
एक तरफ दो दिन पहले ही उत्कल एक्सप्रेस के दुघर्टना का दर्द और दूसरी तरफ 55 बरस में बनी वो पांच समितियां जिनमें से किसी एक को भी अमल में ले आया गया होता तो भारतीय रेल को वाकई इंतजार बुलेट ट्रेन का होता. लेकिन बुलेट ट्रेन के इंतजार में भारतीय रेल एक लाख से ज्यादा बार दुर्घटनाग्रस्त हो चुकी है. हालात कितने बुरे हैं ये इससे भी समझा जा सकता है कि सिर्फ रेल मंत्री सुरेश प्रभु के राज में 27 रेल हादसे हो चुके हैं, जिसमें 259 यात्रियों की मौत हो चुकी है.
अगर बीते पांच बरस का कच्चा चिट्ठा ये सोच कर देखें कि पहले की सरकार में भी तो खूब दुर्घटनाएं होती रहीं तो 2012 से 2017 के बीच देश में 1012 रेल हादसे हो चुके हैं. और हादसे होते रहेंगे क्योंकि सुरक्षा के इंतजाम हैं नहीं और बुनियादी ढांचा जर्जर है.
दरअसल, रेल हादसों में मौत का मतलब अब फकत जांच है, और जांच रिपोर्ट का सिवाय धूल फांकने के कुछ होता नहीं, और रेल हादसों से निपटने के लिए बनाई समितियां सिवाय नौटंकी से ज्यादा कुछ साबित हुई नहीं. वरना ध्यान दीजिए तो
- 1962 में गठित कुंजरु कमेटी
- 1968 में गठित बांचू कमेटी
- 1978 में बनी सीकरी कमेटी
- 1998 में गठित खन्ना समिति
- 2012 अनिल काकोदर समिति
इन पांच रिपोर्ट की 80 फीसदी से ज्यादा सिफारिशें धूल फांक रही हैं, मनमोहन सरकार के दौर में अनिल काकोदकर समिति गठित हुई जिसने 106 अहम सिफारिशें की लेकिन ज्यादातर सिफारिशें अभी भी फाइलों में धूल फांक रही हैं. काकोदकर समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि रेलवे में सुरक्षा इंतजामों को दुरुस्त करने के लिए अगले पांच साल में एक लाख करोड़ की जरूरत होगी.
लेकिन, 2017-18 के लिए सुरक्षा इंतजामों का बजट देखें तो वो महज 10153 करोड़ हैं और इस बीच देश की प्राथमिकता बुलेट ट्रेन है. जिसके 2022 तक चलने को लेकर सरकार उत्साहित है और मुंबई-अहमदाबाद के बीच 505 किलोमीटर बुलेट रेल कॉरिडोर के निर्माण पर करीब ₹98,000 करोड़ की लागत आएगी. यह जानकारी 2015 में किसी और ने नहीं लोकसभा में रेलवे राज्य मंत्री मनोज सिन्हा ने दी थी.