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उत्तर प्रदेश की राजनीति हमेशा से देशभर के लिए जिज्ञासा का केन्द्र रही है. नतीजों से ज्यादा दिलचस्प ये देखना रहता है कि इस बार यूपी वालों ने किसके नाम पांच साल रोना तय किया है. यूपी में जातीय समीकरण कभी कमजोर नही पड़ते, जब यूपी के एक दोस्त से पूछा कि भाई सारे ही डिफॉल्टर निकलते हैं तो जात देख काहे वोट करते हो? तो जवाब आया 'सुकून रहता है. पहले से पता होता है ये अपने ही जैसा है, जब हम कुछ न कर सके तो ये किस खेत की मूली है.'
गहराई में धंसे तो उत्तर प्रदेश के हालात को दो पंक्तियों में समझा जा सकता है. 'तारीख तीन-साढ़े तीन साल में इतनी ही बदली है, तब दौर पत्थरों का था, अब दौर पुत्तरों का है.'
कल को यूपी में चुनाव होने हैं. अभी यूपी के जो हालात हैं, उनके अनुसार बीजेपी की डगर कठिन है. अमित शाह बिहार की लिफ्ट में फंस रहे हैं. यूपी की तो बिजली का भी ठिकाना नही रहता. बीएसपी लोकसभा के लड्डू के सदमे मे है, दलित विमर्श वैसे भी चौराहे में कांशीराम की मूर्ति गड़वाने तक सिमट रह गया है. कांग्रेस की हालत तो ये कि ट्विटर वालों ने भी राहुल पर चुटकुले बनाने बन्द कर दिए हैं. ऐसे में बचा कौन सपा. अब सपा के ये हाल हैं कि थ्रिल के फेर में मुलायम सिंह खुद अपनी पार्टी की नाव पर बरमा लेके चढ़े हैं.
मुलायम सिंह यादव को देख कभी-कभी लगता है उन्होंने रेप पर दस अजीब बयान देने का कोई टास्क ले रखा है. हाल ही में उन्होंने कहा चार लोग मिलकर एक औरत का रेप नही कर सकते. ये प्रैक्टिकली सम्भव ही नही है. उनका कहना सही था दो दिन भी न बीते पांच लोगों ने एक बच्ची का रेप कर दिया. चार ने नही पांच ने किया, बात रह गई मुलायम जी की. थ्योरी सही निकली. बाकी 'प्रैक्टिकली' शब्द पर सवाल नही उठना चाहिए, समाजवादी यथार्थवादी भी होता है.
मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री हुए. उन्होंने अमिताभ बच्चन से गुजरात टूरिज्म का प्रचार करवाया. मोदी को लगा होगा अमिताभ उनकी बात रख सकते हैं. गुजरात की सोच का चेहरा बन सकते है. अमिताभ बच्चन से प्रचार मुलायम ने भी कराया था, पर अब न कराएंगे. यूपी टूरिज्म के नए विज्ञापन के लिए मुलायम सिंह मशहूर खलनायक रंजीत से बात कर रहे हैं. उन्हें लगता होगा रंजीत उनकी बात रख सकते हैं. यूपी का चेहरा बन सकते हैं.