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राजस्थान में कांग्रेस के अंदर मचा सियासी तूफान थमने का नाम नहीं ले रहा है. कांग्रेस ने बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत पर अशोक गहलोत की सरकार को गिराने की साजिश का आरोप लगाया है. कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने गहलोत सरकार के खिलाफ साजिश रचने के आरोप में सचिन पायलट गुट के विधायक भंवरलाल शर्मा और विश्वेंद्र सिंह को पार्टी की सदस्यता से निलंबित कर दिया है. भंवरलाल शर्मा कांग्रेस के दिग्गज नेता हैं, लेकिन पार्टी के लिए हमेशा सिरदर्द बनते रहे हैं. यही वजह है कि कांग्रेस इससे पहले भी उन्हें निलंबित कर चुकी है.
राजस्थान के पूर्व कैबिनेट मंत्री भंवरलाल शर्मा कांग्रेस का ब्राह्मण चेहरा माने जाते हैं, लेकिन सचिन पायलट के साथ खड़े होकर गहलोत सरकार के खिलाफ बगावत का झंडा उठाए हुए हैं. चूरू की सरदारशहर सीट से 7 बार विधायक चुने जा चुके हैं, लेकिन एक बार भी गहलोत सरकार में मंत्री नहीं बन सके हैं. इसका नतीजा है कि वो गहलोत सरकार के खिलाफ बागवत का बिगुल फूंक दिया है.
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भंवरलाल शर्मा के 30 साल के राजनीतिक सफर के दौरान प्रदेश की सरकारों पर तीन बार बड़ा संकट आया है, जिसमें उन्होंने संकटमोचक की भूमिका निभाने का काम किया. पहली बार 1996-97 में भाजपा सरकार को अस्थिर करने के आरोप लगे. इसके बाद 1998 में कांग्रेस की सरकार बनी तब भी उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी, पर आज वही शर्मा गहलोत सरकार और कांग्रेस पार्टी के लिए संकट बनकर सामने खड़े हैं.
राहुल गांधी पर कर चुके हैं विवादित टिप्पणी
भंवरलाल शर्मा सरकार को बनाने और बिगाड़ने के लिए ही चर्चा में नहीं रहे हैं. इसके अलावा उन्हें अपने बेबाक बयानों की वजह से भी जाना जाता है. वो राहुल गांधी पर भी तीखी टिप्पणी कर चुके हैं. भंवरलाल ने कहा था कि राहुल गांधी चार-पांच जोकरों से घिरे हुए हैं, उन्हें चापलूसों ने घेर रखा है. राहुल गांधी और सचिन पायलट जैसे लोग राजनीतिक विरासत से आए हैं. कांग्रेस पार्टी ने उनके इस बयान पर उन्हें पार्टी से निलंबित कर दिया था. हालांकि, 2008 विधानसभा चुनाव से पहले फिर से उन्हें बहाल कर दिया गया था. भंवरलाल शर्मा आज उसी सचिन पायलट के साथ खड़े हैं, जिन्हें लेकर कभी टिप्पणियां किया करते थे.
भंवरलाल शर्मा का सियासी सफर
भंवरलाल का जन्म 17 अप्रैल 1945 को चूरू जिले के सरदारशहर में हुआ था, उनके पिता का नाम सेवगराम और मां का नाम पार्वती देवी है. भंवरलाल शर्मा राजस्थान की सियासत के कद्दावर नेता और ब्राह्मण चेहरा माने जाते हैं. उन्होंने सियासी सफर की शुरुआत सरदारशहर के गांव जैतसीसर से की. साल 1962 में भंवरलाल शर्मा ग्राम पंचायत जैतसीसर के सरपंच बने और 1962 से 1982 तक सरपंच रहे. इसके बाद 1982 में वे सरदारशहर पंचायत समिति के प्रधान निर्वाचित हुए.
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भंवरलाल शर्मा ने 1985 में लोकदल से पहला विधानसभा चुनाव लड़ा और जीतकर विधायक बने. इसके बाद जनता दल में शामिल हो गए. 1990 में उन्होंने दूसरी बार विधानसभा चुनाव लड़ा और अपने निकटतम प्रत्याशी से 7477 मतों से यह चुनाव जीत लिया. विधानसभा में उनकी प्रभावी उपस्थिति ने उनका सियासी कद बढ़ाया और वे मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री बने और उन्हें इंदिरा गांधी नहर परियोजना के मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई.
आपको बता दें कि भंवरलाल ने पहले मार्च 1990 में जब भैरोंसिंह शेखावत की अगुवाई में भाजपा एवं जनता दल की संयुक्त मोर्चा की सरकार बनीं, तो आड़वाणी की रथ यात्रा के विरोध में जनता दल के अचानक 7 कैबfनेट मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया और सरकार अल्पमत में आ गई थी, इसके बाद 5 नवंबर 1990 को दिग्विजय सिंह की अगुवाई में जनता दल से 22 विधायक अलग होकर जनता दल- दिग्विजय का गठन किया और भाजपा सरकार को समर्थन दिया, जिससे शेखावत सरकार बच गई. इसमें भंवरलाल की अहम भूमिका रही. हालांकि, अयोध्या के बाद शेखावत सरकार गिर गई.
साल 1993 के चुनाव में एक बार फिर भैरों सिंह शेखावत के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी. उन्हें 116 विधायकों का समर्थन मिला. इसमें जनता दल के छह एवं निर्दलीय विधायक शामिल थे. चुनाव से पहले भंवरलाल शर्मा भाजपा में शामिल हो गए थे, लेकिन पार्टी ने उन्हें बाहर कर दिया. इसके बाद शर्मा कांग्रेस में शामिल हो गए और फिर 1996 में उपचुनाव में जीत गए. शर्मा पर आरोप लगे कि उन्होंने भाजपा के विधायकों के साथ मिलकर शेखावत सरकार को गिराने की कोशिश की.
2013 में विधानसभा चुनाव में भाजपा की लहर के बावजूद राजस्थान में जीतने वाले कांग्रेस के उम्मीदवारों में भंवरलाल शर्मा भी शामिल थे. 2018 के विधानसभा चुनाव में भी सातवीं बार वह जीतने में सफल रहे, लेकिन गहलोत सरकार में उन्हें जगह नहीं मिल सकी. कांग्रेस पार्टी ने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार गिराने की साजिश के आरोपों के चलते उसकी पार्टी की प्राथमिक सदस्यता खत्म कर दी है.