
फिल्म हिचकी में अभिनेत्री रानी मुखर्जी की भूमिका को लेकर सुहानी सिहं ने की बातचीत-
आपने इस फिल्म में टोरेट सिंड्रोम की शिकार शिक्षिका का रोल निभाया है. इस रोल को अपनी पुरानी फिल्म ब्लैक केकिरदार के मुकाबले किस तरह से अलग ट्रीट किया?
मैं जब भी सुन, बोल या देख न सकने वाले लोगों से मिली, मुझे एक बार के लिए भी नहीं लगा कि वे किसी तरह की सहानुभूति चाहते हैं क्योंकि उन्होंने कभी सोचा ही नहीं कि वे किसी तरह से विकलांग हैं. हिचकी की नैना के साथ भी ऐसा ही है. भारत में टोरेट के बारे में लोगों को ज्यादा पता नहीं है. मुझे उम्मीद है कि हिचकी के जरिए लोग इससे परिचित हो सकेंगे.
आपकी फिल्म हिचकी कहती है कि बुरे छात्र नहीं शिक्षक होते हैं.
आप इससे कितनी सहमत हैं? पूरी तरह से. मेरा मानना है कि सामाजिक-आर्थिक, जाति, वर्ण, मजहब की पृष्ठभूमि से परे हर छात्र समान अवसर का हकदार है. छात्रों के साथ शिक्षकों के बराबरी का बर्ताव शुरू करने का यह सही समय है.
फिल्म में बच्चों के साथ आपने किस तरह से रिश्ता कायम किया? उनमें कई तो पहली बार अभिनय कर रहे थे?
शूट से पहले मैं उनसे नहीं मिली थी. हम नहीं चाहते थे कि वे मुझसे बहुत हिल-मिल जाएं. कहानी वहां से शुरू होती है जहां उनमें असंतोष पनपता है और फिर बात बनती है. हम चाहते थे कि वह सब बहुत स्वाभाविक ढंग से हो.
आप कैसी स्टुडेंट रही हैं?
स्कूल में मुझे बहुत मजा आता था. भूगोल और इतिहास मेरे पसंदीदा विषय थे. मैं हमेशा टीचर्स की नजर में चढऩा चाहती थी लेकिन मैं आगे नहीं बैठती थी. इसकी वजह यह थी कि हमारा स्कूल (मुंबई का मानेकजी कूपर) समंदर के किनारे था और हममें हर कोई चाहता था कि सबसे पीछे की सीट पर बैठकर समंदर की ताजा हवा का लुत्फ उठाए.