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कांग्रेस को बंगाल में उस वक्त करारा झटका लगा जब पार्टी की राज्य इकाई के पूर्व अध्यक्ष मानस भुंइया सहित कई प्रमुख नेता सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए. इन नेताओं की नाराजगी इस बात को लेकर है कि वो चाहकर भी पार्टी आलाकमान से सीधा संवाद नहीं कर पाते हैं. इस संवाद की राह में पार्टी के कुछ सीनियर नेता आड़े आ जाते हैं.
कांग्रेस के लिए बंगाल में 1998 के बाद से यह सबसे बड़ा झटका है. उस वक्त कांग्रेस से टूटकर ममता बनर्जी की अगुवाई में तृणमूल कांग्रेस का गठन हुआ था. हाल ही में अरुणाचल में भी कांग्रेस को जबरदस्त झटका लगा जब सीएम पेमा खांडू कांग्रेस के 43 विधायकों के साथ पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल प्रदेश (पीपीए) में शामिल हो गए.
उत्तराखंड में टूटी कांग्रेस
ऐसे में 2014 लोकसभा चुनाव में शर्मनाक हार के बाद आत्ममंथन में जुटी कांग्रेस को आए दिन अपने कुनबे में बगावत का सामना करना पड़ रहा है. बीते मार्च में उत्तराखंड में कांग्रेस के लिए बड़ा सियासी संकट पैदा हो गया था जब पूर्व सीएम विजय बहुगुणा सहित 11 विधायकों ने हरीश रावत सरकार के खिलाफ खड़े हो गए थे. इनमें से 9 विधायक मई में बीजेपी में शामिल हो गए थे.
कर्नाटक में बगावत
इस साल जून में ही कर्नाटक में कांग्रेस की राज्य इकाई में सीएम सिद्धारमैया के खिलाफ विद्रोह देखने को मिला. दिग्गज कांग्रेस एस एम कृष्णा की अगुवाई में कांग्रेस के बागियों ने पार्टी आलाकमान से राज्य में सीएम बदलने की मांग कर डाली. बागियों में वी. श्रीनिवास प्रसाद, एम एच अंबरीश सहित तमाम पूर्व मंत्री और सीनियर विधायक थे.
राज्यसभा चुनावों में भी दिखा बगावत का असर
कांग्रेस की राज्य इकाइयों में बगावत का असर राज्यसभा चुनावों में पार्टी के प्रदर्शन भी दिखा. जून में जिन 27 सीटों पर चुनाव हुए, उनमें से 11 बीजेपी के खाते में, 6 कांग्रेस के खाते में, 7 सपा के खाते में, दो बीएसपी और एक निर्दलीय के खाते में गई. हरियाणा में कांग्रेस के 14 विधायकों ने हरियाणा से आर के आनंद को राज्यसभा का टिकट दिए जाने के पार्टी आलाकमान के फैसले का विरोध कर दिया. इनकी बगावत का सीधा फायदा बीजेपी समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार सुभाष चंद्रा को हुआ और वो राज्यसभा के लिए चुने गए. झारखंड में भी कांग्रेस के साथ ऐसा ही हुआ.
ये भी बगावत की वजह
पिछले दिनों तमाम सीनियर नेताओं ने यह कहते हुए कांग्रेस छोड़ दी कि पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी उन्हें मिलने का समय ही नहीं देते. जिन राज्यों में कांग्रेस गुटबाजी का शिकार हुई, उन सभी राज्यों में बागी नेताओं की शिकायत थी कि राहुल गांधी ने उनकी समस्याओं और शिकायतों पर ध्यान नहीं दिया था. ऐसे कुछ नेताओं ने तो राहुल गांधी से मुलाकात कराने के लिए पत्रकारों से भी मदद मांगी थी.