यह धर्म और भावनाओं से जुड़ा मुद्दा है," भारत के मुख्य न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर ने राज्यसभा सांसद सुबह्मण्यम स्वामी के उस अनुरोध पर यह टिप्पणी की है कि सुप्रीम कोर्ट उनकी उस याचिका को तत्काल प्रभाव से सुने जिसमें उन्होंने अयोध्या में राम जन्मभूमि के विवादित स्थल पर मंदिर के निर्माण की अनुमति मांगी थी.
उन्होंने कहा, ''आप सभी साथ मिलकर एक सद्भावनापूर्ण बैठक कर लें." यह एक असामान्य सलाह थी. मुख्य न्यायाधीश ने खुद इस मामले में एक संभावित मध्यस्थ बनने का प्रस्ताव दिया. उन्होंने कहा, ''न्यायिक आदेश से बेहतर है कि मिल-जुलकर इस मामले का निपटारा कर लिया जाए."
इस पर मिश्रित प्रतिक्रियाएं आई हैं. केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्री महेश शर्मा ने इसे ''जबरदस्त सलाह" करार दिया जो ''राम मंदिर के निर्माण की राह बनाएगा." शर्मा ने कहा कि सरकार समझौते में मध्यस्थ बनना ''पसंद करेगी". उत्तर प्रदेश के नवनियुक्त मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सहमति जताई कि सरकार मध्यस्थ की भूमिका निभा सकती है.
उमा भारती और लालकृष्ण आडवाणी समेत बीजेपी के कई नेताओं ने कोर्ट की सलाह की सराहना की. जनवरी के अंत में जारी उत्तर प्रदेश के अपने घोषणापत्र श्लोक कल्याण संकल्प पत्र्य में बीजेपी ने वादा किया था कि वह ''संविधान के दायरे में अयोध्या में राम मंदिर बनाने की सभी संभावनाओं को तलाशेगी." मंदिर बनाने के प्रति पार्टी की ऐलानिया वचनबद्धता उसे या यूपी सरकार को शायद ही आदर्श मध्यस्थ बनने दे.
अधिवक्ता और ऐक्टिविस्ट प्रशांत भूषण ने फोन पर बातचीत में माना कि वे उलझन में हैं. वे बोले, ''यह टिप्पणी असामान्य है. यह सार्वजनिक मसला है जिसमें पूरा देश हिस्सेदार है, सिर्फ याचिकाकर्ता नहीं. इसमें कानून के अहम सिद्धांत जुड़े हुए हैं और अदालत को फैसला देना चाहिए, बजाए इसके कि वह किसी निबटारे की बात कहे." सांसद और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने ट्वीट करते हुए दलील दी कि ''बाबरी मस्जिद का मामला जमीन पर हक का है जिसे इलाहाबाद हाइकोर्ट ने गलती से साझेदारी का केस मानकर फैसला दे दिया इसीलिए अपील सुप्रीम कोर्ट में है."
सितंबर, 2010 में इलाहाबाद हाइकोर्ट की खंडपीठ ने 2.77 एकड़ भूखंड को तीन हिस्सों में बांटा था जिसमें दो-तिहाई का नियंत्रण हिंदू समूहों को दिया गया और एक-तिहाई सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के नाम किया गया. सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को ''अजीब और चैंकाने वाला" बताते हुए मई 2011 में इस पर रोक लगा दी थी. संयोग से वक्फ बोर्ड को उत्तर प्रदेश सरकार अनुदान देती है जिसके मुखिया अब योगी आदित्यनाथ हैं, जिनके पूर्ववर्ती गोरखनाथ मठ के महंत दिग्विजय नाथ ने कथित रूप से 1949 में बाबरी मस्जिद के भीतर रामलला की मूर्ति रखवाने का इंतजाम किया था.
इसी वजह से यूपी सरकार इस मामले में अपनी घोषित प्राथमिकताओं के चलते अजीबोगरीब स्थिति में है और कुछ लोगों ने तो वन्न्फ बोर्ड से केस वापस लेने को कहा है. इस मामले में पक्षकार बाबरी मस्जिद ऐक्शन कमेटी के संयोजक जफरयाब जीलानी ने कहा कि ''अगर वक्फ बोर्ड केस वापस ले भी ले तो दूसरे याचिकाकर्ताओं के होने से केस जारी रहेगा." जीलानी को संदेह है कि कोर्ट से बाहर मामला सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बगैर सुलझ पाएगा. बातचीत 1986 से ही चल रही है लेकिन आज तक कोई संतोषजनक समाधान नहीं निकल पाया है.
स्वामी ने अपना पक्ष बिल्कुल साफ कर दिया है. उन्होंने समूचे विवादित स्थल को मंदिर निर्माण के लिए दिए जाने की बात की है और मुस्लिम याचिकाकर्ताओं को कहा है कि वे सरयू नदी के किनारे एक मस्जिद बनाकर संतुष्ट हो लें. उन्होंने संवाददाताओं से कहा, ''हम राम के जन्म का स्थल बदल नहीं सकते लेकिन मस्जिद तो कहीं भी बन सकती है." उन्होंने ट्विटर पर लिखा, ''सुप्रीम कोर्ट से 1994 में मंजूर राम जन्मभूमि पर पहले से ही रामलला का अस्थायी मंदिर है. वहां पूजा होती है.
क्या उसे कोई ढहाने का दुस्साहस कर सकता है?" स्वामी को सुप्रीम कोर्ट में 31 मार्च को जवाब देना है. भूषण कहते हैं, ''इस मामले में देश को कोर्ट की ओर से अंतिम फैसले की दरकार है जिसे चुनौती न दी जा सके. "
(—साथ में आशीष मिश्र)