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राज्यसभा चुनावः बिहार में थमी जोड़तोड़ की राजनीति, मांझी और अशोक चौधरी निराश

आरजेडी अब लालू यादव वाली पार्टी नहीं रही. उसमें नई सोच उभर रही है जिसमें समाज के सभी तबकों को साथ लेकर चलने की बात है. वहीं ब्राह्मणों की पार्टी के रूप में विख्यात बीजेपी ने भी पिछले कुछ दशकों में बिहार से शायद ही किसी ब्राह्मण को राज्यसभा में भेजा होगा.

जीतनराम मांझी और अशोक चौधरी जीतनराम मांझी और अशोक चौधरी
सुजीत झा/वरुण शैलेश
  • पटना,
  • 12 मार्च 2018,
  • अपडेटेड 10:59 PM IST

बिहार में जोड़तोड़ की राजनीति अचानक तब थम गई, जब राज्यसभा के चुनाव में किसी ने भी 7वां उम्मीदवार नहीं उतारा. बिहार में इस साल राज्यसभा की 6 सीटें हैं, जिस पर इतने ही उम्मीदवारों ने पर्चा दाखिल किया.

ऐसे में राज्यसभा चुनाव के ठीक पहले पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी और पूर्व कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी के पाला बदलने के बाद जो उठापटक का माहौल बना था, वह सोमवार को पर्चा दाखिल करने के आखिरी दिन बिल्कुल बदल गया.

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राज्यसभा चुनाव के लिए बीजेपी की तरफ से केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने पर्चा दाखिल किया. उनका बीजेपी की तरफ से चौथी बार राज्यसभा जाना तय है. बिहार के बड़े कारोबारी किंग महेंद्र को जदयू तीसरी बार राज्यसभा भेजने की तैयारी में है तो प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह भी दूसरी बार राज्यसभा भेजे जा रहे हैं.

आरजेडी की तरफ से दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और पार्टी के प्रवक्ता मनोज झा को पहली बार मौका मिला है. इसी तरह से आरजेडी कटिहार मेडिकल कॉलेज के संस्थापक अशफाक करीम को पहली बार राज्यसभा भेजने जा रही है. पिछले 20 सालों में पहली बार अखिलेश सिंह कांग्रेस की तरफ से राज्यसभा जा रहे हैं.

रसूख वालों को तरजीह

राज्यसभा की उम्मीदवारी पर गौर किया जाए तो जनता दल यू और आरजेडी दोनों ने पैसे वालों को तरजीह दी है. जदयू ने किंग महेंद्र को तो आरजेडी ने अशफाक करीम को आगे बढ़ाया है. अशफाक करीम के मेडिकल कॉलेज पर छापा भी पड़ा था और कई तरह के आरोप लगे थे.

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आरजेडी का ब्राह्मण पर दांव

मनोज झा को आरजेडी ने उम्मीदवार बनाकर जरूर चौकाया, क्योंकि इस पार्टी की अब तक की लड़ाई ब्राह्मणवाद के खिलाफ रही है. आरजेडी पिछड़ों और दलितों के साथ अल्पसंख्यक की बात तो करती थी, लेकिन किसी मैथिल ब्राह्मण को टिकट उसकी तरफ से मिलेगा, यह हैरानी की बात है.

इससे स्पष्ट है कि आरजेडी अब लालू यादव वाली पार्टी नहीं रही. उसमें नई सोच उभर रही है जिसमें समाज के सभी तबकों को साथ लेकर चलने की बात है. वहीं ब्राह्मणों की पार्टी के रूप में विख्यात बीजेपी ने भी पिछले कुछ दशकों में बिहार से शायद ही किसी ब्राह्मण को राज्यसभा में भेजा होगा.

इन्हें हाथ लगी सिर्फ निराशा

जीतनराम मांझी एनडीए छोड़ कर यूपीए में गए कि शायद वहां उन्हें टिकट मिल जाए, लेकिन यहां भी निराशा ही हाथ लगी. अब 6 सीटों पर 6 उम्मीदवार होने से क्रॉस वोटिंग का कोई चक्कर नहीं है. मंगलवार को स्क्रूटनी के बाद सभी उम्मीदवार अधिकारिक तौर पर राज्यसभा के सदस्य हो जाएंगे. हालांकि इस बार के चुनाव में खास बात ये रही कि सभी पार्टियों ने स्वर्णों को भी अपना उम्मीदवार बनाया है.

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