
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने खनन माफिया पर शिकंजा कसने को कहा तो 11 जून की समीक्षा बैठक में डीजीपी कपिल गर्ग ने उन्हें बताया कि माफिया ने पुलिस को और भ्रष्ट बना दिया है और वे मिलीभगत से बेखौफ धंधा चला रहे हैं. भाजपा ने 28 जून को विधानसभा में खनन माफिया को लेकर सरकार की जमकर खिंचाई की. पर कांग्रेस ने भाजपा पर पलटवार किया कि उसने बीते पांच साल के अपने शासन में इस माफिया को प्रश्रय दिया, जिससे स्थिति इस हद तक पहुंच गई है. राज्य में रेत खनन पर 2017 में सुप्रीम कोर्ट के प्रतिबंध के बाद से यह माफिया आक्रामक हो गया है.
पिछले एक महीने में अवैध खनन से जुड़े लोगों ने जयपुर में एक व्यक्ति की कुचलकर हत्या कर दी. माफिया ने पुलिस से भी मारपीट की और एक संदिग्ध को छुड़ा ले गए. उन्हें अक्सर स्थानीय विधायकों का संरक्षण प्राप्त रहता है. इस समस्या की जड़ में खनन ठेकेदारों, राज्य और केंद्र के नेताओं तथा सरकार की मिलीभगत है, जिसके बूते 2012 से हाइकोर्ट, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को खुलेआम नजरअंदाज किया जा रहा है.
उनके आदेशों को ध्यान में रखकर राज्य सरकार ने एक नीति बनाई थी. उसने 50 करोड़ रु. के आरक्षित मूल्य पर 2013 में एक खुली नीलामी प्रक्रिया शुरू की जिसमें सरकार को 102 बोली लगाने वालों से 460 करोड़ रु. का राजस्व भी मिला. पर सभी हितधारक शीर्ष अदालत की शर्तों को भूल गए. जब चार साल तक आंशिक प्रतिबंधों और चेतावनियों से कुछ नहीं हुआ तो सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 2017 में रेत के खनन पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया. फिर राज्य सरकार ने खननकर्ताओं को छोटे भूखंडों पर खनन की अनुमति दी जिसके लिए केंद्र सरकार से मंजूरी की जरूरत नहीं होती. पर बड़े ठेकेदारों ने इस आवंटन पर आपत्ति दर्ज की और मामला अदालत में लटक गया है.
हितधारकों ने जान-बूझकर कानूनी रास्ता खोजने से परहेज किया है और अवैध कारोबार को फलने-फूलने दिया है. इसने रेत की कीमत दस से पंद्रह गुना तक बढ़ा दी है. विशेषज्ञों का अनुमान है कि राज्य सरकार को रिश्वतखोरी के कारण सालाना कई हजार करोड़ रु. रॉयल्टी का नुक्सान होता है. भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने इस साल चार मामलों में अधिकारियों को भी गिरफ्तार किया है. एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी बताते हैं, ''हमारे ईमानदार अधिकारी भी रिश्वत के लालच में रेत खनन करने वालों की सुरक्षित आवाजाही सुनिश्चित कराने लगे हैं.''
कांग्रेस ने पिछले साल विधानसभा चुनावों में इसे बड़ा मुद्दा बनाया था. पर नई सरकार के आने के बाद जमीनी स्थिति खराब हो गई है क्योंकि विधायक मोटी रकम लेकर माफियाओं को संरक्षण दे रहे हैं. खनन माफिया ने भी विधानसभा और लोकसभा चुनावों में भारी पैसा लगाया था और वह उसकी भरपूर वसूली कर रहा है. गहलोत ने समस्या की गंभीरता को समझते हुए मुख्य सचिव डी.बी. गुप्ता से कहा कि वे इस परेशानी को खत्म करने के कानूनी रास्ते निकालें.
उन्होंने कहा, ''आप इसे छोटे भूखंडों के माध्यम से कराएं या फिर बड़े खनन ठेकेदारों को ठेके देना इसका आसान रास्ता होगा, इसे रेगुलेट करने का जो रास्ता आपको सरल लगता है, उसे अपनाएं, पर इसे किसी भी कीमत पर वैध कराएं.'' अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि वे उन ठेकेदारों के साथ जाने में रुचि दिखा सकते हैं जिन्हें 2013 में उनके कार्यकाल के दौरान खदानें मिली थीं. उन्हें ही इस व्यवसाय पर कब्जा देकर अवैध खनन को रोकने का प्रयास किया जाएगा. लेकिन गहलोत ने इस रेत तस्करी में शामिल अधिकारियों के लिए कोई कड़ी चेतावनी नहीं दी, जिन्होंने पिछले पांच साल में अवैध रेत खनन को प्रश्रय देकर ऐसा संकट खड़ा किया है. शायद यही वजह है कि गहलोत के आदेश से किसी के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी.
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