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एक पर एक फ्री नाराजगी ले डूबी भाजपा को

तीनों राज्य निकलने से भाजपा कि चिंता सिर्फ यहीं तक नहीं है. 2019 के लिए भी यह एक बड़ी चुनौती होगी. क्योंकि केंद्र में भाजपा की सरकार है और ज्यादातर राज्यों में भाजपा की ही सरकार है.

नरेंद्र मोदी नरेंद्र मोदी
संध्या द्विवेदी/मंजीत ठाकुर
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  • 12 दिसंबर 2018,
  • अपडेटेड 8:10 PM IST

सत्ता पर काबिज तीनों राज्यों में भाजपा की हार की एक अहम वजह सत्ताविरोधी रुझानों की दोतरफा मार रही. राज्य सरकारों के खिलाफ नाराजगी की काट के लिए भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर दांव चला. लेकिन मोदी अपनी लोकप्रियता के साथ ही केंद्र सरकार के खिलाफ साढ़े चार साल में जमा हुए सत्ताविरोधी रुझान के बोझ के साथ चुनाव मैदान में उतरे जिसका फायदा कांग्रेस को मिल गया.

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भाजपा के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि, 2014 के बाद जिन राज्यों में चुनाव हुए वहां भाजपा ने शानदार प्रदर्शन किया. बिहार और दिल्ली इसके अपवाद हैं और केरल, पुद्दुचेरी, पंजाब और तमिलनाडू में भाजपा की उपस्थिति खास नहीं रही है.

यहां तक कि इसी साल के मध्य में कर्नाटक चुनाव में भी भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी लेकिन चुनाव बाद जेडीएस और कांग्रेस ने मिल कर सरकार बना दी और भाजपा को रोक दिया. लेकिन कर्नाटक की जनता ने जनादेश मोदी और भाजपा के समर्थन में दिया गया था.

2014 के लोकसभा चुनाव के बाद, चुनाव दर चुनाव में भाजपा जीत हासिल करती गई. इसकी एक अहम वजह यह रही है कि मोदी की लोकप्रियता के सहारे भाजपा ने सत्ता में बैठे अपने विरोधी दलों को चुनाव में उखाड़ फेंका. मोदी की मजबूत नेता की छवि, अमित शाह के कुशल चुनाव प्रबंधन और सत्ता में बैठे विरोधी दलों के खिलाफ जमा हुए सत्ताविरोधी रुझान भाजपा की जीत तय करती गई.

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लेकिन जब भाजपा उन राज्यों में चुनाव मैदान में उतरी जहां खुद पार्टी सरकार में थी तो वहां विरोध में जो पार्टी थी वह सत्ता में नहीं थी. इसलिए अपनी सरकार को डिफेंड करने में दिक्कत पेश आई. इसका साफ संकेत गुजरात चुनाव में मिला. भाजपा यहां अपनी सरकार बचाने में बड़ी मुश्किल से सफल हुई और पहली बार सत्ता में दहाई आंकड़ों के साथ आने पर मजबूर होना पड़ा.

मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भाजपा खुद सत्ता में थी. राजस्थान में पांच साल से और अन्य दोनों राज्यों में 15 साल से. इन दोनों राज्यों में सत्ता विरोधी रुझान को पाटने के लिए स्थानीय नेतृत्व पूरी कोशिश कर रहा था लेकिन चुनाव में जब भाजपा नेताओँ ने केंद्र सरकार की उपलब्धियों का जिक्र बड़े पैमाने पर करना शुरू कर दिया तो फिर केंद्र सरकार के खिलाफ जमा हुए सत्ता विरोधी रुझान राज्य सरकारों के खिलाफ एकत्र सत्ताविरोधी रुझान में मिल गए और यह रुझान निर्णायक साबित हुआ.

मध्य प्रदेश सरकार के एक पूर्व मंत्री और भाजपा नेता कहते हैं कि चुनाव में कांग्रेस की तरफ से स्थानीय सरकार के खिलाफ जितने आरोप लगाए गए उससे दो-गुणा से अधिक आरोप केंद्र सरकार के खिलाफ लगाए गए. राफेल, नोटबंदी, जीएसटी जैसे मुद्दे विरोधी दलों का प्रमुख चुनावी नारा था. केंद्र और राज्य दोनों के सत्ताविरोधी रुझान  जब एकजुट हो जाएं तो फिर जीतना काफी कठिन हो जाता है. हुआ यही और तीनों राज्यों में भाजपा जीत नहीं पाई.

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तीनों राज्य निकलने से भाजपा कि चिंता सिर्फ यहीं तक नहीं है. 2019 के लिए भी यह एक बड़ी चुनौती होगी. क्योंकि केंद्र में भाजपा की सरकार है और ज्यादातर राज्यों में भाजपा की ही सरकार है.

ऐसे में केंद्र सरकार के खिलाफ जमा हुए सत्ता विरोधी रुझान में जब राज्यों के सत्ता विरोधी रुझान जुड़ेंगे तो उसे पाटना एक बड़ी चुनौती होगी. यदि भाजपा इस समस्या का काट नहीं तलाश पाई तो 2019 की राह कठिन है.

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