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राजस्थान: 27 साल पहले भी राजभवन में हुआ था ड्रामा, गहलोत की तरह BJP ने कराई थी विधायकों की परेड

राजस्थान में गर्मी में पारा जितना हाई रहता है, उससे कहीं ज्यादा अब यहां राजनीति का पारा हाई देखने को मिल रहा है. पायलट के बागी होने के बाद राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सरकार पर संकट के बादल मंडरा चुके हैं.

राजभवन में सीएम अशोक गहलोत के साथ धरने पर विधायक (फोटो- पीटीआई) राजभवन में सीएम अशोक गहलोत के साथ धरने पर विधायक (फोटो- पीटीआई)
हिमांशु कोठारी
  • नई दिल्ली,
  • 25 जुलाई 2020,
  • अपडेटेड 7:49 PM IST

  • राजस्थान में जारी है सियासी घमासान
  • राजभवन में गहलोत गुट ने दिया धरना

वो कहते हैं न कि इतिहास कभी न कभी खुद को जरूर दोहराता है. ऐसा ही अब 'धोरा री धरती' राजस्थान में देखने को मिल रहा है. 27 साल पहले राजस्थान के राजभवन में जो कुछ हुआ, वो सब दोहराया जा रहा है. यानि कहानी वही है, बस इस बार किरदार बदल गए हैं. बात 1993 की है जब सरकार बनाने के लिए बीजेपी विधायक दल के नेता भैरोंसिंह शेखावत ने राजभवन में विधायकों की परेड करवाई थी.

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क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान भारत का सबसे बड़ा राज्य है. इसके अलावा राजस्थान का इतिहास और यहां होने वाला छोटा घटनाक्रम भी पूरे भारत पर छाप छोड़ता है. वर्तमान में राजस्थान में सियासी संकट देखने को मिल रहा है. कांग्रेस नेता सचिन पायलट बागी हो चुके हैं. लेकिन वो न तो कांग्रेस छोड़ रहे हैं और न ही किसी दूसरी पार्टी में शामिल होने की बात स्वीकार कर रहे हैं. हालांकि पायलट लंबी उड़ान भरने की तैयारी में नजर आ रहे हैं और राजस्थान के कई कांग्रेस विधायकों को अपने पाले में कर चुके हैं और एक ‘जादुई आंकड़ा’ छूने के लिए अभी भी जोड़तोड़ की रणनीति अपना रहे हैं.

राजस्थान में गर्मी में पारा जितना हाई रहता है, उससे कहीं ज्यादा अब यहां राजनीति का पारा हाई देखने को मिल रहा है. पायलट के बागी होने के बाद राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सरकार पर संकट के बादल मंडरा चुके हैं. राजनीति में 'जादूगर' के नाम से पहचाने जाने वाले गहलोत लगातार अपनी सरकार बचाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं. सरकार बचाने के लिए नौबत तो यहां तक आ पहुंची कि गहलोत राजस्थान में राजभवन में धरना देने के लिए भी पहुंच गए. अकेले नहीं, बल्कि गहलोत अपने गुट के साथी विधायकों की पूरी फौज के साथ राजभवन में धरना देने पहुंचे.

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राजनीति में गहलोत कच्चे खिलाड़ी नहीं है. गहलोत खुद कहते हैं कि उनकी राजनीति में और पार्टी में काफी रगड़ाई हुई है. ऐसे में गहलोत सरकार बचाने के लिए हर वो कोशिश कर रहे हैं जो उन्हें करनी चाहिए या जो वो कर सकते हैं. कांग्रेस का आरोप है कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) उसके विधायकों की खरीद-फरोख्त का काम कर रही है और गहलोत सरकार को गिराने की साजिश रच रही है. इसी कड़ी में गहलोत अब अपनी सरकार बचाने और शक्ति प्रदर्शन के लिए विधानसभा का सत्र बुलाने की मांग कर रहे हैं. राज्यपाल कलराज मिश्र से भी गहलोत कई बार मुलाकात कर चुके हैं. लेकिन जब उन्हें अपनी दाल गलती नहीं दिखी तो उन्होंने अपने समर्थक विधायकों के साथ राजभवन की तरफ ही कूच कर दिया. 24 जुलाई 2020 की शाम तक करीब 5-6 घंटे तक गहलोत गुट के विधायक अड़े रहे और राजभवन के बाहर धरना देते रहे.

