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हरियाणा के हिसार में राखीगढ़ी गांव जाने के लिए सड़क जैसी चीज बमुश्किल दिखती है. कच्चे रास्ते के दोनों ओर गोबर के उपलों के ढेर लगे हैं. यही रास्ता गांव के भीतर उस टीले की ओर ले जाता है, जहां चौड़ी सड़कों वाला एक सुनियोजित शहर दफन है. गांव जहां विकास के लिए तरस रहा है, वहीं इसकी मिट्टी में सिंधु घाटी सभ्यता (जिसे हड़प्पा सभ्यता भी कहा जाता है) के सबसे बड़े शहर के अवशेष हैं.
इस प्राचीन शहर में मकान बड़ी ईंटों से बने होते थे, सड़कें 1.92 मीटर चौड़ी थीं. उसका ड्रेनेज सिस्टम आधुनिक सफाई व्यवस्था के लिए भी एक सबक हो सकता है और लोग मिट्टी के बर्तन बनाने, चित्रकारी और बुनाई की कला में पारंगत थे.
इस पांच हजार साल पुरानी सभ्यता की निशानी के साथ रहने के बाद अब राखीगढ़ी के बाशिंदे इसे गर्व से दुनिया को दिखाना चाहते हैं. उन्होंने राज्य सरकार को एक म्युजियम बनाने के लिए छह एकड़ जमीन दान की है, जहां 12 साल पहले खुदाई में मिले प्राचीन अवशेषों को रखा जाएगा. वे यह भी चाहते हैं कि इस स्थान पर एक होटल बने ताकि यहां पर्यटन को बढ़ावा मिले और इस जगह को विश्व विरासत स्थल में तब्दील किया जा सके. गांववालों का सपना साकार होता दिख रहा है. हरियाणा सरकार ने इस जगह के बुनियादी विकास के लिए 2.5 करोड़ रु. का बजट आवंटित किया है. इंडियन ट्रस्ट फॉर रूरल हेरिटेज ऐंड डेवलपमेंट भी ग्लोबल हेरिटेज फंड से इस गांव के लिए फंड ला रहा है.
राखीगढ़ी की पहचान 1963 में उस स्थल के रूप में की गई जहां सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष मौजूद हैं. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) ने 1997 में यहां के टीलों को अपने संरक्षण में ले लिया और 1998 से 2001 के बीच हुई खुदाई के बाद पता चला कि यहां हड़प्पा और मोएंजोदड़ो (पाकिस्तान में) से भी बड़ा शहर है. करीब 224 हेक्टेयर में फैले इस शहर ने सभ्यता के काल को भी 1,000 वर्ष पीछे कर दिया. राखीगढ़ी
ऐसा एकमात्र स्थान भी है जहां एक ही जगह पर हड़प्पा युग के पूर्व, मध्य और उत्तर समय के अवशेष देखे जा सकते हैं.
गांव के 52 वर्षीय स्कूल टीचर वजीर चंद सरावे बचपन से ही इस तरह के अवशेषों को इकट्ठा कर रहे हैं और उन्होंने अपने घर में एक म्युजियम बना रखा है. वे बताते हैं, ''जो लोग करीब 5,000 साल पहले यहां रहते थे, वे संभवत: हमसे ज्यादा एडवांस थे. बेहतर सुरक्षा के लिए उनके मकान चौड़ी दीवारों वाले थे और उनकी ईंटें कई आकारों की थीं.”
सरावे ने चूडिय़ां, सुराही, बीकर, कीमती पत्थर, खिलौने, मुहर, प्लेट आदि अवशेष इकट्ठे किए और इन शिल्पाकृतियों को दिल्ली के नेशनल म्युजियम को दान कर दिया. कुछ गांववालों ने बताया कि बारिश की वजह से ये प्राचीन शिल्पाकृतियां बाहर आने लगी थीं. कई बार तो ऐसा भी हुआ कि बच्चों ने इन्हें इकट्ठा किया और बाहरी लोगों को 200 से 500 रु. में बेच डाला.
सरावे की मां ने एक बार उन्हें ढोर चराने के लिए इन टीलों की तरफ भेजा था, तभी से उन्होंने इन टीलों की खोजबीन शुरू कर दी. वे बताते हैं, ''खुदाई से पता चला कि उस युग में भी आग का व्यापक इस्तेमाल होता था. पुरातत्वविदों को पांच वेदियां मिली हैं और एक ऐसी जगह भी मिली है, जहां उस युग में शायद बलि दी जाती थी.” एक कब्रिस्तान और उसमें 11 नरकंकाल पाए गए हैं, जिनमें तीन महिलाओं के हैं. उनकी बगल में कलश पाए गए हैं, जिनमें शायद खाने की चीजें भरी हुई थीं. आज आरजीआर 1, 2, 3 कहलाने वाले तीन टीले एएसआइ की बाड़ से सुरक्षित हैं, हालांकि गांववाले वहां आजादी से आ-जा सकते हैं. औरतें वहां गोबर के उपले सुखाने के लिए जाती हैं. इंडियन ट्रस्ट फॉर रूरल हेरिटेज ऐंड डेवलपमेंट के चेयरमैन एस.के. मिश्र बताते हैं, ''अभी तक सात स्थलों की पहचान हुई है.
मिश्र के अनुसार, ग्लोबल हेरिटेज फंड ने 2010 में राखीगढ़ी को विलुप्तप्राय पुरातात्विक स्थल के रूप में चिन्हित किया है और वह इस प्रोजेक्ट को फंड देने को तैयार है. वे कहते हैं, ''गांव की पंचायत ने एक म्युजियम के विकास और एक इंटरप्रेटेशन सेंटर बनाने के लिए छह एकड़ जमीन देने का प्रस्ताव पास किया है, लेकिन नियमों के मुताबिक, इसे मुफ्त में नहीं दिया जा सकता. इसलिए एएसआइ को यह फैसला लेना है कि इसे वह लीज पर ले सकता है या नहीं.”
दूसरी ओर, गांववालों में यह उम्मीद बंधी है कि इस खुदाई स्थल के विकास से उनके लिए नौकरियों के अवसर खुलेंगे. एएसआइ ने फिलहाल काम रोक दिया है क्योंकि फंड के प्रबंधन को लेकर सीबीआइ जांच चल रही है, पर गांववाले चाहते हैं कि अब इस स्थल के संरक्षण में ज्यादा सक्रियता बरती जाए. एएसआइ के प्रवक्ता बी.आर. मणि कहते हैं, ''गांव का आंशिक रूप से संरक्षण किया गया है. पूरे स्थान को बाड़ से तभी घेरा जा सकता है, जब एएसआइ जमीन हासिल कर ले.” एएसआइ तो शुरू से चाहता था कि उसे खुदाई के लिए पूरा गांव मिले क्योंकि वहां और भी अवशेषों के पाए जाने की संभावना है, लेकिन गांववालों को कहीं और बसाने का मसला अभी तक सुलझ नहीं पाया है. मणि कहते हैं, ''यह इतना आसान नहीं है. सिर्फ राज्य सरकार ही उनका पुनर्वास कर सकती है.”