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ऑपरेशन 15 अगस्तः आसाराम के 'अधर्म' का ये है कच्चा चिट्ठा!

ऑपरेशन 15 अगस्त. ये कहानी है उस साज़िश की जो जब बेपर्दा हुई तो दूसरों को दर्शन देने वाले संत आसाराम बापू को खुद जेल दर्शन करना पड़ा. 15 अगस्त 2013 की दोपहर जोधपुर से 40 किलोमाटीर दूर एकांतवास में क्या कुछ हुआ. इस 15 अगस्त की तैयारी के लिए आसाराम बापू और उनके चार चेलों ने कब, कैसे, और क्या-क्या साज़िश रची?

वारदात के बाद से ही पीड़िता और उसके परिवार को लगातार धमकियां मिलती रहीं वारदात के बाद से ही पीड़िता और उसके परिवार को लगातार धमकियां मिलती रहीं
परवेज़ सागर/शम्स ताहिर खान
  • नई दिल्ली,
  • 26 अप्रैल 2018,
  • अपडेटेड 4:21 PM IST

ऑपरेशन 15 अगस्त. ये कहानी है उस साज़िश की जो जब बेपर्दा हुई तो दूसरों को दर्शन देने वाले संत आसाराम बापू को खुद जेल दर्शन करना पड़ा. 15 अगस्त 2013 की दोपहर जोधपुर से 40 किलोमाटीर दूर एकांतवास में क्या कुछ हुआ. इस 15 अगस्त की तैयारी के लिए आसाराम बापू और उनके चार चेलों ने कब, कैसे, और क्या-क्या साज़िश रची? आसाराम कब से उस नाबालिग लड़की के पीछे पड़ा था? ये सारी बातें, सारी कहानी, सारा सच और पूरी साज़िश आपके सामने होगी और आपको बताते हैं कि कैसे आसाराम को उम्र कैद की सज़ा दी गई.

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छिंदवाड़ा गुरूकुल, मध्यप्रदेश, जनवरी 2013

साल 2013 की शुरुआत थी. आसाराम बापू छह साल बाद छिंदवाड़ा आ रहे थे. छिंदवाड़ा में ही बाबा का गुरुकुल है. जिसमें करीब आठ सौ लड़कियां पढ़ती हैं. इस गुरूकुल में लगभग 70 लड़कियां बारहवीं का इम्तेहान देने की तैयारी कर रही थीं, जबकि करीब-करीब इतनी ही लड़कियां ग्यारहवीं से बारहवीं में पहुंचने वाली थीं. ग्यारवहीं से 12वीं में जा रही उन्हीं लड़किय़ों में से एक वो थी वो... जिस पर बाबा कई महीनों से नज़रें गड़ाए थे. दरअसल, उस लड़की पर पहली बार बाबा की नज़र 2012 में उत्तराखंड में पड़ी थी. उसे देखते ही आसाराम बाबा की नीयत खराब हो गई. बाद में पता चला कि वो लड़की बाबा के ही छिंदवाड़ा गुरुकुल में पढ़ती है.

हवसभरी साजिश

छिंदवाड़ा पहुंचने से पहले ही बाबा ने अपनी खास सेवादार शिल्पी को गुरुकुल का वार्डन बनाकर छिंदवाड़ा भेज दिया. और इसके साथ ही शुरू हुई हवस भरी साजिश की वो कहानी जिसका क्लाइमेक्स स्वतंत्रता दिवस यानी 15 अगस्त को सामने आया.

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आसाराम की नीयत भांप चुकी थी पीड़िता

बाबा के आदेश पर छिंदवाड़ा गुरुकुल पहुंचते ही शिल्पी ने लड़की को बहकाना शुरू कर दिया. वो उसे किसी तरह बाबा के पास जाने को तैयार करने की कोशिशों में जुट गई. कोशिश जारी थी. पर लड़की तैयार नहीं थी. दरअसल, उत्तराखंड में बाबा से पहली मुलाकात के दौरान ही लड़की आसाराम की नीयत भांप चुकी थी. पर उसने ये बात तब किसी को बताई नहीं थी. लड़की का भाई भी छिंदवाड़ा गुरुकुल में ही पढ़ रहा था. उसे लगा कि घरवालों को बताने से दोनों भाई-बहन की पढ़ाई खराब हो जाएगी.

