
इसे 2019 की गर्मियों में होने वाले देश के सबसे बड़े राजनैतिक शो यानी आम चुनावों का ट्रेलर बताया जा रहा है. हिंदी पट्टी के तीन राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनावों के इर्द-गिर्द जो राजनैतिक बातें गढ़ी जा रही हैं, वे बेमानी भी नहीं हैं. लोकसभा चुनाव से बमुश्किल छह महीने पहले 11 दिसंबर को घोषित होने वाले परिणाम से स्पष्ट हो जाएगा कि देश के दोनों बड़े राष्ट्रीय दल—कांग्रेस और भाजपा कितने पानी में हैं. फिलहाल, भाजपा तीनों राज्यों में सत्ता में है और इन राज्यों की 65 में 62 लोकसभा सीटें उसके ही खाते में हैं.
यदि सत्तारूढ़ दल एक से अधिक राज्य में हार जाता है तो उसे लोकसभा चुनाव के लिए अपनी रणनीति पर फिर से विचार करना होगा. इन राज्यों में हार से भाजपा के भविष्य पर भी संकट गहराएगा क्योंकि पार्टी को अभी देश के पूर्वी और दक्षिणी प्रांतों में अपने राजनैतिक वजूद की थाह लेने का मौका भी नहीं मिल पाया है. लेकिन इससे भी बड़ी बात, कांग्रेस का जीतना राहुल गांधी के लिए संजीवनी सिद्ध होगा और कांग्रेस के पुनरुद्धार का रास्ता तैयार होने लगेगा.
अगर परिणाम इसके विपरीत आते हैं तो फिर से उन दो पुराने दावों की पुष्टि होगी—प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की चुनाव मशीनरी के करिश्मे को हिंदीपट्टी में मात देना नामुमकिन है और राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस के पुनरोत्थान की योजना सिर्फ कागजों में सिमट कर रह जाएगी. इससे अगले चुनावों में मोदी के खिलाफ विपक्षी दलों का महागठबंधन खड़ा करने में धुरी की भूमिका निभाने का कांग्रेस का सपना भी चकनाचूर हो सकता है.
एक और बात इन चुनावों को बहुत दिलचस्प बनाती है, दोनों बड़े दलों की सीधी टक्कर होने वाली है. आखिरी बार ऐसा मुकाबला दिसंबर 2017 में मोदी-शाह के गृहक्षेत्र गुजरात में हुआ था. आखिरी वक्त में मुकाबला कांटे का हो गया था. हालांकि कांग्रेस पांच बार से लगातार सत्तासीन भाजपा के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर को भुनाने में नाकाम रही पर 182 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा की ताकत 100 से कम हो गई.
चुनावी राज्यों में एक बार फिर से सत्ता विरोधी लहर की बातें तैर रही हैं और भाजपा के तीन हाइ प्रोफाइल मुख्यमंत्रियों—राजस्थान में वसुंधरा राजे, मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान और छत्तीसगढ़ में रमन सिंह की किस्मत लिखी जानी है. इन तीन मुख्यमंत्रियों में से सबसे नई वसुंधरा राजे के खिलाफ राजस्थान में सबसे प्रचंड सत्ताविरोधी लहर दिख रही है. वैसे राजस्थान का इतिहास भी रहा है कि वहां की जनता सत्तासीन दल की वापसी नहीं कराती बल्कि हर बार राज्य की कमान दूसरे दल को सौंप दी जाती है.
छत्तीसगढ़ में, रमन सिंह 2003 से सत्ता में हैं. पिछले चुनावों में नेतृत्वविहीन कांग्रेस के साथ हुए मुकाबले में उन्होंने बहुत कम अंतर से जीत दर्ज की थी जो फिक्र का सबब है. हालांकि, यहां के परिणाम दोनों ही दलों के केंद्रीय नेतृत्व को बहुत ज्यादा चिंतित नहीं करेंगे क्योंकि यह राज्य लोकसभा में 11 सदस्य ही भेजता है. तो सबकी नजर चौहान पर रहेगी, जो चौथी बार कमान संभालने की आस लिए चुनाव मैदान में हैं.
राज्यों से उभरकर आए भाजपा के सबसे मजबूत और सबसे लोकप्रिय नेताओं में से एक शिवराज सिंह, जो "मध्य प्रदेश के मामा'' के तौर पर जाने जाते हैं, करियर की सबसे कठिन परीक्षा का सामना कर रहे हैं. उन्हें कांग्रेस की गुटबाजी का फायदा मिल सकता है, लेकिन अंतिम समय में की गई कई लोक-लुभावन राजनैतिक घोषणाएं, भाजपा के इस वरिष्ठ की बेचैनी और हताशा को जाहिर कर देती हैं. बताया जाता है कि मोदी ने भी कई मौकों पर उनके साथ वह गर्मजोशी नहीं दिखाई है जिसकी उन्हें उम्मीद थी.
फिर भी, दो अन्य मुख्यमंत्रियों की तरह चौहान की उम्मीदें भी मोदी के करिश्माई व्यक्तित्व और चुनाव प्रचार पर टिकी हैं जिसने अतीत में कई चुनावों के परिणाम बदलकर रख दिए हैं. भाजपा की जीत और हार के बीच प्रधानमंत्री खड़े होंगे. यह बात इस तथ्य से भी जाहिर होती हैं कि राहुल सभी रैलियों में मोदी और उनकी नीतियों को ही निशाना बना रहे हैं. इन राज्यों के मुख्यमंत्री के खिलाफ वह शायद ही कुछ बोलते हैं. शायद इसीलिए 11 दिसंबर का परिणाम नरेंद्र मोदी की अजेयता पर जनमत संग्रह भी होगा. ठ्ठ
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