Advertisement

''एनआरसी जब भी लागू किया जाएगा, किसी का उत्पीड़न नहीं होगा''

केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद  ने खास बातचीत के दौरान कहा, हम प्रदर्शनकारियों के साथ बातचीत कर रहे हैं और उन्हें समझा रहे हैं कि सीएए किसी भी भारतीय नागरिक पर कतई लागू नहीं होता, मुसलमानों पर तो और भी नहीं. उनमें से कइयों ने यह बात समझी है

शेखर घोष शेखर घोष
राज चेंगप्पा
  • नई दिल्ली,
  • 21 जनवरी 2020,
  • अपडेटेड 5:57 PM IST

इंडिया टुडे के ग्रुप एडिटोरियल डायरेक्टर राज चेंगप्पा के साथ इस खास बातचीत में केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने विवादास्पद नागरिकता (संशोधन) कानून, 2019 लागू करने के सरकार के फैसले, राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर को अपडेट करने के फैसले के पीछे के इरादे और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर पर उसके रुख का बचाव किया. बातचीत के अंश:

प्र: बीस विपक्षी दलों ने प्रस्ताव पारित करके कहा है कि नागरिकता संशोधन कानून (सीएए), राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) असंवैधानिक हैं, खास तौर पर वे गरीबों और दबे-कुचलों को निशाना बनाते हैं. ये आदिवासियों तथा भाषाई और धार्मिक अल्पसंख्यकों को कुचल देंगे. इस पर आप क्या कहेंगे?

Advertisement

इस प्रस्ताव की मुख्य प्रस्तावक कांग्रेस ने अगर होमवर्क किया होता, तो वह दोहरेपन के आरोपों के आगे खुद को बेनकाब नहीं करती. सीएए का विचार कौन लाया था? क्या डॉ. मनमोहन सिंह ने राज्यसभा में विपक्ष के नेता के तौर पर 2003 में तब गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी से सभी प्रताडि़त अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने के लिए नहीं कहा था? 2002 में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने आडवाणी से इन देशों के हिंदुओं और सिखों को नागरिकता देने की गुजारिश की थी. असम के मुख्यमंत्री के नाते तरुण गोगोई ने भी इसके बारे में लिखा था. वे इसकी मांग करते हैं तब ठीक, जब हम करते हैं तो दिक्कत है. बुनियादी तौर पर यह मानवीय मुद्दा है. क्या हम इनकार कर सकते हैं कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के साथ बर्बर बर्ताव हो रहा है?

Advertisement

आम लोगों ने भी सीएए को लेकर चिंता जाहिर की है और मेट्रो तथा बड़े शहरों में रैलियां निकाली हैं.

हम उनसे बात कर रहे हैं और समझा रहे हैं कि सीएए किसी भारतीय नागरिक पर कतई लागू नहीं होता, मुसलमानों पर तो और भी नहीं. यह सिर्फ तीन देशों अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के हिंदुओं, सिखों, पारसियों, बौद्धों, जैनियों और ईसाइयों पर लागू होता है. क्या श्रीमती इंदिरा गांधी ने युगांडा के गुजराती हिंदू शरणार्थियों को शरण नहीं दी थी? क्या राजीव गांधी ने श्रीलंका के तमिलों को नागरिकता नहीं दी थी? तब यह दलील क्यों नहीं दी गई कि मुसलमानों को छोड़ दिया गया? हम प्रदर्शनकारियों से बात कर रहे हैं और उनमें से कइयों ने यह बात समझी है कि उनका विरोध-प्रदर्शन विपक्षी दलों की फैलाई गई गलत जानकारियों पर आधारित है.

छह धर्मों का साफ-साफ जिक्र करने के बजाए आप सीएए में सिर्फ 'उत्पीडि़त अल्पसंख्यकों' का उल्लेख कर सकते थे.

अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश इस्लामी देश हैं. हम इन देशों में प्रताड़ित किए जा रहे किसी भी मुसलमान को जगह देने पर विचार के लिए तैयार हैं. 600 से ज्यादा ऐसे लोंगों को नागरिकता और 2,000 से ज्यादा को शरण दी गई है. पर सीएए में जिन धार्मिक समूहों का उल्लेख किया गया है, उन्हें समुदाय के तौर पर प्रताडि़त किया जा रहा है, उनका धर्म आधिकारिक धर्म से अलग है.

