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राजस्थान के एक दिहाड़ी मजदूर ने पेश की दान की अनूठी मिसाल

राजस्थान के जोधपुर शहर के एक मजदूर ने साबित कर दिया कि दान-पुण्य करने के लिए आपका धनवान होना जरूरी नहीं है. इसके लिए तो बस दिल बड़ा होना चाहिए. 62 वर्षीय शकूर मोहम्मद एक दिहाड़ी मजदूर हैं. उन्होंने साल 1984 में 4,000 रुपये में छह प्लॉट खरीदे थे जिनमें से तीन प्लॉट उन्होंने एक अस्पताल, मदरसा व मस्जिद बनवाने के लिए दान कर दिया है. इन तीनों प्लाट की मौजूदा कीमत एक करोड़ रुपये से अधिक है. उन्होंने अन्य प्लॉट डायग्नोसिस लैब के लिए दान किया है.

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aajtak.in
  • जयपुर,
  • 30 जनवरी 2015,
  • अपडेटेड 10:03 AM IST

राजस्थान के जोधपुर शहर के एक मजदूर ने साबित कर दिया कि दान-पुण्य करने के लिए आपका धनवान होना जरूरी नहीं है. इसके लिए तो बस दिल बड़ा होना चाहिए. 62 वर्षीय शकूर मोहम्मद एक दिहाड़ी मजदूर है. उन्होंने साल 1984 में 4,000 रुपये में छह प्लॉट खरीदे थे जिनमें से तीन प्लॉट उन्होंने एक अस्पताल, मदरसा व मस्जिद बनवाने के लिए दान कर दिया है. इन तीनों की मौजूदा कीमत एक करोड़ रुपये से अधिक है. उन्होंने अन्य प्लॉट डायग्नोसिस लैब के लिए दान किया है.

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दान किया गया प्रत्येक प्लॉट 150 वर्ग गज का है और वर्तमान में प्रत्येक की कीमत 25 लाख रुपये से कम नहीं है. शकूर ने बाकी बचे दो प्लॉट अपनी दो बेटियों को दे दिए हैं. शकूर ने करीब दो साल पहले अपनी मां के नाम पर एक छोटा सा अस्पताल बनवाने के लिए जमीन का एक टुकड़ा दान किया था. जोधपुर के पूर्व महापौर रामेश्वर दाधीच ने वहां 40 लाख रुपये की लागत से एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बनवाया.

इस स्वास्थ्य केंद्र में अब रोजाना 50 से अधिक मरीज इलाज के लिए आते हैं. शकूर ने बताया, 'मैं अस्पताल के लिए जमीन दान करने के बाद बहुत संतुष्ट व खुश हुआ.' उन्होंने कहा, 'उसके बाद से मैंने जमीन दान करने का यह काम शुरू किया. मैं अनपढ़ हूं, लेकिन चाहता हूं कि मेरे समुदाय के बच्चे पढ़ें और इसलिए जमीन का एक अन्य हिस्सा दान किया, जो मैंने मदरसा शुरू करने के लिए ली थी. वहां अब काम चल रहा है.'

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शकूर ने कहा, 'तीसरे प्लॉट पर मैं एक मस्जिद बनवाने की कोशिश कर रहा हूं, जिसके लिए मुझे आर्थिक मदद की दरकार है, क्योंकि मेरे पास पैसे नहीं हैं.' पैसे की कमी की वजह से वह अपनी रोजाना की दिहाड़ी के अलावा इस मस्जिद निर्माण के लिए स्वयं संगतराश (पत्थर का काम करने वाला) के रूप में काम करते हैं. फटे कपड़े, घिसी-पिटी मोजरी (जूती) पहने व बिखरे बालों में वह रोजाना कई घंटे मेहनत करते हैं.

जमीन के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, 'मैंने जब छह प्लॉट खरीदे थे, तो उनकी कुछ कीमत नहीं थी. मेरा कोई बेटा नहीं है. मेरी दो बेटियां हैं, इसलिए मैंने दोनों को एक-एक प्लॉट दे दिया है.' शकूर फिलहाल पत्नी और एक बेटी के साथ रहते हैं. उन्होंने कहा, 'मुझे दीन-जहान की चीजों की भूख नहीं है. मुझे सादा जीवन पसंद है.'

यह पूछे जाने पर कि आपने प्लॉट खरीदने के पैसे कहां से जुटाए? शकूर ने मुस्कुराते हुए कहा, 'मेरा चेहरा, कपड़े व फटी-पुरानी चप्पल देखिए. मैं पैसा कमाता हूं, लेकिन उसे खर्च नहीं करता. मैं एक जोड़ी कपड़े कई दिन पहनता हूं और बस वही चीजें खरीदता हूं, जो जीने के लिए बेहद जरूरी हैं.'

- इनपुट IANS

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