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आज 16 दिसंबर है. पिछले साल इसी दिन दिल्ली में एक छात्रा से गैंगरेप हुआ था. उस घटना ने पूरे देश को जगाया. छात्रा ने तो लंबी जद्दोजहद के बाद दम तोड़ दिया, लेकिन अपने पीछे उसने महिलाओं की सुरक्षा को लेकर कई सवाल छोड़ दिए. आज एक साल बाद यदि देखा जाए तो रेप केस कम नहीं हुए बल्कि दोगुने हो गए हैं. उत्पीड़न की घटनाएं 5 गुणा तक बढ़ गई हैं.
उधर, इसी मामले में बीजेपी नेता डॉ. हषर्वर्धन ने मांग की है कि छात्रा के साथ गैंगरेप की वीभत्स घटना की याद में इस तारीख को महिलाओं पर हिंसा के खिलाफ वार्षिक संकल्प दिवस घोषित किया जाना चाहिए.
वहीं, गैंगरेप पीड़िता के पिता ने इस बार भी जब मीडिया से बात की तो उनकी आंखों से आंसू झलक रहे थे. उनका कहना है कि वे इस घटना के बाद भी समाज में कोई बदलाव नहीं देख पा रहे हैं.
आंकड़ों की कहानी कुछ ऐसी है...
दिल्ली में पिछले साल हुई गैंगरेप की घटना ने देश को हिलाकर रख दिया था. कड़ी सर्दी में भी लोग आंदोलन के लिए सड़कों पर उतर आए थे. इस मामले में इंसाफ हुआ भी और दोषी पाए गए सभी वयस्कों को फांसी की सजा सुनाई गई. लेकिन इस सबके बाद भी महिलाओं के खिलाफ अपराधों में कमी नहीं आई, बल्कि बढ़ोतरी देखने को मिली.
पुलिस ने महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए हेल्पलाइन नंबर शुरू करने समेत कई कदम उठाए, लेकिन मामले कम होने की बजाय लगातार बढ़ रहे हैं.
पिछले 13 सालों में 2013 में बलात्कार के सबसे ज्यादा केस सामने आए, हालांकि दिल्ली पुलिस इसे दूसरे नजरिए से देखती है. उसका कहना है कि ऐसा इसलिए है, क्योंकि लोग अब जागरुक हो गए हैं और मामले दर्ज कराने लगे हैं जबकि पहले ऐसे मामले दर्ज ही नहीं कराए जाते थे.
दिल्ली पुलिस के आंकड़े के अनुसार, राष्ट्रीय राजधानी में 30 नवंबर तक बलात्कार के कुल 1,493 मामले दर्ज किए गए जो कि 2012 में इसी अवधि में दर्ज मामलों की तुलना में दोगुने से अधिक हैं.
सबसे बड़ी चिंताजनक बात यह है कि महिलाओं के खिलाफ उत्पीड़न के मामलों में पांच गुना बढोतरी दर्ज की गई है. नवंबर 2013 तक पिछले वर्ष के 625 मामलों की तुलना में 3237 मामले दर्ज किए गए.
महिलाओं का शीलभंग करने संबंधी मामलों में भी इजाफा हुआ है. पिछले साल के 165 मामलों की तुलना में इस वर्ष 852 मामले दर्ज किए गए.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, 2012 में बलात्कार के 706, 2011 में 572 और 2010 में 507 मामले दर्ज किए गए थे.
पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि थानों में महिला सुरक्षा डेस्क बनाई गई है. महिलाएं राजधानी में कहीं भी मामला दर्ज करा सकती हैं. एक ‘क्राइम अगेंन्स्ट विमेन’ शाखा का गठन किया गया है. इसके अलावा महिलाओं के लिए इस समय चार हेल्पलाइन नंबर चालू है. शहर में गश्त बढा दी गई है.
पुलिस के इन सब कदमों के बावजूद दिल्ली महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं कही जा सकती. आंकड़े भी कहते हैं कि यहां 10 में से केवल एक महिला काम के लिए बाहर जाती है. प्राइमरी सेंसस एब्स्ट्रेक्ट 2011 के अनुसार, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में कामकाजी महिलाएं केवल 10.58 प्रतिशत हैं जो कि झारखंड और बिहार से भी कम है.
दो महीने में 500 में से केवल 24 मामले निपटे
देश में रेप की घटनाओं में बढ़ोतरी के बीच महिलाओं के खिलाफ अत्याचार से जुड़े मामलों को त्वरित सुनवाई अदालत (फास्ट ट्रैक कोर्ट) में निपटाने पर जोर दिया जा रहा है. हालांकि अब भी कई वर्ग सुनवाई में उम्मीद के अनुरूप तेजी नहीं आने की शिकायतें कर रहे हैं.
