
बरसात का मौसम है, यह मौसम उन इलाकों के लिए इस वक्त बिल्कुल भी ठीक नहीं जहां बाढ़ आई हुई है. बाढ़ में बहुत कुछ बह जाने और डूब जाने का डर होता है साथ ही अपने आप को बचाने की जद्दोजहद भी होती है. ऐसा ही नजारा देश के एक राज्य की सियासत में देखने को मिल रहा है जहां बाढ़ तो नहीं है लेकिन खतरा बाढ़ जैसा ही है. बात राजस्थान की हो रही है जहां एक ओर सीएम अशोक गहलोत अपनी कुर्सी बचाने के साथ ही राज्य और पार्टी में अपना वर्चस्व कायम करने में लगे हुए हैं तो दूसरी ओर सचिन पायलट हैं जो बहुत कुछ अपने साथ बहा ले जाने के साथ ही अपने आप को 'डूबने' से बचाने की कोशिश में लगे हुए हैं.
'उड़ान' तो भर ली लेकिन मौसम हो गया खराब
सचिन पायलट ने अपने विधायकों के साथ 'उड़ान' तो भर ली लेकिन उन्हें इस बात का अंदेशा नहीं था कि इतनी जल्दी 'मौसम' खराब हो जाएगा. राजस्थान की सियासत में अब यह बात कही जा रही है कि सचिन पायलट को अपनी ताकत का अंदाजा तो था लेकिन सामने वाले की ताकत को वह सही से भांप नहीं पाए. उनके पास इस वक्त जो विधायकों का संख्या बल है उससे यह तो नहीं लगता कि वह सामने वाले की कुर्सी डुबो पाएंगे.
प्रदेश में पार्टी अध्यक्ष और डिप्टी सीएम का पद पहले ही सचिन पायलट गंवा चुके हैं और जिस तेज गति से प्रदेश और पार्टी में सियासी समीकरण बदले हैं उससे उनकी राह और मुश्किल हो गई है. उन पर लगातार बीजेपी के साथ मिलीभगत के आरोप भी लग रहे हैं. विधायकों की सदस्यता का मामला कोर्ट में है आने वाले मंगलवार को सुनवाई है, फैसला कब होगा इससे पहले ही विधानसभा का सत्र बुलाए जाने की खबर भी उनके लिए ठीक नहीं. सचिन पायलट के राजनीतिक जीवन में शायद ही ऐसी चुनौती पहले कभी सामने आई हो.
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पार्टी और प्रदेश में चल रहा 'जादूगर' का जादू
राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत को राजस्थान की सियासत का यूं ही जादूगर नहीं कहा जाता. सचिन पायलट की ओर से मिली चुनौती का बखूबी सामना किया और अपनी कुर्सी को भी बचाने में अब तक वह कामयाब नजर आ रहे हैं. अशोक गहलोत अपनी कुर्सी बचाने के साथ ही साथ पायलट की घर वापसी और उनके आगे की राह को भी मुश्किल बनाते नजर आ रहे हैं. एक के बाद एक तेजी से लिए गए फैसले गहलोत के लिए सही साबित हुए हैं. कोर्ट की सुनवाई में जो कुछ होगा वह तो बाद की बात है उसके साथ ही अब जो विधानसभा का सत्र बुलाए जाने की खबर है वह उनका मास्टर स्ट्रोक है.
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राजस्थान में सियासी घमासान के बीच मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राज्य के राज्यपाल कलराज मिश्रा से मुलाकात कर अपनी सरकार के बहुमत का दावा किया है. 102 विधायकों की लिस्ट सौंपी. सीएम अशोक गहलोत अपनी कुर्सी बचाते नजर आ रहे हैं साथ ही अपने विरोधी को उस मंझधार में छोड़ने की कोशिश में हैं जहां से किनारा मिलना मुश्किल है.
मचान पर बैठ, तमाशा देख
मचान के सहारे जहां किसान अपने खेतों की रखवाली करता है तो वहीं बाढ़ में लोग इसका सहारा भी लेते है. मचान के जरिए लोग अपने सामने आने वाले खतरे और कई बार दूसरों की मुश्किलों का आकलन भी करते हैं. राजस्थान की सियासत में भी इस वक्त मचान पर बैठे कुछ नेता और दल ऐसा ही कर रहे हैं. सचिन पायलट पर लगातार यह आरोप लग रहे हैं कि बीजेपी के सहारे वह यह सब कुछ कर रहे हैं. सचिन पायलट बीजेपी में जाने की बात नकार रहे हैं. उनकी कांग्रेस नेताओं के साथ बातचीत और मनाने की खबरें आती रहती हैं. बीजेपी के अंदर भी राजस्थान में पायलट को लेकर अलग- अलग राय है. इस बीच कांग्रेस और बीजेपी के बड़े नेता 'मचान' पर बैठकर पूरा तमाशा देख रहे हैं.
भंवर में फंसे पायलट
बाढ़ के वक्त भंवर का नजारा अक्सर दिखता है. पानी की लहर एक केंद्र पर चक्कर खाती हुई घूमती है. इस भंवर के लपेटे में कुछ आ जाए तो उसका निकलना मुश्किल हो जाता है. ऐसे ही सियासी भंवर में सचिन पायलट भी फंसे हुए नजर आ रहे हैं. इस भंवर से निकलने की कोशिश जहां पायलट खुद कर रहे हैं वहीं उनकी पार्टी भी जिसमें अब तक हैं वह भी उनको 'डूबने' से बचाना चाहती है. बचाने के लिए दूसरी पार्टी भी खड़ी है लेकिन वहां भी किंतु- परंतु है. भंवर में फंसे पायलट को अब यह तय करना है कि वह स्वयं के सहारे बाहर निकलेंगे या वो किसी की मदद लेंगे.
सचिन पायलट जिन 'उम्मीदों' के सहारे उड़े थे शायद उन्हें भी इस बात का अंदाजा नहीं था कि 'मौसम' इतनी जल्दी खराब हो जाएगा. इस मुश्किल और चुनौती पूर्ण समय में अब पायलट की पूरी कोशिश 'सेफ लैंडिंग' की है.