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अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अब इस्लामाबाद का दोहरा खेल बेनकाब हो चुका है. भारत ही नहीं अमेरिका की संसद में भी पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित करने की मांग उठने लगी है.
भारत की संसद में बिल
राज्यसभा में आज इस सिलसिले में प्राइवेट मेंबर बिल पर चर्चा होगी. उम्मीद है कि चर्चा पर बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी, कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी और मनोनीत सांसद केटीएस तुलसी अपनी राय रखेंगे. बिल को मौजूदा बजट सत्र के दौरान निर्दलीय सदस्य राजीव चंद्रशेखर ने पेश किया था. बिल में चंद्रशेखर ने मांग की है कि आतंकवाद को लगातार बढ़ावा देने वाले पाकिस्तान जैसे देशों को आतंकी देश का दर्जा दिया जाना चाहिए और ऐसे देशों के साथ सभी तरह के रिश्ते तोड़ देने चाहिएं.
सरकार के समर्थन पर सवाल
हालांकि मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक चंद्रशेखर के इस बिल को गृह मंत्रालय का समर्थन मिलने की उम्मीद बेहद कम है. जानकारों की राय में मोदी सरकार ने भले ही पाकिस्तान को लेकर कड़ा रुख दिखाया है. लेकिन किसी देश के साथ आर्थिक और राजनयिक संबंध पूरी तरह तोड़ना कोई आसान काम नहीं है. इसके अलावा ऐसा बहद कम होता है जब सरकारें प्राइवेट मेंबर बिल का समर्थन करती हैं. उरी हमले के बाद भारत में पाकिस्तान को दहशतगर्द मुल्क घोषित करने मांग ने फिर जोर पकड़ा था.
अमेरिकी संसद में भी प्रस्ताव
आतंक पर पाकिस्तान की दोगली नीति का दंश अफगानिस्तान में अमेरिका भी झेल चुका है. अमेरिकी संसद के सदस्य टेड पो ने भी पाकिस्तान को आतंकी देश घोषित करने से जुड़ा प्रस्ताव रखा है. टेड पो आतंकवाद पर अमेरिकी संसद की उप-समिति के भी सदस्य हैं. बिल पेश करते हुए पो का कहना था कि पाकिस्तान ना सिर्फ गैर-भरोसेमंद सहयोगी है, वो सालों से पाकिस्तान के दुश्मनों की सरपरस्ती करता आया है. पो के मुताबिक ओसामा बिन लादेन को शरण देने से लेकर हक्कानी नेटवर्क को शह देने तक पाकिस्तान ने साबित किया है कि वो आतंकियों के साथ है. अगर बिल पास होता है तो राष्ट्रपति ट्रंप को 90 दिनों के भीतर इस बात की रिपोर्ट पेश करनी होगी कि क्या पाकिस्तान ने अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद को समर्थन बंद किया है या नहीं. इसके 30 दिन बाद अमेरिकी विदेश मंत्री विस्तृत रिपोर्ट देंगे जिसमें इस मसले पर अमेरिकी सरकार की आखिरी राय बताई जाएगी.
व्हाइट हाउस ने ठंडे बस्ते में डाली थी याचिका
पिछले साल व्हाइट हाउस की वेबसाइट पर इसी तरह की एक याचिका को लाखों लोगों का समर्थन मिला था. हालांकि व्हाइट हाउस ने तकनीकी कारणों का हवाला देकर इस याचिका को अपने आर्काइव में डाल दिया था.