देश में बलात्कार की कई ऐसी घटनाएं सामने आईं, जिस पर जनता का जनाक्रोश दिखा, लेकिन आज उन पीड़ितों और उनके परिवार की सुध लेने वाला कोई नहीं है. फास्ट ट्रैक कोर्ट के सामने कई मामलों में, खासकर ऐसे मामलों में जिनमें पीड़िता विदेशी नागरिक थी, तेजी से सुनवाई पूरी करके फैसला सुनाया गया, लेकिन हर मामले में ऐसा नहीं हो रहा है.
दिल्ली में पिछले वर्ष 16 दिसंबर को गैंगरेप के बाद ऐसे मामलों की सुनवाई के लिए छह फास्ट ट्रैक अदालतों का गठन किया गया और 500 मामले सौंपे गए. इसके माध्यम से दो महीने में 24 मामलों की सुनवाई पूरी की गई.
किसी ने नहीं की गुड़िया के परिवार की मदद
15 अप्रैल को पूर्वी दिल्ली में बलात्कार के बाद हत्या की शिकार पांच वर्षीय बच्ची गुड़िया का मामला एक ऐसा उदाहरण है. इस घटना के बाद कैंडल मार्च निकाला गया था. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज समेत वरिष्ठ नेताओं ने पीड़िता से मुलाकात की थी और हर तरफ से सभी संभव मदद की बात कही गई थी. लेकिन एम्स से छुट्टी मिलने के बाद गुड़िया के परिवार को घर बदलना पड़ा और अब उत्तम नगर में रहना पड़ रहा है. परिवार आज भी सदमे में है. उनका कहना है कि अब तो कोई फोन भी नहीं उठाता, मदद की बात तो छोड़ दें.
हाई प्रोफाइल मामलों को ज्यादा तवज्जो
अगर हाई प्रोफाइल मामलों को लें तो अलवर में जर्मन युवती से बलात्कार के मामले में सुनवाई एक महीने से कम समय में पूरी कर ली गई. जोधपुर में साल 2005 में जर्मन सैलानी से बलात्कार की कार्यवाही दो सप्ताह में पूरी कर ली गई. 2006 में जापानी महिला से पुष्कर के गेस्टहाउस में बलात्कार मामले की सुनवाई तीन माह में पूरी कर ली गई. उदयपुर में ब्रिटिश सैलानी से बलात्कार मामले की सुनवाई चार महीने में पूरी कर ली गई.
पीड़िता के पिता ने कहा, हमारे आंसू अब तक नहीं सूखे
गैंगरेप की शिकार पीड़िता के पिता ने कहा, 'हमारे आंसू अभी तक सूखे नहीं हैं. हर दिन के गुजरने के साथ उसकी यादें और गहरी होती जाती हैं. घर पर कोई न कोई तो हमेशा रोता रहता है.' हालांकि नौ माह की सुनवाई के बाद चार बलात्कारियों को अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी, लेकिन उस दुर्भाग्यपूर्ण घटना के बाद से लड़की का परिवार हमेशा सदमे, दुख और गुस्से में ही रहता है.
पीड़िता के 48 वर्षीय पिता ने बताया, 'हम कभी इससे उबर नहीं पाएंगे और वह हमारे बीच अब भी जीवित है.' उन्होंने कहा कि उनकी पत्नी जब भी कुछ पकाती है तो वह अपनी बेटी को याद करती है.
उन्होंने कहा, 'जब भी हम खाना खाने बैठते हैं, मेरी पत्नी कहती है, ‘यह उसका पसंदीदा खाना है और हम उसके बिना ही इसे खा रहे हैं. उसे अच्छा खाना बहुत पसंद था. मेरी पत्नी याद करती है कि आखिरी बार हमारी बेटी ने यह कहकर घर छोड़ा था कि वह तीन-चार घंटों में वापस आ जाएगी. लेकिन हमारा वो इंतजार कभी खत्म नहीं हुआ, क्योंकि वे घंटे महीनों में बदल गए और महीने सालों में.'
अभी तक पूरा न्याय नहीं मिला है
आंसुओं को रोकने की कोशिश करते हुए पीड़िता के पिता ने कहा कि उन्होंने कड़ी सजा से बच निकले किशोर आरोपी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है और उनकी असल लड़ाई तो अब शुरू हुई है. उन्होंने कहा, 'हमें अभी तक न्याय नहीं मिला है. हम चाहते हैं कि घटना के समय किशोर रहे उस दोषी समेत सभी दोषियों को फांसी पर लटकाया जाए. तभी शायद हमारे दिमागों को थोड़ी शांति मिलेगी और हम शांति से सो सकेंगे.' पति की इस बात पर निर्भया की मां ने भी सहमति जताई.
