"आपने हमें रोककर अच्छा नहीं किया. उसे (राहुल गांधी को) बेरोक-टोक बोलने दिया. उसी समय दबोचना चाहिए था. हमारे प्रधानमंत्री पर निजी टिप्पणी हुई और हम चुप रह गए." बीजेपी सांसदों की यह नाराजगी अपने ही संसदीय कार्यमंत्री एम. वेंकैया नायडू से थी, जिन्होंने संसद के बजट सत्र पार्ट-2 के पहले दिन ही मोदी सरकार पर जहर बुझे तीर बरसाने वाले राहुल की राह सहज करते हुए अपने सांसदों को टोकाटाकी करने से रोक दिया था. लेकिन जब सांसदों ने संसदीय दल की बैठक में गुस्से का इजहार किया तो नायडू ने समझाया, ''यह हमारी संस्कृति" नहीं है. दरअसल, बीजेपी के सांसद राहुल के खिलाफ निजी टिप्पणी कर उन्हें बैकफुट पर धकेलने की दलील दे रहे थे.
लेकिन बीजेपी नेतृत्व भावावेश में आने की बजाए ऐसी रणनीति अपनाना चाहता है जिससे कांग्रेस ही उसके साथ मुख्य मुकाबले में नजर आए. वरना इसका फायदा क्षेत्रीय दल उठा सकते हैं. दिल्ली विधानसभा का चुनाव इसकी नजीर बन चुका है. जहां बीजेपी ने अपना वोट शेयर तो बचा लिया, लेकिन कांग्रेस विरोधी वोट पूरी तरह से आम आदमी पार्टी के पक्ष में चला गया और इसका भारी खामियाजा (70 में से तीन ही सीटें जीत पाई) बीजेपी को उठाना पड़ा.
राहुल अवतार से असमंजस
संसद सत्र के दौरान अपनी छुट्टियों की वजह से विरोधियों के बीच नॉन सीरियस कहे जाने लगे राहुल गांधी ने वापसी की तो बात-बात पर आस्तीनें चढ़ाने वाला एंग्री यंगमैन का अंदाज गायब था. किसान-मजदूर-गरीब की समस्याओं के साथ मोदी सरकार पर राजनैतिक टिप्पणी का अंदाज भी अलग था. शायद इसका इलहाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सिपहसालारों को नहीं था, इसलिए वे राहुल को छुट्टियों पर घेरने का मौका चूक गए. और राहुल ने उसका फायदा उठाते हुए बजट सत्र के दूसरे हिस्से में धारदार तरीकों से मुद्दे उठाने शुरू कर दिए. उन्होंने किसानों की दुर्दशा से लेकर अनाज खरीद में देरी, युवाओं से जुड़े नेट न्यूट्रेलिटी और अपने संसदीय क्षेत्र अमेठी में फूड पार्क बंद किए जाने का मुद्दा लोकसभा में उठाया. संसद के बाहर भी रियल एस्टेट बिल से लेकर किसानों की आत्महत्या जैसे मुद्दे उठाए. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी लोकपाल, सूचना आयोग में नियुक्ति में देरी का मुद्दा उठा दिया. कांग्रेस की दबाव की रणनीति काम भी आई और रियल एस्टेट बिल को राज्यसभा में सेलेक्ट कमेटी को भेजना पड़ा तो भूमि अधिग्रहण बिल को सरकार ठंडे बस्ते में डालती दिख रही है.
राहुल के बदले तेवर से सरकार कितनी परेशान है, इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि सदन में जवाब देने के लिए तीन से चार मंत्री खड़े हो जाते थे. किसानों के मुद्दे पर कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने तथ्यात्मक जवाब दिया जिसकी खुद मोदी ने बाद में तारीफ की, लेकिन वे राहुल को राजनैतिक रूप से मात नहीं दे पाए. नेट न्यूट्रेलिटी पर संचार मंत्री रविशंकर प्रसाद भी निजी टिप्पणी से बचे. तो सड़क और परिवहन मंत्री नितिन गडकरी तीन दिन बाद सदन में लिखित स्पष्टीकरण के साथ आने को मजबूर हुए. दूसरी ओर, बीजेपी का एक धड़ा इस पक्ष में है कि राहुल जिस तरह मोदी सरकार पर निजी टिप्पणियां कर रहे हैं, पार्टी को भी उसी भाषा में जवाब देना चाहिए.
कांग्रेस युक्त भारत की रणनीति
लेकिन बीजेपी राजनैतिक नफा-नुक्सान को देखकर कदम उठाना चाहती है. प्रधानमंत्री मोदी ने लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया था. लेकिन साल भर के भीतर ही राजनीति ने जिस तरह करवट ली है, बीजेपी के रणनीतिकारों को लगने लगा है कि कांग्रेस का मुकाबले में रहना ही पार्टी के लिए हितकारी है. बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता और चुनाव विश्लेषक जीवीएल नरसिंह राव कहते हैं, ''जब हम कांग्रेस के खिलाफ आवाज उठाते हैं तो हम उसकी राजनीति, विचारधारा को चुनौती देते हैं. ऐसा नहीं कि हम कांग्रेस को खत्म करना चाहते हैं. दरअसल, कांग्रेस की वजह से देश को जो नुक्सान हुआ है, हम उसकी बात करते हैं." लोकसभा चुनाव के आंकड़ों का विश्लेषण यह बताता है कि जिन क्षेत्रों में बीजेपी का कांग्रेस से सीधा मुकाबला हुआ, वहां पार्टी की जीत की दर 88 फीसदी रही और जहां क्षेत्रीय दलों से मुकाबला हुआ वहां 49 फीसदी.
राजनैतिक लिहाज से बीजेपी के लिए कांग्रेस युक्त भारत मुफीद है. हाल ही में जनता परिवार की एकजुटता ने पार्टी की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. बीजेपी को लगता है कि जनता परिवार बिहार में उसके लिए बड़ी चुनौती पेश करेगा. इसलिए पार्टी आरजेडी से निकाले गए सांसद पप्पू यादव और पूर्व सीएम जीतन राम मांझी जैसे लोगों पर निगाह गड़ाए हुए है. बीजेपी का मानना है कि जनता परिवार में चुनाव से पहले भारी उथल-पुथल होगी. इसलिए पार्टी राहुल को तरजीह देकर यह संदेश देना चाहती है कि उसके मुकाबले में सिर्फ कांग्रेस ही है.
बीजेपी के एक पदाधिकारी कहते हैं, ''मोदी को मौत का सौदागर जैसी नकारात्मक टिप्पणियों ने ही हीरो बनाया, हम भी वैसी निजी टिप्पणी कर राहुल को बढ़ावा नहीं देंगे. लेकिन राहुल को नीतिगत मसलों पर तथ्यों के साथ जवाब दिया जाएगा." लेकिन राहुल जिस तरह से मोदी सरकार पर हमलावर हैं, उसने बीजेपी में जबरदस्त खलबली तो मचा ही दी है.