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Ramayan 22nd May Update: शुरू हुआ राम-सीता-लक्ष्मण के जीवन का एक नया अध्याय

अब तक के एपिसोड में आपने देखा कि भरत अपने बड़े भैया राम को वापस अयोध्या चलने की विनती करते हैं. वहीं माता कैकयी भी राम से क्षमा मांगती हैं. लेकिन राम कहते हैं कि अगर वे वापस अयोध्या लौटे तो पिता दशरथ का दिया वचन टूट जाएगा. राम, पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण संग 14 वर्ष के वनवास की ओर प्रस्थान करते हैं.

रामायण के राम-सीता-लक्ष्मण रामायण के राम-सीता-लक्ष्मण
पूजा त्रिवेदी
  • मुंबई,
  • 23 मई 2020,
  • अपडेटेड 3:23 PM IST

लॉकडाउन में रामायण को लोग काफी एंजॉय कर रहे हैं. दूरदर्शन के बाद ये स्टार प्लस पर आ रहा है और इस रामायण के अब तक के एपिसोड में आपने देखा कि भरत अपने बड़े भैया राम को वापस अयोध्या चलने की विनती करते हैं. वहीं माता कैकयी भी राम से क्षमा मांगती हैं. लेकिन राम कहते हैं कि अगर वे वापस अयोध्या लौटे तो पिता दशरथ का दिया वचन टूट जाएगा. वे माता कैकयी से भी कहते हैं कि उन्हें धर्म के रास्ते पर चलने की आज्ञा दें.

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अयोध्या लौटकर भरत अपने भाई राम के चरण पादुका राजगद्दी पर रखकर उसका आशीर्वाद लेतें है और प्रजा को ये बताते हैं की अयोध्या के राजा श्रीराम हैं, परंतु पिताश्री का वचन निभाने के लिए श्रीराम 14 वर्ष का वनवास करके ही लौटेंगे. तब तक इस प्रजा और अयोध्या की रक्षा, राजा राम की अनुपस्थिति में भरत एक सेवक के भांती गद्दी संभालेंगे. भरत सभा के सामने गुरुदेव का आशीर्वाद लेकर ये कहतें है कि अब वो भी नंदीग्राम में तपस्वी जीवन बिताएंगे और वहां एक कुटिया में रहेंगे. जिसके राजा वन में है वो भला कैसे महल के सारे सुख ले सकता है. इसलिए अब भरत भी तपस्वी जीवन बिताएंगे और अपना कर्त्तव्य निभाएंगे.

भरत ने भाभी उर्मिला से मांगी माफी

भरत आकर उर्मिला से मिलतें हैं और उनसे क्षमा मांगता हैं. क्योंकि वो उर्मिला को वन में अपने साथ नहीं ले गए थे. भरत उन्हें विश्वास दिलाकर गए थे कि वे श्रीराम,सीता और लक्ष्मण को साथ ले आयेंगे, पर ला ना सके और इस वजह से उर्मिला को लक्ष्मण से मिलने का वो एक अवसर भी हाथ से चला गया. इसके बाद भरत नंदीग्राम जाने के लिए मां कौशल्या से आज्ञा लेने आतें है. माता कौशल्या, भरत को नंदीग्राम जाने की आज्ञा दे देती हैं और कहती हैं कि अच्छे से अपना सेवकधर्म निभाए.

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राजसी सुख छोड़ तपस्वी बनें भरत

राज सिंघासन पर रखी श्रीराम की चरण पादुका का आशीर्वाद लेकर, भरत नंदीग्राम की ओर निकल पड़ते हैं और साथ ही तपस्वी वस्त्र धारण कर लेते हैं. नंदीग्राम में भरत की पत्नी उनसे मिलने आती है और कहती है क‍ि मैं भी आपकी इस कठोर परीक्षा में आपका साथ दूंगी और भरत की सेवा करने का अधिकार मांगती है और भरत के साथ तपस्वी जीवन बिताने की प्रार्थना करती है. इसपर भरत अपनी पत्नी को ऐसा करने से मना कर देते हैं और कहतें है की महल में ही रहकर वो अपना कर्त्तव्य निभाए और माता कौशल्या की सेवा करें.

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उधर चित्रकूट में श्रीराम, सीता और लक्ष्मण अपनी कुटिया छोड़कर दूसरी जगह जाने की बात सभी महर्षियों से कहते हैं और साथ ही ये कहते हैं क‍ि भरत या अयोध्यावासी फिर हमारे लिए यहां ना आ जाएं इसलिए हमें यहां से जाना होगा. दूसरी ओर नंदीग्राम में माता कैकयी अपने पुत्र भरत से मिलने आती है. कैकयी, भरत से विनती करती है की वो उसे महारानी नहीं बल्कि मां कहकर पुकारे. परंतु क्रोधित भरत कैकयी से कहता है कि मेरी मां तो कबकी मर गई हैं. ऐसे में महारानी कैकयी भरत से कहती है कि वो भी नंदीग्राम में रहकर एक तपस्विनी का जीवन व्यतीत करता चाहती है.

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लेकिन भरत, कैकयी को खरी खोटी सुनाता है और उसकी एक नहीं सुनता. रानी कैकयी अपने पुत्र से मिन्नतें करती है परंतु भरत, कैकयी से कहता है कि आपको पश्चाताप की अग्नि में हर रोज जलना होगा. निराश होकर रानी कैकयी वापस अयोध्या लौट जाती है. महल में वापस आकर कैकयी जोर जोर से हंसने लगती है और कहती है कि महारानी कैकयी ने इतिहास में अपना नाम अमर कर दिया.

दूसरी ओर श्रीराम, सीता और लक्ष्मण, तपस्विनी महासती अनुसुइया के पास चित्रकूट में ही एक आश्रम में आते हैं और सभी का आशीर्वाद लेते हैं. आगे के भाग में दिखाया जायेगा की कैसे श्रीराम, सीता और लक्ष्मण वन में आगे बढ़ते हैं और कैसे श्रीराम और लक्ष्मण असुरों और राक्षसों का सामना करके उनका वध करतें हैं.

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