ़े तीन साल के अर्से में ही राहुल गांधी उन्हें उनके ही खेल में पीछे छोड़ देंगे. यानी सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्म पर जो मोदी का सबसे बड़ा प्लसपाइंट माना जाता रहा है, उसी पर राहुल बढ़ते दिख रहे हैं.
सोशल मीडिया के सियासी मीटर की सुई राहुल गांधी के नए कलेवर और तेवर की ओर मुड़ने लगी है. पिछले तीन महीने का ग्राफ देखें तो कांग्रेस उपाध्यक्ष ट्विटर हैंडल पर फॉलोअर्स की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है. राहुल गांधी के ट्विटर हैंडल @OfficeOfRG पर मई में 20 लाख फॉलोअर्स नजर आते थे जो अब बढ़कर 37 लाख से ज्यादा हो चुके हैं. यानी मई से अब तक 17 लाख फॉलोअर्स बढ़ चुके हैं.
राहुल गांधी के ट्विटर हैंडल की बढ़ती लोकप्रयिता को देखते हुए अब @OfficeOfRG से ‘OfficeOf’ हटाने की मांग उठने लगी है. सूत्रों के मुताबिक राहुल गांधी अब लोगों से सीधा संवाद बनाने के लिए जल्द अपने नाम से ट्वीट करना शुरू कर सकते हैं. इस काम की शुरुआत राहुल की कांग्रेस के अध्यक्ष पर ताजपोशी होने के साथ ही संभावना है. संकेत मिल रहे हैं कि राहुल इसी माह के अंत में या नवंबर के पहले हफ्ते में पार्टी अध्यक्ष के तौर पर कमान संभाल सकते हैं.
पार्टी के सोशल मीडिया सेल में ये चर्चा जोरों पर है की अगर उनके हैंडल को बदल के उनके नाम @rahulGandhi से ट्वीट किया जाय तो कैसा रहेगा? हालांकि सूत्रों के मुताबिक राहुल चाहते हैं कि अगर वो खुद ट्वीट करें तो उसकी अलग पहचान हो. उनके लिखे गए ट्वीट के आगे आर (R) लिखा जा सकता है. जब वो किसी रैली को संबोधित कर रहे होंगे तो उनके हैंडल से ट्वीट बिना R के होगा. इस पूरी कवायद पर राहुल की आखिरी मुहर लगना अभी बाकी है.
ये राहुल गांधी के ट्विटर हैंडल की धाक बढ़ने का ही असर है कि @OfficeOfRG अब @narendramodi को टक्कर दे रहा है. हालत ये है कि राहुल के ट्वीट को ज्यादा री-ट्वीट मिल रहे हैं. मिसाल के तौर पर 15 अक्टूबर को राहुल गांधी के अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प के पाकिस्तान से बेहतर रिश्ते बनाने संबधी बयान पर किए ट्वीट पर नज़र डालिए- ' मोदी जी जल्दी, लगता है राष्ट्रपति ट्रम्प को एक और झपी चाहिए।‘ राहुल के ट्वीट का तीर सही निशाने पर लगा. इस ट्वीट को लगभग 19700 रिट्वीट मिले. सोशल मीडिया की चुनौती को देर से ही सही कांग्रेस गंभीरता से ले रही है. जाहिर है सोशल मीडिया का ये बदला मिजाज बीजेपी के माथे पर चिंता की लकीरें बढ़ाएगा बेशक ही वो इसे जाहिर ना करें.
एक वो वक्त था जब राहुल को एक नाम देकर किए जाने वाले जोक्स सोशल मीडिया का टाइम पास था. राहुल गांधी विपासना पर भी जाते तो उन पर किए जाने वाले ट्रॉल बढ़ जाते थे. राहुल की हर बात को हास परिहास का विषय बना दिया जाता था.
राहुल के पक्ष में सोशल मीडिया के ताजा झुकाव का संकेत इसी से मिलता है कि उन्होंने सितंबर में अपने धुर विरोधी नरेंद्र मोदी और AAP नेता अरविंद केजरीवाल को ट्विटर पर ओवरटेक कर लिया. राहुल को औसतन 2784 री-ट्वीट मिले जबकि मोदी को 2506 और केजरीवाल को 1722. राहुल का अक्टूबर में प्रदर्शन और भी बेहतर रहा. रीट्वीट की दौड़ में राहुल के हैंडल ने 3812 रीट्वीट हिट किए जो मोदी और केजरीवाल से कहीं आगे है.
सोशल मीडिया के बदले मिजाज पर कांग्रेस नेता आरपीएन सिंह का कहना है कि मोदी तीन साल से ट्विटर पर सिर्फ जुमलेबाज़ी में लगे हैं. वहीं राहुल किसानों, युवाओं, लोगों की आवाज़ उठा रहे हैं. वो लगातार सरकार के झूठ के खिलाफ सच बोल रहे हैं. यह ट्विटर पर लोग देख रहे हैं, समझ रहे हैं, इसलिए उनकी लोकप्रियता बढ़ रही है.
हालांकि बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय कांग्रेस के सोशल मीडिया को लेकर दावों को सिरे से खारिज करते हैं. मालवीय ने कहा, 'मैं कांग्रेस की ओर से सोशल मीडिया पर बदलाव के बारे में बड़ी बड़ी बातें सुन रहा हूं कि राहुल नए-नए प्रयोग कर रहे हैं. लेकिन देखना होगा कि उनमें कितनी सत्यता है और लोग उसे सच समझ कर कितना अपना रहे हैं. ये लंबी प्रक्रिया होती है और ऐसा नहीं कि दो तीन महीने में रंग बदल जाए.' मालवीय ने कहा कि बीजेपी सोशल मीडिया पर अपनी बात प्रभावी ढंग से कहती है जिसे बड़ी संख्या में लोग सुनते हैं. समाज के हर वर्ग के लोग इनमें हैं. जिस पार्टी के पास विजन होगा, प्रभावी नेतृत्व होगा लोग उसी से जुड़ते हैं.
जाहिर है कि देश के मौजूदा राजनीतिक हालात सोशल मीडिया पर प्रभाव डालते है और कहीं ना कहीं राहुल को इसका फायदा मिल रहा है. राहुल के समर्थक इसे कछुए और खरगोश की कहानी से जोड़कर देखते हैं कि आखिर में जीत कछुए की ही होती है. हालांकि इस बारे में अभी कुछ कहना जल्दबाजी है. सियासी दमखम का असली इम्तिहान 2019 में होना है. उसी से पता चलेगा कि दिल्ली किसके कितनी पास और कितनी दूर.