
भारतीय सिनेमा के पहले 'शोमैन' महान फिल्मकार राज कपूर पर्दे के पीछे जितने बड़े कलाकार थे उतने ही बड़े पर्दे के सामने भी नजर आते थे. राज को हिंदी सिनेमा में उन चुनिंदा अभिनेताओं में शुमार किया जाता है जो समाज पर अपना असर छोड़ने में कामयाब रहे.
यह अजीब संयोग है कि महान फिल्मकार राज कपूर और उनके अजीज दोस्त और गीतकार शैलेंद्र दोनों के जीवन में 14 दिसंबर की तारीख का अहम रोल है. 1924 में 14 दिसंबर को पेशावर में राज जन्मे थे तो इसके 42 साल बाद 1966 में शैलेंद्र ने 43 साल की उम्र में जीवन की अंतिम सांस ली थी.
1966 में जब शैलेंद्र का निधन हुआ तो राज कपूर 'मेरा नाम जोकर' फिल्म बनाने में बिजी थे और उनकी टीम उनके जन्मदिन पर जश्न मनाने की तैयारी में जुटी थी. इस बीच फिल्म तीसरी कसम के फ्लॉप होने से शैलेंद्र को मानसिक आघात पहुंचा और उनकी तबीयत काफी बिगड़ गई. उसी दिन दोपहर बाद वह अस्पताल में जीवन-मौत के बीच संघर्ष कर रहे थे और उनकी स्थिति के बारे में गायक मुकेश लगातार राज को अपडेट दे रहे थे. लेकिन कुछ घंटे बाद राज के पास वो आखिरी कॉल आई जिसमें उन्हें पता चला कि उनके अजीज दोस्त इस दुनिया छोड़कर चले गए.
शैलेंद्र की बरसात से एंट्री
शैलेंद्र को फिल्म दुनिया का हिस्सा बनाने में राज सबसे बड़ा योगदान था. यों कहें कि राज ने महज 25 साल की उम्र में ही इस नायाब प्रतिभा को पहचाना और अपनी नई टीम के साथ जोड़ लिया. 1949 में आई फिल्म बरसात के सारे गाने हसरत जयपुरी ने लिख दिए थे, लेकिन शैलेंद्र की मदद के लिए उन्होंने उनसे दो गाने 'बरसात में हमसे मिले तुम' और 'पतली कमर है' इस फिल्म के लिए लिखवाए, जिसमें पहला गाना टाइटल सॉन्ग है जो बेहद लोकप्रिय हुआ. इसे भारतीय सिनेमा का पहला टाइटल सॉन्ग का दर्जा भी हासिल है.
शैलेंद्र रेलवे में काम करते थे और कवि सम्मेलनों में जाया करते थे. इस दौरान एक मुशायरे में राज ने शैलेंद्र के गीत 'जलता है पंजाब' सुना और बेहद प्रभावित हुए. उन्होंने फिल्मों के लिए लिखने का ऑफर दिया. इसे नहीं स्वीकार करने पर इस गाने को फिल्म आग के लिए राज ने खरीदना चाहा तो भी उन्होंने मना कर दिया. वक्त गुजरने के साथ ही शैलेंद्र पर आर्थिक संकट मंडराने लगा तो वह राज के पास गए और काम मांगा जिसे उन्होंने बरसात के लिए गाने लिखने का मौका दिया.
और फिर यहां से इन दो महान हस्तियों की जुगलबंदी ने ऐसा सुर छेड़ा जो अमर हो गया और जब तब ये दुनिया रहेगी, इनके सुर बजते रहेंगे. राज और शैलेंद्र ने करीब 21 फिल्मों में एक साथ काम किया.
1949 में बरसात से शुरू हुई यह कहानी आवारा (1951), अनहोनी, आह, बूट पॉलिस, श्री 420, जागते रहो, चोरी-चोरी, अब दिल्ली दूर नहीं, मैं नशे में हूं, कन्हैया, अनाडी, जिस देश में गंगा बहती है, आशिक, एक दिल सौ अफसाने, संगम, तीसरी कसम, दीवाना, अराउंड द वर्ल्ड, सपनों का सौदागर और मेरा नाम जोकर (1970) तक चली. शैलेंद्र की अचानक हुई मौत के कारण मेरा नाम जोकर का यह गाना 'जीना यहां मरना यहां' अधूरा रह गया जिसे पूरा किया था उनके बेटे शैली शैलेंद्र ने.