शिल्पी ने लड़की को बताई भूतप्रेत की बात

वक्त बीतता रहा. शिल्पी लड़की को मनाती रही. पर बात नहीं बनी. जनवरी से जारी कोशिश जुलाई आते-आते भी नाकाम हो रही थी. अब अगस्त का महीना आ चुका था. बाबा के सब्र का बांध टूट रहा था. अब और इंतजार मुश्किल था. शिल्पी पर दबाव लगातार बढ़ रहा था. बढ़ते दबाव ने शिल्पी को एक दूसरी चाल चलने पर मजबूर कर दिया. उसने अब लड़की को ये यकीन दिलाना शुरू कर दिया कि उस पर भूत-प्रेत का साया है. वो उसे बताने लगी कि कैसे उसका मन किसी काम में नहीं लगता. क्यों वो ढाई-ढाई घंटे बाथरूम में रहती है?

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बाबा को दिखाने के लिए तैयार हुए परिजन

धीरे-धीरे लड़की के दिमाग में भूतप्रेत की बात डाल कर शिल्पी ने असली जाल फेंका. उसने लड़की से कहा कि अगर वो एक बार खुद को बाबा को समर्पित कर देगी तो सारे दुख सारी बीमारी दूर हो जाएगी. पर बाबा की नीयत से वाकिफ लड़की अब भी तैयार नहीं थी. तब शिल्पी ने आखिरी दांव खेला. उसने शाहजहांपुर में लड़की के मां-बाप से संपर्क किया. उन्हें बताया कि शिल्पी पर भूतप्रेत का साया है. एक बार बाबा को दिखा दें तो ठीक हो सकती है. शिल्पी की बात सुन कर लड़की के पिता तो तैयार नहीं हुए अलबत्ता मां जरूर मान गई. शिल्पी ने लड़की के मां-बाप को ये भी कहा कि बाबा के पास इलाज के लिए वो दोनों भी साथ जा सकते हैं. ये सुन कर घर वाले राजी हो गए.

मजबूरन इलाज के लिए तैयार हुई लड़की

घर वालों के मान जाने के बाद अब लड़की भी मजबूरन बाबा से इलाज कराने को तैयार हो चुकी थी. शिल्पी ने ये खबर फौरन फोन पर आसाराम को दी. आसाराम का फोन हमेशा उनका निजी सेवादार शिवा उठाता है. वही फोन बाबा के कान पर लगाता है. खबर मिलते ही लड़की को बाबा के पास भेजने की तैयारी शुरू हो गई.

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लड़की को बुलाने के लिए रखवाए प्रवचन

शिवा को जिम्मेदारी दी गई कि वो जोधपुर में बाबा का प्रवचन रखवाए, ताकि उसी प्रवचन के दौरान लड़की को जोधपुर बुलाया जा सके. शिल्पी की जिम्मेदारी थी लड़की को छिंदवाड़ा से जोधपुर तक लाने की और शरत चंद को काम दिया गया शिल्पी और लड़की के जोधपुर तक भेजने के इंतजाम करने का. इसके बाद शिवा ने 9, 10 और 11 अगस्त को जोधपुर में बाबा के प्रवचन की तारीख तय कर दी. प्रवचन की तारीख तय होते ही लड़की के घर वालों को खबर दे दी गई.

लगातार आसाराम से बात करती रही शिल्पी

ये सब कुछ पांच अगस्त के आसपास हुआ. अब इसके बाद पांच अगस्त से लेकर अगले 15 अगस्त तक आसाराम, शिवा, शिल्पी और शरत चंद के बीच हर रोज़ लगभग तीस-तीस बार फोन पर बातचीत हो रही थी. पांच अगस्त से पहले या पंद्रह अगस्त के बाद इन चारों ने कभी इतनी बार बात नहीं की.

प्रवचन के बाद फार्म हाउस पहुंचा आसाराम

सारी तैयारी पूरी होते ही आसाराम जोधपुर पहुंच गए. तीन दिन का प्रवचन उन्होंने पूरा किया. फिर 13 अगस्त को वो जोधपुर से 40 किलोमीटर दूर मड़ई गांव में देवड़ा फार्म हाउस पहुंचे. जिसे वो एकांतवास की कुटिया बुलाते हैं. इस बीच लड़की के मां-बाप भी जोधपुर आ चुके थे. उन्हें तब जोधपुर मे ही बाबा के पाल आश्रम में रखा गया था.