Advertisement

सीएए इन तीन देशों तक सीमित क्यों है, शरणार्थी तो दुनिया भर से आ रहे हैं? इससे राजनयिक तनाव भी पैदा हो गया है. अफगानिस्तान और बांग्लादेश इससे खासे परेशान हैं. इससे आप कैसे निपटेंगे?

बांग्लादेश और अफगानिस्तान हमारे मित्र हैं और हम उनसे बातचीत कर रहे हैं. चूंकि यह बंटवारे का अभिशाप है जिससे हम निपट रहे हैं, इसलिए इन देशों का नाम लेने की जरूरत थी. श्रीलंका और युगांडा में यह समय-समय पर हुआ था. यह भविष्य में भी हो सकता है.

सुप्रीम कोर्ट में सीएए को रद्द करने के लिए कई याचिकाएं डाली गई हैं और उनमें इसे रद्द करने का आधार यह बताया गया है कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है, जो भारत की राजनैतिक सीमा में रहने वाले हर व्यक्ति के लिए कानून के आगे समानता की बात करता है.

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 246 संसद को संघ सूची में दर्ज किसी भी मामले में कानून बनाने का पूर्ण अधिकार देता है. संघ सूची की प्रविष्टि 17 में नागरिकता, राष्ट्रीयकरण और विदेशियों का उल्लेख है. तो यह संसद को नागरिकता से जुड़े कानून बनाने का पूरा अधिकार देता है. अनुच्छेद 14 कानून के आगे समानता और कानून के आगे सुरक्षा की बात करता है. सुप्रीम कोर्ट के 25-30 फैसले कहते हैं कि यदि कानून किसी खास समूह पर लागू होता है, तो यथोचित वर्गीकरण की धारा जायज है.

Advertisement

यह कानून सिर्फ उन्हीं प्रताडि़त अल्पसंख्यकों पर लागू होता है जो इज्जत की जिंदगी जीने के लिए 31 दिसंबर, 2014 तक या उससे पहले भारत आए हैं. यह वर्गीकृत समूह है. अनुच्छेद 21 जीवन के अधिकार की बात करता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जीवन के अधिकार की व्याख्या इज्जत की जिंदगी जीने के अधिकार के तौर पर ही करनी चाहिए. हम उन्हें नागरिकता देकर इज्जत की जिंदगी दे रहे हैं. संविधान का अनुच्छेद 25 कहता है कि सभी व्यक्ति अंत:करण की स्वतंत्रता के समान अधिकारी हैं और जन व्यवस्था, नैतिकता तथा स्वास्थ्य के अधीन उन्हें धर्म को स्वतंत्रतापूर्वक मानने, उसका आचरण करने और प्रचार करने का अधिकार है. सभी व्यक्ति, नागरिक नहीं. अगर प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को उनके बुनियादी अस्तित्व से वंचित किया जा रहा है, तो हम अनुच्छेद 25 में बताए गए दायित्व को ही पूरा कर रहे हैं.

कई राज्यों ने कहा है कि वे सीएए लागू नहीं करेंगे.

हम उनसे बात करेंगे. संविधान का अनुच्छेद 256 कहता है कि हर राज्य कार्यपालिक शक्ति का प्रयोग इस प्रकार करेगा कि जिससे संसद के बनाए कानूनों का अनुपालन सुनिश्चित हो. वे संवैधानिक दायित्व से बंधे हैं.

अगर तब भी वे नहीं करते?

इसके 'नहीं करते' वाले हिस्से का जवाब मैं नहीं देना चाहता. मैं समझता हूं कि भारत के संविधान का सुदृढ़ स्वरूप ऐसा है कि हम बातचीत से इसका हल निकाल पाएंगे.

Advertisement

कई भारतीय मुसलमान आंदोलन से जुड़ गए हैं, यह कहते हुए कि सीएए भाजपा सरकार के कामकाज के पैटर्न की एक कड़ी है. तीन तलाक को आपराधिक बनाना, अनुच्छेद 370 को खत्म करना और फिर अयोध्या पर फैसला.