राजस्थान में राजभवन के बाहर धरने पर गहलोत गुट के समर्थक विधायक (फोटो- पीटीआई)

अशोक गहलोत का कहना है कि विधानसभा सत्र बुलाया जाए, नहीं तो प्रदेश की जनता राजभवन का घेराव करेगी. बस, इसी बात पर अब भारतीय जनता पार्टी को कांग्रेस और राजस्थान की गहलोत सरकार पर निशाना साधने का मौका मिल गया. बीजेपी के कई नेता गहलोत के इस बयान की आलोचना कर चुके हैं. गहलोत के बयान के बाद बीजेपी नेता गुलाब चंद कटारिया तो राजभवन में सीआरपीएफ की तैनाती की मांग भी कर चुके हैं.

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इसके साथ ही अब राजस्थान में एक ऐसी घटना का रिप्ले देखने को मिल रहा है जो 27 साल पहले घट चुकी थी. मैदान भी सियासी था, टकराव भी सरकार बनाने का था, खिलाड़ी भी कांग्रेस और बीजेपी के ही थे लेकिन मैदान-ए-सियासत में आज जहां कांग्रेस खड़ी है, साल 1993 में राजस्थान में वहां बीजेपी खड़ी थी. आज जहां अशोक गहलोत हैं, उस वक्त वहां बीजेपी के कद्दावर नेता भैरोंसिंह शेखावत खड़े थे.

दरअसल, बात आज से 27 साल पहले नवंबर 1993 की है. तब विधानसभा के लिए चुनाव हुए तो भारतीय जनता पार्टी को प्रदेश की जनता ने सर आंखों पर बैठाया और बंपर वोट दिए. थोड़ा सा और फ्लैशबैक में जाएं तो 1990 में राजस्थान मे बीजेपी की सरकार बनी तो भैरोंसिंह शेखावत को मुख्यमंत्री चुना गया लेकिन 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद राजस्थान की भैरोंसिंह शेखावत की सरकार को केंद्र सरकार ने बर्खास्त कर दिया था. उस दौरान केंद्र में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार थी. इसके बाद राजस्थान में 1993 में फिर चुनाव हुए. इस बार भी राजस्थान के लोगों ने बीजेपी को ही चुना लेकिन बीजेपी बहुमत का आंकड़ा नहीं छू पाई. इसके बाद शुरू हुआ घटनाक्रम इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए दर्ज हो गया.

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साल 1993 में राजस्थान में 199 विधानसभा सीटों पर हुए चुनाव में बीजेपी ने 95 सीटों पर जीत दर्ज की और तीन सीटों पर उसके समर्थित उम्मीदवारों को जीत मिली. बीजेपी प्रदेश में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर कर तो आई लेकिन सत्ता के ताले की चाबी अभी भी उसकी पहुंच से दूर थी. तब बीजेपी ने भैरोंसिंह शेखावत पर फिर से भरोसा जताया और उन्हें बीजेपी ने विधायक दल का नेता चुन लिया. इस चुनाव में कांग्रेस को 76 सीटों पर जीत मिली थी. आज के वक्त में जितना हौसला बीजेपी का बुलंद है तब कांग्रेस का हौसला भी इतना ही बुलंद था और सरकार बनाने की कवायद में कांग्रेस भी पीछे नहीं थी.

कांग्रेस की नजर 21 निर्दलीय और अन्य जीत कर आए उम्मीदवारों पर थी. उस दौरान राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनाने के लिए कांग्रेस नेता और हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री भजनलाल भी काफी एक्टिव दिखे थे. उस दौरान भजनलाल पर विधायकों की खरीद-फरोख्त के आरोप लगे थे.