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लड़की माता-पिता के साथ पहुंची फार्म हाउस

उधर, 13 अगस्त को ही लड़की शिल्पी के साथ छिंदवाड़ा से जोधपुर पहुंचती है. रेलवे स्टेशन पर खुद आसाराम का निजी सेवादार शिवा दोनों को रिसीव करने आता है. 13 अगस्त की रात लड़की अपने मां-बाप के साथ ही पाल आश्रम में बिताती है. इसके बाद 14 अगस्त की सुबह शिवा लड़की और उसके मां- बाप को लेकर आसाराम के एकांतवास वाली कुटिया यानी फार्म हाउस पहुंचता है. फार्म हाउस में बाबा का निजी रसोइया प्रकाश लड़की के लिए खाना बनाता है. उसे दूध देता है. फिर शाम को पहली बार बाबा लड़की के सामने आते हैं. मां-बाप साथ में थे. कुछ और भी लोग थे. बाबा उन्हें प्रवचन सुनाते हैं. आशीर्वाद देते हैं. फिर तय होता है कि आसाराम 15 अगस्त को लड़की का इलाज करेंगे.

एकांत में इलाज करने का फरमान

15 अगस्त को लड़की दोपहर के वक्त बाबा के सामने हाजिर की जाती है. मां-बाप तब भी लड़की के साथ थे. कुछ देर बाबा लड़की के मां-बाप से बात करते हैं. फिर हुक्म सुनाते हैं कि लड़की का इलाज वो अकेले कमरे में करेंगे. क्योंकि इलाज के लिए एकांत जरूरी है. बाबा का आदेश सुनते ही लड़की के मां-बाप उस कमरे से कुछ दूर कर दिए जाते हैं. शिवा लड़की को बाबा के पास पुहंचा कर पहले ही जा चुका था. कमरे के करीब अब बस बाबा का रसोइया प्रकाश था. लड़की कमरे के अंदर जाती है और दरवाजा बंद हो जाता है.

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लड़की को सम्मोहित कर आसाराम ने मिटाई हवस

अब बंद कमरे में बस आसाराम और लड़की थी. लड़की को बाबा ने पहले सम्मोहित किया और फिर महीनों पुरानी हवस पूरी करनी शुरू कर दी. पर शायद बाबा के सम्मोहन का पूरा असर लड़की पर नहीं हुआ था. लिहाज़ा वो बाबा की अश्लील हरकत का विरोध करने लगी. तब बाबा ने उसे धमकी दी कि अगर उसने जुबान खोली तो छिंदवाड़ा गुरुकुल में पढ़ रहे उसके भाई और मां-बाप को जान से मार दिया जाएगा. धमकी से डरकर लड़की खामोश हो गई.

लड़की को वापस शाहजहांपुर भेजा

फिर डेढ़ घंटे बाद बंद कमरे का दरवाजा खुला. लड़की चुपचाप मां-बाप के साथ एकांत कुटिया से बाहर आई और शाम को जोधपुर पहुंची फिर उसी शाम शाहजहांपुर के लिए निकल गई. उधऱ बाबा भी 16 की सुबह एकांतवास से बाहर आए और जोधपुर के रास्ते दिल्ली निकल गए. जहां 19 अगस्त से उनका प्रवचन था.

पीड़िता ने घर जाकर माता-पिता को सुनाई आपबीती

इस बीच शाहजहांपुर पहुंच कर लड़की में हिम्मत आई और उसने अपनी मां को सारी बात बता दी. मां ने बाप को बताई और फिर पूरा परिवार 19 अगस्त को दिल्ली पहुंच गया. बाबा से मिलने. बाबा से पूछने. पर बाबा ने मिलने से मना कर दिया. लिहाज़ा 20 अगस्त को लड़की ने दिल्ली के कमला मार्केट थाने में बाबा के खिलाफ रिपोर्ट लिखा दी. और इस तरह ऑपरेशन 15 अगस्त सबके सामने आ गया. जिसकी वजह से बाबा का असली चेहरा दुनिया के सामने आया. और अदालत ने उसी काली करतूत के लिए आसाराम को उम्रकैद की सजा सुनाई.

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