तीन तलाक अभिशाप था. अगर पाकिस्तान, अफगानिस्तान और 20 दूसरे मुस्लिम देशों ने इस पर रोक लगाई है, तो भारत में क्यों नहीं? भारत की मुस्लिम औरतें अब मुक्त महसूस कर रही हैं. अनुच्छेद 370 अस्थायी था और कश्मीर का बदलता हुआ परिदृश्य ही आगे का रास्ता है. अयोध्या तो सुप्रीम कोर्ट का फैसला है. यही नहीं, हम अपने राजकाज में निष्पक्ष हैं या नहीं? अगर उज्ज्वला योजना 8 करोड़ से ज्यादा महिलाओं तक पहुंची, तो क्या उनमें से कई मुस्लिम नहीं थीं? अगर स्वच्छ भारत अभियान के तहत 8 करोड़ से ज्यादा शौचालय बने, तो मुस्लिम घरों को छोड़ा नहीं गया. आवास योजना के तहत बनाए गए 1.3 करोड़ मकानों से मुस्लिमों को भी लाभ हुआ है. हमने गांवों में बिजली पहुंचाई, तो क्या उसमें मुस्लिम गांवों को अनदेखा किया? आइटी मंत्री होने के नाते मैं डिजिटल इंडिया कार्यक्रम का नेतृत्व कर रहा हूं. देश के मुख्य भूभाग में आज करीब 3,75,000 कॉमन सर्विस सेंटर इलेक्ट्रॉनिक सेवाएं मुहैया कर रहे हैं, इनमें से कई केंद्रों का संचालन मुसलमान कर रहे हैं. मुझे इसका बहुत गर्व है. हमारे राजकाज के रिकॉर्ड में न तो कोई भेदभाव हुआ है और न ही कोई उत्पीडऩ हुआ है. मैं नहीं समझता कि किसी भी आशंका की कोई जरूरत है. लेकिन अगर वे आशंकित हैं, तो हम उनसे बात करेंगे.

Advertisement

एनपीआर के खिलाफ उठाई गई आपत्तियों पर आपका क्या जवाब है?

एनपीआर में सभी लोगों के, न कि सिर्फ नागरिकों के, ब्योरे होते हैं, जो आम तौर पर गांवों, ग्रामीण इलाकों या कस्बों वगैरह में रह रहे हैं. 2003 के नागरिकता नियम कहते हैं कि केंद्र तय कर सकता है कि किस तारीख तक जनसंख्या रजिस्टर तैयार किया जाएगा. पहला एनपीआर यूपीए सरकार ने 2010 में किया था. जब उन्होंने किया, तब यह अच्छा था. जब हम कर रहे, तो यह बुरा है.

इस एनपीआर में लाए गए दो नए सवालों—माता-पिता के जन्म की तारीख और जगह—के बारे में संदेह जाहिर किए गए हैं. आरोप है कि चूंकि सरकार को एनआरसी से पीछे हटना पड़ा, इसलिए इन्हें नागरिकता की स्थिति, खासकर एक समुदाय विशेष की नागरिकता की स्थिति तय करने के लिए लाया गया है.

एनपीआर में कुछ भी अनिवार्य नहीं. यदि लोग नहीं चाहते, तो वे ये ब्योरे नहीं देने के लिए स्वतंत्र हैं. ये ब्योरे तो वोटर कार्ड, आधार कार्ड, पासपोर्ट और पैन कार्ड जैसे दस्तावेज बनवाते वक्त भी मांगे जाते हैं. उससे तो किसी को कोई दिक्कत नहीं है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट किया है कि हमने एनआरसी के बारे में अभी तय तक नहीं किया है. एक ज्यादा वाजिब मुद्दे पर आते हैं. मैं अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, स्विट्जरलैंड, स्वीडन और नीदरलैंड जैसे लोकतंत्रों की बात करता हूं. ये देश अपने नागरिकों का रजिस्टर मेंटेन करते हैं. पर जब भारत ऐसा करना चाहता है, तो हमें दिक्कत है. इन मुद्दों को साफ-साफ समझाने की जरूरत है.

