
संगीतकार आर डी बर्मन फिल्म इंडस्ट्री का बड़ा नाम माने जाते हैं. उन्होंने अपने संगीत के जादू से पीढ़ियों को मुतमइन किया है. संगीतकार आर डी बर्मन को भले ही संगीत विरासत में मिला हो मगर बेहद कम उम्र में ही उन्होंने अपनी खुद की स्टाइल इजाद कर ली और नए जमाने के संगीतकार बन गए. बहुत लोग तो उन्हें आने वाली पीढ़ी का संगीतकार भी कहते थे. मगर आर डी बर्मन को अपनाने में इंडस्ट्री ने भी समय लिया और श्रोताओं ने भी.
आर डी बर्मन का जन्म 27 जून, 1939 को मुंबई में हुआ था. उन्हें प्यार से पंचम दा भी बुलाया जाता था. दरअसल आर डी बर्मन जब छोटे थे तब एक दफा उनके पिता एस डी बर्मन ने उनसे पूछा था कि वे बड़े होकर क्या बनेंगे. पिता की बात का जवाब देते हुए आर डी बर्मन ने कहा कि वे साइकिल बहुत अच्छी चला लेते हैं. पिता ने बेटे से मुस्कुराते हुए कहा कि उन्हें भी इस तरह के बहुत सारे काम आते हैं. मगर वे एक संगीतकार हैं क्योंकि उन्होंने अपने जीवन में संगीतकार बनने का चयन किया है. इसी तरह हर आदमी को अपने जीवन में किसी एक चीज को लेकर चयन करना होता है. आर डी बर्मन ने भी संगीतकार बनने का ही चयन किया.
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काफी समय तक तो वे अपने पिता एस डी बर्मन के साथ एसिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर काम करते रहे. फिर एक फिल्म ने सब कुछ बदल कर रख दिया. फिल्म का नाम था तीसरी मंजिल. फिल्म के एक्टर थे शम्मी कपूर. इस फिल्म को खूब पसंद किा गया और इसके गाने तो सुपर डुपर हिट रहे. तुमने मुझे देखा, ओ हसीना जुल्फों वाली, ओ मेरे शोना रे, आजा आजा मैं हूं प्यार तेरा ये सारे ही गानें खूब सुपरहिट हुए और आज भी सुने जाते हैं.
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इसके बाद तो आर डी बर्मन की गाड़ी दौड़ पड़ी. इसके बाद पड़ोसन, कटी पतंग, कारवां, अमर प्रेम, बॉम्बे टू गोवा, जवानी दीवानी, परिचय, यादों की बारात, हीरा पन्ना, आप की कसम, अजनबी, खेल खेल में, आंधी, शोले समेत तमाम फिल्मों में अपने संगीत से सभी को दीवाना बना दिया. मगर एक दौर ऐसा भी आया जब फिल्मों में उनके म्यूजिक को पहले जैसा रिस्पॉन्स मिलना बंद हो गया. इस वजह से प्रोड्यूसर्स ने भी पंचम दा से पल्ला झाड़ना शुरू कर दिया. इसके बाद उन्हें एक फिल्म मिली जिसका नाम था 1942 अ लव स्टोरी.
खूब चले 1942 अ लव स्टोरी के गाने
आगे तो इतहास गवाह है. फिल्म जितनी चली उससे कहीं ज्यादा फिल्म के गाने पसंद किए गए. फिल्म के सारे गाने सुपर डुपर हिट रहे. कुछ ना कहो, एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा, दिल ने कहा चुपके से, रूठ ना जाना और बाकी गाने भी पसंद किए गए. आज भी ये गाने हर तरफ सुने जाते हैं मगर अफसोस इस बात का रहा कि ये फिल्म पंचम दा के करियर की अंतिम फिल्म साबित हुई और अपनी इस फिल्म की सफलता देखने के लिए भी वे जिंदा नहीं रहे. 4 जनवरी, 1994 को 54 साल की उम्र में उनका निधन हो गया. आज की नई पीढ़ी भी उनके गाने सबसे ज्यादा सुनना पसंद करती है.
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