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प्रोजेक्ट टाइगर की हकीकत: कहां जाएं बाघ?

प्रोजेक्ट टाइगर के नियम और सीमाएं उसके निहित उद्देश्यों के रास्ते में ही दीवार बनकर खड़ी हैं

प्रोजेक्ट टाइगर प्रोजेक्ट टाइगर
प्रवीन कुमार भट्ट
  • देहरादून,
  • 19 नवंबर 2011,
  • अपडेटेड 9:54 PM IST

गत दिनों कॉर्बेट पार्क के  प्लेटिनम जुबली समारोह में शामिल हुए उत्तराखंड के  मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूरी बाघों की सुरक्षा पर चाहे जितनी चिंता व्यक्त करें या उनकी सुरक्षा के लिए गंभीर कदम उठाने का दावा करें, लेकिन सच यह है कि बाघों पर संकट बढ़ता ही जा रहा है. 1972 में वाइल्ड लाइफ  प्रोटेक्शन एक्ट बनने के बाद कॉर्बेट पार्क में प्रोजेक्ट टाइगर शुरू किया गया.

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योजना इस कदर सफ ल रही कि वर्तमान में कॉर्बेट पार्क में बाघों की संख्या 150 से अधिक हो गई है, जबकि पार्क केबाहरी वन क्षेत्रों को मिला दिया जाए तो बाघों की संख्या 260 के लगभग बताई जाती है. जहां देश में बाघों का घनत्व औसन 12-13 बाघ प्रति 100 किमी है, वहीं उत्तराखंड में यह संख्या 20 बाघ प्रति 100 किमी है. लेकिन बाघों की संख्या बढ़ने के साथ अब संरक्षण से जुड़ी परेशानियां भी बढ़ने लगी हैं.

राजाजी नेशनल पार्क में बाघों के संरक्षण के लिए चल रहा टाइगर प्रोजेक्ट अपनी सीमाओं में बंधा होने के कारण क्षेत्र के सभी बाघों के लिए फायदेमंद नहीं है. नेशनल पार्क में रहने वाले बाघ शिकारियों से भी सुरक्षित बच सकते हैं और यहां मानव-वन्यजीव संघर्ष की संभावना भी कम है, लेकिन जो 100 से अधिक बाघ कॉर्बेट की सीमा के बाहर केवन क्षेत्र में रहते हैं. उनकी सुरक्षा से लेकर पर्यावरण तक को गंभीर खतरा पैदा हो गया है.

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इस क्षेत्र में वन्यजीव तस्करों का आंतक भी बढ़ गया है. पार्क के भीतरी क्षेत्र में सुरक्षा कर्मियों की तैनाती के कारण वन्यजीव तस्कर आसानी से बाघों को निशाना नहीं बना पाते, लेकिन बाहरी क्षेत्रों में सुरक्षाकर्मी नहीं हैं. इसीलिए अब राज्‍य के वन्यजीव प्रेमी प्रोजेक्ट टाइगर के विस्तार की मांग कर रहे हैं, लेकिन शर्त यह है कि यह विस्तार व्यावहारिक और जनपक्षीय हो.

उत्तराखंड वन व पर्यावरण सलाहकार परिषद के उपाध्यक्ष अनिल बलूनी का कहना है कि केंद्र सरकार को यह तय करना चाहिए कि उन्हें बाघ बचाने हैं या प्रोजेक्ट टाइगर चलाना है.

उत्तराखंड में लगभग 260 बाघों के पाए जाने की पुष्टि हुई है, जिसमें से आधे ही इस प्रोजेक्ट के तहत कवर हो पा रहे हैं. कॉर्बेट के अलावा उससे लगे क्षेत्रों तराई केंद्रीय व तराई पूर्वी वन प्रभाग, हल्द्वानी वन प्रभाग, पश्चिमी रामनगर वन प्रभाग के साथ ही कोटद्वार व लैंसडाउन वन प्रभाग में भी बाघ हैं और वहां उनकी संख्या बढ़ रही है. पर्यावरण सलाहकार परिषद ने इस प्रोजेक्ट को अधिक व्यावहारिक बनाने के लिए सरकार के साथ ही राष्ट्रीय बाघ प्राधिकरण के सदस्य सचिव डॉ. राजेश गोपाल को भी पत्र लिखा है.