Advertisement

आलोचकों का कहना है कि सीएए असम के एनआरसी के नतीजतन आया है. असम के एनआरसी से जो 19 लाख लोग छूट गए हैं, उनमें से 60 फीसद से ज्यादा हिंदू हैं. इसलिए एनडीए की सरकार हड़बड़ी में यह लेकर आई, क्योंकि उसका पूरा अभियान मुसलमानों को अलग-थलग करना था.

एक बार फिर यह गलत जानकारी फैलाने का अभियान है. उन हिंदुओं को बताना पड़ेगा कि उन्हें प्रताडि़त किया गया है.

मगर सीएए में उत्पीडऩ साबित करने की जरूरत का उल्लेख नहीं है.

जब आप एक कानून को देखते हैं, तब आप उसे उस कानून में दिए गए उद्देश्य के वक्तव्य से और संसद में जो कहा जाता है उससे अलग करके नहीं देख सकते. हमने कानून में उत्पीड़न शब्द का जिक्र नहीं किया पर कानून के उद्देश्य के वक्तव्य में इसका उपयोग किया है. हमने कानून में इसका उपयोग नहीं किया क्योंकि इससे पूरा कानून ही भारी हो जाता.

एनडीए अपने पहले कार्यकाल में सीएए क्यों नहीं लाया? असम में एनआरसी के बाद ही क्यों?

अगर हमने पहले कार्यकाल में यह किया होता, तो आप पूछते, 'आपका विकास का एजेंडा कहां है?' लोग हम पर भरोसा करते हैं. यह कालक्रम हमारे ऊपर छोड़ दें.

माना जाता है कि सीएए, एनपीआर और एनआरसी लाने में एक किस्म का सिलसिला है. केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि सीएए के बाद एनआरसी आएगा. फिर प्रधानमंत्री ने कहा कि सरकार ने एनआरसी पर कोई चर्चा नहीं की है. अब एनपीआर आ रहा है.

एनआरसी की तैयारी के लिए पहले से तय प्रक्रिया है. सरकार जब भी इसे लागू करने के बारे में तय करेगी, मंत्रिमंडल फैसला लेगा, अधिसूचना जारी की जाएगी और प्रक्रिया को शुरू करने की तारीख तय की जाएगी.

एनआरसी की कवायद कब होगी?

वह हम तय करेंगे. हम कानूनसम्मत ढंग से, सावधानी से और जायज तरीके से इसे करेंगे.

असम में 19 लाख लोग एनआरसी से बाहर हो गए. अगर राष्ट्रीय एनआरसी फर्ज कीजिए 2 करोड़ लोगों को बाहर कर देता है, तो उनका क्या होगा?

भारत के किसी भी वैध नागरिक को चिंता करने की जरूरत नहीं है. एनआरसी जब भी लागू किया जाएगा, जिस भी रूप में लागू किया जाएगा, किसी का उत्पीडऩ नहीं होगा.

हिरासत केंद्रों की सच्चाई क्या है? वे हैं या नहीं हैं? छह असम में हैं.

मनमोहन सिंह सरकार ने इन्हें शुरू किया था. हिरासत केंद्र गलत शब्द है. विदेशी कानून के तहत देश में अवैध रूप से रहते पाए गए विदेशियों को रखने का प्रावधान होना चाहिए. उन्हें होटल में नहीं रखा जा सकता. उन्हें अलग तो करना ही पड़ेगा.

आरोप है कि सरकार लडख़ड़ाती अर्थव्यवस्था से ध्यान बंटाने के लिए इन मुद्दों का इस्तेमाल कर रही है.

किसने इसे सियासी मुद्दा बनाया? विपक्ष ने बनाया; कांग्रेस ने; वामपंथियों ने बनाया. भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियादी चीजें मजबूत हैं, जहां तक वैश्विक दबावों की बात है, कुछ परेशानी रही है. तो भी दुनिया में सबसे ज्यादा एफडीआइ भारत में आई है; हम पिछले साल से 6 फीसद ऊपर हैं. हमने अर्थव्यवस्था को फिर से दुरुस्त किया है.

***

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement