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Mardaani 2 Review: चौंकाती है ऑफिसर और सनकी अपराधी की कहानी, डार्क थ्रिलर रानी की ये फिल्म

हैदराबाद और उन्नाव में रेप की झकझोर देने वाली घटनाओं के बीच रिलीज हुई फिल्म मर्दानी 2, रेपिस्ट्स के साइकोलॉजिकल बिहेवियर और देश में फैली पुरुष प्रधान समाज को एक्सपोज करने का काम करती है.

रानी मुखर्जी रानी मुखर्जी
विशु सेजवाल
  • नई दिल्ली,
  • 13 दिसंबर 2019,
  • अपडेटेड 6:12 PM IST
फिल्म:मर्दानी 2
3.5/5
  • कलाकार :
  • निर्देशक :गोपी पूथरन

हैदराबाद और उन्नाव में रेप की झकझोर देने वाली घटनाओं के बीच रिलीज हुई फिल्म मर्दानी 2, रेपिस्ट्स के साइकोलॉजिकल बिहेवियर और देश में फैली पुरुष प्रधान समाज को एक्सपोज करने का काम करती है. रानी मुखर्जी स्टारर ये फिल्म ना केवल सिस्टम में एक वर्किंग क्लास महिला के संघर्षों को दिखाती है बल्कि ये साबित भी करती है कि किसी भी थ्रिलर फिल्म में अगर मेन लीड के साथ ही साथ विलेन के किरदार को भी ठीक से गढ़ा जाए तो अक्सर फिल्म एक अच्छा  सिनेमैटिक अनुभव साबित होती है.

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कहानी

आईपीएस ऑफिसर शिवानी शिवाजी रॉय मुंबई से कोटा आ चुकी है. राजस्थान का ये शहर देश भर में आईआईटी की तैयारी करने वाले छात्रों का हब बना हुआ है. इस शहर में सफलता की गाथाएं हैं तो कई स्याह पहलू भी हैं. शहर में पहुंचते ही शिवानी को एक खौफनाक रेप और मर्डर की सूचना मिलती है. एक यंग क्रेजी और मानसिक विकृत शख्स सनी ना केवल महिलाओं का रेप करता है बल्कि एक सैडिस्ट या परपीड़क की तरह अपने शिकार के तड़पने पर खुश भी होता है. शिवानी पूरे आत्मविश्वास के साथ इस शख्स के पीछे लग जाती है और प्रेस में शिवानी के ऐलान के बाद अब इस शख्स पर शिवानी को लेकर खतरनाक सनक सवार हो जाती है और वो लगातार जघन्य अपराधों को अंजाम देता है. चोर-पुलिस की ये दौड़ बेहद हिंसक और गंभीर होती चली जाती है और फिल्म का क्लाईमैक्स लोगों को चौंका देने पर मजबूर कर देता है.

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डायरेक्शन

किसी भी सस्पेंस फिल्म में एडिटिंग, बैकग्राउंड स्कोर और एक्टर्स की अच्छी केमिस्ट्री से साधारण फिल्म को नए स्तर पर पहुंचाया जा सकता है. इस फिल्म का स्क्रीनप्ले, डायलॉग्स और डायरेक्शन की जिम्मेदारी संभालने वाले डायरेक्टर गोपी पूथरन भी ऐसा करने में कामयाब रहे हैं. टाइट स्क्रीनप्ले के चलते फिल्म का पहला हाफ बांध कर रखता है, हालांकि सेकेंड हाफ थोड़ा धीमा है लेकिन फिल्म अंतिम भाग में आते-आते रोंगटे खड़े कर देती है. शानदार प्रोडक्शन क्वालिटी के चलते कई सीन्स बेहतरीन बन पड़े हैं.  रानी के अलावा मौजूद बाकी किरदारों पर खास मेहनत नहीं की गई है जो थोड़ा अखरता है हालांकि विलेन और मेन लीड के बीच चलते वॉ़र ने उसकी कमी पूरी की है. हालांकि सिस्टम से लड़ती अकेली महिला की कहानी कई जगहों पर ड्रैमेटिक और क्लीशे लगती है, साथ ही विशाल का किरदार भी कुछ मौकों पर वास्तविकता से दूर लगता है.  फिल्म की सिनेमाटोग्राफी के सहारे शिवानी और विशाल के किरदार को उभारने की कोशिश जरूर कामयाब रही है.

एक्टिंग

आईपीएस अफसर के तौर पर रानी के हाव-भाव जंचते हैं और एक फेमिनिस्ट महिला को कैसे एक पावरफुल सिस्टम में सर्वाइव करना पड़ता है, ऐसे द्वन्द से जुड़े एक्सप्रेशन्स को वे अभिव्यक्त करने में कामयाब रही हैं. ग्रे शेड्स लिए शिवानी फिल्म में कई मौकों पर इमोशनल होती हैं और हिम्मत भी हारती हैं लेकिन वे लगातार स्क्रीन पर अपना दबदबा बनाए रखती हैं. हालांकि एक टीवी इंटरव्यू वाले सीन में उतना प्रभावी नहीं लगती जिसका कहीं ना कहीं श्रेय कमजोर राइटिंग को भी दिखाया जा सकता है. 

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वही 21 साल के विशाल जेठवा ने अपनी पहली ही फिल्म से ध्यान अपनी ओर खींचा है. कुछ समय पहले आतंकवादी की भूमिका से अपने बॉलीवुड करियर की शुरुआत करने वाले जिम सार्ब की तरह ही विशाल ने भी बचपन की त्रासदी से जूझते एक विकृत इंसान का किरदार निभाया है. वे कूल अंदाज में अपने एक्सप्रेशन्स और हरकतों से अपने आपसे घृणा करने को मजबूर करते हैं. उनका नाम साल के बेहतरीन नेगेटिव किरदारों में भी शुमार किया जा सकता है.

क्यों देखें

फिल्म डार्क और एंटरटेनिंग तो है ही, इसके साथ ही समाज में महिलाओं से जुड़े कई सवालों की तलाश में बैठे लोगों को इस फिल्म से वे जवाब भी मिलेंगे. इस फिल्म के सहारे देश में महिलाओं के प्रति द्वेष रखने वाले लोगों को नया नजरिया मिलेगा और थ्रिलिंग क्लाइमैक्स लोगों को झकझोर सकता है. मेनस्ट्रीम फिल्मों के हिसाब से देखें तो फिल्म में डार्कनेस और हिंसा काफी है लेकिन सेक्शुएल क्राइम से डील कर रहे लोगों की वास्तविकता को पर्दे पर लाने के लिए ये जरुरी थी और असंवेदनशील हो चुके समाज के एक बड़े हिस्से को इस तरह ही असहज कर देने वाली फिल्मों के जरिए ही सोचने पर मजबूर किया जा सकता है. 

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