संगीत की दुनिया में राज की चौकड़ी
राज और शैलेंद्र के साथ गायक मुकेश और संगीतकार शंकर-जयकिशन ने एक साथ मिलकर कई धमाल किए. इस चौकड़ी ने आवारा हूं (आवारा), रमैया वस्तावैया (श्री420), मेरा जूता है जापानी (श्री 420), किसी की मुस्कराहटों पे (अनाड़ी), जीना यहां मरना यहां (मेरा नाम जोकर) जैसे ढेरों यादगार नगमें देकर न सिर्फ हिंदी सिनेमा को संपन्न बनाया बल्कि भारतीय सिनेमा को बड़ी सौगात सौंप गई. राज शैलेंद्र को बड़े प्यार से पुष्किन या कविराज कहा करते थे.
संगीत के क्षेत्र में उनके पंसदीदा संगीतकार रहे शंकर-जयकिशन. उन्होंने इस जोड़ी के साथ 20 फिल्मों में काम किया जिसमें 10 तो उनके ही प्रोडक्शन के बैनर तले बनी फिल्में थीं. हालांकि इसमें 2 फिल्मों में शंकर ने अकेले संगीत दिया क्योंकि जयकिशन का निधन हो चुका था.
मधुबाला पहली नायिका
राज कपूर 1924 में पेशावर में जन्मे थे और अपनी पिता अभिनेता पृथ्वी राज कपूर के नक्शेकदम पर चलते हुए फिल्मी दुनिया में कदम रखने का फैसला लिया. 1945 में इंकिलाब से पहली बार पर्दे पर नजर आए, इसके बाद अन्य कई फिल्मों में काम किया. लेकिन 1947 में नीलकमल से उन्हें बड़ा ब्रेक मिला और लीड रोल में मधुबाला के साथ दिखाई दिए. इस तरह से मधुबाला राज की पहली फिल्मी नायिका बनी.
नर्गिस और मधुबाला के अलावा नूतन और बैजंतीमाला के साथ भी पर्दे पर नजर आए.
24 साल की उम्र में राज ने आरके प्रोडक्शन शुरू किया और उस समय फिल्म आग (1948) को निर्देशित कर सबसे युवा निर्देशक बने. 1949 का साल उनके लिए बेहद कामयाबी भरा रहा. महबूब खान की फिल्म अंदाज में वह दिलीप कुमार और नर्गिस के साथ जो उनके करियर की पहली बेहद कामयाब फिल्म थी. वहीं इसी साल बतौर निर्माता-निर्देशक बरसात ने भी जोरदार कामयाबी दिलाई.
उन्हें 3 राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार के साथ-साथ 11 फिल्मफेयर अवार्ड भी मिले. प्रतिष्ठित टाइम मैगजीन ने आवारा में राज के काम को दुनिया के 10 बेहतरीन परफॉरमेंसेंस में से एक करार दिया है. उनकी फिल्में एशिया और यूरोप में भी बेहद लोकप्रिय रहीं. रूस में राज आज भी जाने-पहचाने नाम की तरह हैं और उनकी फिल्मों के गाने सुने जाते हैं. तत्कालीन सोवियत रूस में भारतीय संस्कृति की पहचान 3 बातों से होती थी जिसमें शिव, योग और राज कपूर शामिल थे.
नर्गिस के साथ कामयाब रही जोड़ी
नर्गिस के साथ राजकपूर ने करीब 16 फिल्मों में काम किया. दोनों की एक साथ आई पहली फिल्म थी आग. जबकि चोरी-चोरी (1956) बतौर नायिका राज के साथ आखिरी फिल्म थी. हालांकि इसके बाद जागते रहो (1956) में कैमियो के रूप में नजर आई.
राज एक टीम के साथ काम करना पसंद करते थे. उनकी टीम में गीतकार के तौर पर शैलेंद्र और हसरत जयपुरी, संगीतकार के रूप में शंकर जयकिशन, गायक के रूप में मुकेश, मन्ना डे और लता मंगेशकर, नायिका के तौर पर नर्गिस और ललिता पवार अहम हिस्सा हुआ करते थे. हालांकि उन्होंने कई अन्य कलाकारों के साथ भी काम किया और कामयाबी हासिल की.