16 अक्तूबर को पुलिस ने टनकपुर केनिकट एक बाघिन के शिकार के मामले में पानीपत केतोताराम बावरिया गिरोह के छह सदस्यों को गिरफ्तार किया था. वाइल्ड लाइफ  प्रोटेक्शन सोसायटी केउत्तराखंड प्रमुख राजेंद्र अग्रवाल कहते हैं कि जब इस प्रोजेक्ट में 2,000 करोड़ रु. केंद्र सरकार खर्च कर ही रही है, तब इसे थोड़ा और व्यावहारिक बनाने में क्या दिक्कत है.

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बाघ तो न कॉर्बेट पार्क की सीमा को हैं और न प्रोजेक्ट टाइगर को. वे तो वहां जाएंगे, जहां उन्हें भोजन मिलेगा. इसीलिए बाघ को वहीं बचाना होगा, जहां वह है. पिछले 40 वर्षों से कॉर्बेट पार्क के मानद वन्यजीव प्रतिपालक कुंवर विजेंद्र सिंह कहते हैं कि प्रोजेक्ट टाइगर के तहत लैंसडाउन वन प्रभाग और राजाजी नेशनल पार्क का कुछ क्षेत्र मिलाकर एक बाघ कॉरिडोर बनाया जाना चाहिए.

राज्‍य में जिस तेजी से बाघों की संख्या बढ़ रही है, उससे आने वाले समय में बाघ और मनुष्य का टकराव और तेज होने की आशंका है. उनका कहना है कि लगातार बढ़ती संख्या के कारण वे पार्क केबाहरी क्षेत्रों की ओर निकल रहे हैं, लेकिन सरकार का इस ओर कोई ध्यान नहीं है.

वन्यजीवन और बाघों की सुरक्षा को लेकर उत्तराखंड सरकार की गंभीरता इस बात से जाहिर हो जाती है कि ऑपरेशन लॉर्ड के तहत वन्यजीवों की सुरक्षा में लगे 700 दिहाड़ी कर्मचारियों को आठ महीने से वेतन नहीं दिया गया था. यह वेतन उन्हें मुख्यमंत्री के रामनगर दौरे से दो दिन पहले हंगामे की आशंका से बचने के लिए दिया गया, जबकि केंद्र सरकार वेतन अगस्त माह में ही जारी कर चुकी थी.

कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के उप निदेशक सी.के. दयाल कहते हैं कि एक बड़ी समस्या तो पार्क केभीतर बसे 400 से अधिक परिवारों की ही है. उनकेद्वारा किए जा रहे निर्माण वन्यजीवन केलिए परेशानी पैदा कर रहे हैं. बीते साल सबसे अधिक बाघ व मानव संघर्ष की घटनाएं भी पार्क केभीतर सुंदरखाल क्षेत्र में ही हुई हैं. सरकार इन परिवारों के विस्थापन की बात तो कर रही है, लेकिन अभी तक यह संभव नहीं हो पाया है.

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प्रोजेक्ट टाइगर शुरू होने के बाद पूरी दुनिया केसैलानी कॉर्बेट की ओर आकर्षित हुए हैं, जिसका फायदा यहां के होटल मालिकों को हुआ है, लेकिन स्थानीय समुदाय के लिए परेशानी बढ़ी है. यहां लोग और मवेशी दोनों बाघों का निवाला बन रहे हैं. स्थिति यह है कि अप्रैल, 2009 से अप्रैल 2011 तक यहां बाघ ने मनुष्यों पर 25 से अधिक हमले किए और इस दौरान 11 बाघ मारे गए. कॉर्बेट की प्लेटिनम जुबली के बहाने दुनिया भर के बाघ विशेषज्ञ यहां मंथन कर जा चुके हैं, लेकिन बाघों के सवाल पर कोई सकारात्मक पहल अब तक सामने नहीं आई है.

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