पीड़िता के माता-पिता ने 30 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था और अपील की थी कि किशोरों के खिलाफ आपराधिक अदालत में अभियोजन को प्रतिबंधित करने वाले कानून को हटाकर, इस घटना के समय किशोर रहे दोषी के खिलाफ मामला चलाने के निर्देश दिए जाएं.
मुझे तो कोई बदलाव नहीं दिखता, आपको दिखता है क्या?
पीड़िता के पिता ने कहा, 'भारी विरोध-प्रदर्शन हुए थे, कानून तक बदले गए थे और पुलिस भी ज्यादा सक्रिय व चौकस हो गई है लेकिन क्या महिलाओं के खिलाफ अपराध रुके हैं?' अपने चेहरे पर निराशा के भाव लाते हुए उन्होंने कहा, 'हर दूसरे दिन बलात्कार और यौन उत्पीड़न की घटनाओं की खबर आती है. कहां हुआ है बदलाव? मुझे तो कोई बदलाव नहीं दिखता, आपको दिखता है?' उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कानून व्यवस्था में बदलाव किए जाने की जरूरत है ताकि बलात्कार के मामलों की सुनवाई तय समय में हो और लोग ऐसे अपराध करने से डरें.
29 दिसंबर को अपने गांव जाएगा निर्भया का परिवार
निर्भया का परिवार 29 दिसंबर को उसकी बरसी पर उत्तरप्रदेश के बलिया स्थित अपने घर जाएगा. 29 दिसंबर ही वह दिन था जब 23 वर्षीय फिजियोथेरेपी ट्रेनी सिंगापुर के माउंट एलिजाबेथ अस्पताल में जिंदगी के लिए अपनी जंग हार गई थी.
कब-कब क्या-क्या हुआ...
पिछले साल 16 दिसंबर की रात को लड़की के साथ छह लोगों ने चलती बस में निर्मम तरीके से गैंगरेप और उसका क्रूरतापूर्वक उत्पीड़न किया था. इसके बाद पीड़िता और उसके एक दोस्त को घायल अवस्था में सड़क के किनारे फेंक दिया था. बलात्कारियों में से एक किशोर था इसलिए उसके खिलाफ सुनवाई जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड में की गई. बोर्ड ने उसे तीन साल के लिए सुधार गृह में भेज दिया था.
पीड़िता की मौत के पांच दिन बाद पुलिस ने पांच व्यस्क आरोपियों के खिलाफ बलात्कार, हत्या, अपहरण और सबूत मिटाने के आरोप लगाते हुए मामला दर्ज कर लिया था.
एक आरोपी राम सिंह 11 मार्च को तिहाड़ जेल में मरा हुआ पाया गया था और उसके खिलाफ मामला बंद कर दिया गया है.
चार वयस्क आरोपियों अक्षय ठाकुर, विनय शर्मा, पवन गुप्ता और मुकेश पर फास्ट ट्रैक अदालत में मुकदमा चलाया गया. फास्ट ट्रैक अदालत ने उन्हें 13 सितंबर को मौत की सजा सुनाई. इस फैसले की पुष्टि के लिए यह मामला अभी उच्च न्यायालय में है.
पीड़िता के माता-पिता द्वारा दायर की गई याचिका पर उच्चतम न्यायालय में सुनवाई 6 जनवरी को होनी है.
इस दिन को वार्षिक संकल्प दिवस घोषित किया जाना चाहिए
बीजेपी नेता डॉ. हषर्वर्धन ने मांग की है कि पिछले साल 16 दिसंबर को पैरामेडिकल छात्रा के साथ गैंगरेप की वीभत्स घटना की याद में इस तारीख को महिलाओं पर हिंसा के खिलाफ वार्षिक संकल्प दिवस घोषित किया जाना चाहिए.
हषर्वर्धन ने यह भी कहा कि अगर बीजेपी हाल ही में हुए चुनावों के बाद सरकार बना पाती तो वह मुख्यमंत्री के तौर पर दिल्ली में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पहला संकल्प लेते.
उन्होंने कहा, '16 दिसंबर को सरकार और जनता को हमेशा महिलाओं और लड़कियों को यौन अपराधों से बचाने के लिए याद करना चाहिए. यह दिन महिलाओं को दुर्व्यव्हार और दुष्कर्म का शिकार होने से बचाने के हमारे देश के संकल्प को दोहराने का दिन होगा.'