वहीं दूसरी ओर बीजेपी के खेमे में लालकृष्ण आडवाणी एक्टिव थे और जयपुर भी आए थे. लेकिन असली खेल तब शुरू हुआ जब 29 नवंबर 1993 को भैरोंसिंह शेखावत को विधायक दल का नेता चुने जाने के बाद बीजेपी की ओर से तत्कालीन प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष रामदास अग्रवाल ने राज्यपाल को पत्र लिखकर भैरोंसिंह शेखावत को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करने का अनुरोध किया. इसके एक दिन बाद ही पांच निर्दलीय विधायकों का समर्थन पत्र भी राज्यपाल को भेज दिया गया. लेकिन सियासत तब और गर्मा गई, जब राज्यपाल की ओर से किसी भी प्रकार की कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई.

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भैरोंसिंह शेखावत (फाइल फोटो)

उस दौरान राजस्थान में बलिराम भगत राज्यपाल थे. करीब पांच दिन तक तत्कालीन राज्यपाल बलिराम भगत ने कोई जवाब नहीं दिया. इतने वक्त में राजनीतिक उठापटक अपने चरम पर थी. बीजेपी के खेमे में भी हलचल मची हुई थी तो वहीं कांग्रेस गुट भी जोड़तोड़ में लगा था. कांग्रेस लगातार निर्दलीय विधायकों के साथ संपर्क में थी और समर्थन जुटाने की कोशिश कर रही थी. इसी दौरान जब पानी सिर से ऊपर जाने लगा तो भैरोंसिंह शेखावत ने राजभवन की तरफ कूच कर दिया. उनके साथ उनके समर्थन में विधायकों की पूरी फौज थी.

करीब पांच दिन तक राज्यपाल की ओर से कोई भी जवाब नहीं मिलने के बाद 1993 में अपने समर्थित विधायकों के साथ भैरोंसिंह शेखावत राजभवन पहुंचे और वहां धरने पर बैठ गए. शेखावत के इस कदम से दिल्ली भी पूरी तरह से हिल चुकी थी. राजस्थान के सियासी दांव पेंच में तब अटल बिहारी वाजपेयी भी सक्रिय भूमिका में थे. उन्होंने दिल्ली में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हाराव से राजस्थान के राज्यपाल के रवैये की शिकायत की थी. इसके बाद राजस्थान के राज्यपाल पर भी दबाव बना.

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फिर इस सियासी रण में बीजेपी के खेमे में वो लम्हा आया, जिसका उसे इंतजार था. राज्यपाल भगत ने 4 दिसंबर 1993 को भैरोंसिंह शेखावत को सरकार बनाने का न्यौता दिया और इसी दिन भैरोंसिंह शेखावत ने एक बार फिर मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. बीजेपी ने निर्दलीय विधायकों के समर्थन से राजस्थान में उस वक्त सरकार बनाई थी. उस वक्त राजस्थान के राजनीतिक घटनाक्रम को अपने पाले में लाने और निर्दलीय विधायकों का समर्थन हासिल करने के लिए राजस्थान से दिल्ली तक बीजेपी के पास शेखावत, आडवाणी और वाजपेयी जैसे धाकड़ नेताओं की पूरी फौज थी, लेकिन कांग्रेस के पास ऐसा कोई चेहरा नहीं था जो निर्दलीय विधायकों को अपने खेमे में कर सके.

अब राजस्थान में अशोक गहलोत ने भी बीजेपी के भैरोंसिंह शेखावत से मिलती-जुलती पारी खेली है. गहलोत ने विधानसभा का सत्र बुलाने के लिए राज्यपाल कलराज मिश्र पर दबाव बनाने के इरादे से राजभवन में धरना दिया है. धरने के दौरान राज्यपाल कलराज मिश्र भी गहलोत गुट के विधायकों से मिलने पहुंचे थे. लेकिन राजस्थान में ऊंट किस करवट बैठेगा और धरने का नतीजा क्या होगा, ये भी अब इतिहास के पन्नों में दर्ज होता जा रहा है.

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