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राजस्थान उपचुनाव: अशोक गहलोत को BJP की चुनौती और पायलट का डर

राजस्थान में 2 सीटों पर हो रहा उपचुनाव मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के लिए बड़ी चुनौती है. एक तरफ बीजेपी धारा 370 और राष्ट्रवाद के मुद्दे पर आत्मविश्वास से लबरेज है तो दूसरी तरफ अशोक गहलोत को अपने 9 महीने के कामकाज पर वोट मांगना है.

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत
शरत कुमार
  • जयपुर,
  • 25 सितंबर 2019,
  • अपडेटेड 3:23 PM IST

  • अशोक गहलोत 9 महीने के अपने कामकाज पर मांगेंगे वोट
  • विधानसभा की 2 सीटों के लिए 21 अक्टूबर को वोटिंग होगी

राजस्थान में दो सीटों पर हो रहा उपचुनाव मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के लिए बड़ी चुनौती है. एक तरफ बीजेपी धारा 370 और राष्ट्रवाद के मुद्दे पर आत्मविश्वास से लबरेज हैं तो दूसरी तरफ अशोक गहलोत को अपने 9 महीने के कामकाज पर वोट मांगना है. इस बार भी अशोक गहलोत चूके तो सचिन पायलट के सिर उठाने की संभावना बनी हुई है.

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राजस्थान में विधानसभा की 2 सीटों के लिए 21 अक्टूबर को वोट डाला जाना है. इनमें से मंडावा सीट पर विधायक रहे नरेंद्र खीचड़ बीजेपी से झुंझुनू लोकसभा सीट से सांसद बन गए हैं.

दूसरी तरफ खींवसर सीट से विधायक हनुमान बेनीवाल नागौर से एनडीए उम्मीदवार के रूप में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के सांसद बन गए हैं. विधानसभा चुनाव में जैसे-तैसे जीत हासिल करने वाली कांग्रेस के लिए लोकसभा चुनाव किसी बुरे सपने से कम नहीं था जिसमें वह 25 की 25 सीटें हार गई. उस वक्त मुख्यमंत्री अशोक गहलोत देशभर में मोदी लहर होने के बहाने से बच गए थे लेकिन इस बार उपचुनाव में इन्हें अपने 9 महीने के कामकाज का ब्यौरा देना है.

अशोक गहलोत कह रहे हैं कि तैयारी पूरी है और हम उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के साथ मिलकर संगठन को लेकर चुनाव लड़ेंगे. विधानसभा चुनाव में मंडावा सीट कांग्रेस 2300 वोटों से हारी थी. इसलिए उम्मीद की जा रही है कि पिछली बार के उम्मीदवार रीटा चौधरी को ही कांग्रेस रिपीट करेगी जबकि बीजेपी के लिए वहां पर उम्मीदवार खोजना आसान नहीं होगा.

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इस सीट से सांसद बने नरेंद्र खीचड़ दो बार विधायक रहे हैं. पहली बार निर्दलीय जीते थे और दूसरी बार बीजेपी से जीते थे. वहीं खींवसर सीट कांग्रेस के लिए बड़ा सिर दर्द है. यहां पर हनुमान बेनीवाल ने साढ़े सात हजार से ज्यादा वोटों से उसे हराया था. वहीं बीजेपी तीसरे स्थान पर थी.

प्रदेश में बीजेपी ने सतीश पूनिया को राजस्थान बीजेपी का अध्यक्ष बनाया है. पिछले 20 सालों में पहली बार ऐसा हो रहा है कि वसुंधरा राजे के बिना बीजेपी राज्य में चुनाव में जा रही है. ऐसे में यह भी देखना होगा कि बिना वसुंधरा के बीजेपी अपनी ताकत किस कदर दिखा पाती है. यह चुनाव वसुंधरा विरोधी गुट के लिए भी लिटमस टेस्ट होगा और सतीश पूनिया को भी यह साबित करना होगा कि राज्य में वह बीजेपी को आगे लेकर जा सकते हैं.

बीजेपी के लिए बड़ी सिरदर्द एनडीए के घटक राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी भी है. जिसका कहना है कि खींवसर सीट पर उसका हक है और समझौते के तहत उसे मिलना चाहिए. हनुमान बेनीवाल का जाट वोट बैंक पर काफी अच्छा असर है. ऐसे मे बीजेपी चाहेगी कि हनुमान बेनीवाल का इस्तेमाल जाट बहुल मंडावा सीट पर भी हो. मगर वसुंधरा राजे का खेमा चाह रहा है कि हनुमान बेनीवाल की पार्टी से कोई समझौता नहीं हो.

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राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को इस बात का डर जरूर सता रहा है कि धारा 370 और राष्ट्रवाद जैसे मुद्दे राज्य के देहात के इलाकों में काफी असर छोड़ रहे हैं और बीजेपी इसे जमकर भुना भी रही है. कहीं ऐसा ना हो कि यह चुनाव भी इन्हीं मुद्दों की भेंट चढ़ जाएगा. अगर ऐसा हुआ तो यह अशोक गहलोत के लिए यह मुश्किल का सबब बन जाएगा.

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