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अयोध्या विवाद: सुन्नी वक्फ बोर्ड और इकबाल अंसारी ने किया सुब्रमण्यम स्वामी का विरोध

सुप्रीम कोर्ट में 31 मार्च को होने वाली रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद की अहम सुनवाई से ठीक पहले इस मामले में मुख्य पक्षकार स्वर्गीय हाशिम अंसारी के पुत्र इकबाल अंसारी और उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी की ओर से सुप्रीम कोर्ट में मामला उठाये जाने पर सख्त विरोध किया है.

इकबाल अंसारी इकबाल अंसारी
अहमद अजीम
  • लखनऊ,
  • 31 मार्च 2017,
  • अपडेटेड 8:54 AM IST

सुप्रीम कोर्ट में 31 मार्च को होने वाली रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद की अहम सुनवाई से ठीक पहले इस मामले में मुख्य पक्षकार स्वर्गीय हाशिम अंसारी के पुत्र इकबाल अंसारी और उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी की ओर से सुप्रीम कोर्ट में मामला उठाये जाने पर सख्त विरोध किया है. दोनों ने सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को खत लिखकर शिकायत की है.

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शिकायत में कहा गया है कि सुब्रमण्यम स्वामी इस मामले में पक्षकार नहीं हैं, उनका इस केस से कोई लेना देना नही हैं, उन्होंने इस मसले में पार्टी बनने के लिए अदालत में याचिका दायर की थी, जिस पर कई पक्षकारों ने ऐतराज जाहिर किया था. इकबाल अंसारी और वक्फ बोर्ड के मुताबिक अदालत ने अभी तक स्वामी को पक्ष बनाने के बारे में कोई फैसला नहीं लिया है. लेकिन इसके बावजूद 21 मार्च को स्वामी ने, मामले के असल पक्षकारों को सूचित किए बिना ही जल्द सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट में ये मामला उठा दिया.

दोनों ने चिठ्ठी में ये भी कहा है कि इससे पहले भी कई बार स्वामी ऐसा कर चुके हैं. रजिस्ट्रार को लिखे खत में दोनों ने चीफ जस्टिस के संज्ञान में इस बात को लाये जाने की मांग की है, ताकि भविष्य में सुब्रमण्यम स्वामी ऐसा ना कर सके. सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की शुक्रवार को सुनवाई होनी है. 21 मार्च को सुब्रमण्यम स्वामी ने सुप्रीम कोर्ट से अयोध्या भूमि विवाद पर जल्द सुनवाई की मांग की थी.

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इस पर कोर्ट ने कहा था कि धर्म से जुड़े इस तरह के संवेदनशील मसलों का हल आपसी सहमति से निकाला जाना बेहतर है और दोनों पक्षों को आपस में बातचीत के जरिए हल निकालने की कोशिश करनी चाहिए. चीफ जस्टिस ने यहां तक कहा था कि अगर दोनों पक्ष चाहें तो वे खुद या सुप्रीम कोर्ट के दूसरे जज मध्यस्थता कर सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने सुब्रमण्यम स्वामी को 31 मार्च तक सभी पार्टियों से बातचीत कर इस सुझाव के बारे में उनकी राय बताने को कहा था.

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