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आंध्र प्रदेशः लाल चंदन की तस्करी

आंध्र प्रदेश में चित्तूर के नजदीक पानूगुरु में एक वन अधिकारी की हत्या की वजह से दुर्लभ लाल चंदन की अंधाधुध कटाई और उसकी तस्करी सुर्खियों में आ गई है.

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अमरनाथ के. मेनन
  • आंध्र प्रदेश,
  • 24 जुलाई 2011,
  • अपडेटेड 10:36 PM IST

एक वन अधिकारी की हत्या की वजह से दुर्लभ लाल चंदन की अंधाधुध कटाई और उसकी तस्करी सुर्खियों में आ गई है. इससे दुर्लभ और बहुमूल्य लाल चंदन की अवैध कटाई और उसकी अनियंत्रित तस्करी के खिलाफ युद्ध में खतरनाक तेजी आ गई है. मामला आंध्र प्रदेश में चित्तूर के नजदीक पानूगुरु में 45 वर्षीय वन गश्त अधिकारी एम. श्रीनिवासुलु की मौत का है.

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वेंकटगिरी-येरपेडु मार्ग पर चिंतालापलम जंगल चेक पोस्ट के नजदीक 12 जुलाई को आधी रात के बाद 2 बजे दरअसल में क्या हुआ, इसे अभी कोई नहीं जानता. लेकिन यह स्पष्ट है कि श्रीनिवासुलु ने किसी वाहन, संभवतः एक सूमो का पीछा किया जिसमें तस्करी करके लाल चंदन ले जाया जा रहा था, और तस्करों के साथ उसे पकड़ लिया. तस्करों ने उन पर लोहे की छड़ से या लकड़ी के लठ्ठे से वार किया और उन्हें खून से लथपथ छोड़कर भाग गए.

दो दशक से भी ज्‍यादा समय में यह पहला मौका है जब राज्‍य में लाल चंदन के तस्करों ने वन विभाग के एक अधिकारी की हत्या की है. इससे पहले 20 जून को तिरुपति के नजदीक श्रीवरीमेत्तू में सतर्क वन कर्मचारियों की तस्कर गिरोह के ऐसे करीब 150 पैदल लड़ाकों के साथ झड़प हुई थी, जिनमें अधिकतर तमिलनाडु के थे. इनमें से 52 को पकड़ लिया गया था.

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इस घटना से महज 10 दिन पहले तस्करों ने इसी स्थान पर तीन वन रक्षकों पर हमला किया था. इस साल 21 मार्च को भी तस्करों ने तिरुमला पहाड़ियों में जंगल के एक भाग को आग लगा दी थी, जिससे करीब 500 हेक्टेयर क्षेत्र प्रभावित हुआ था.

लाल चंदन केवल राज्‍य के कडपा, चित्तूर और नेल्लोर जिलों की शेषाचलम पहाड़ियों में पांच लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में पाया जाता है. शुरू में स्थानीय लोग हिंदू देवी-देवताओं की प्रतिमाएं, तस्वीरों के फ्रेम और घर में काम आने वाले डिब्बों के अलावा गुड़ियाएं बनाने के लिए इसका इस्तेमाल किया करते थे. लेकिन 1994 के बाद इस दुर्लभ प्रजाति को काटने पर रोक लगा दी गई और इसे आंध्र प्रदेश से बाहर ले जाना गैर-कानूनी करार दे दिया गया.

लेकिन लाल चंदन को सुरक्षित रखने के लिए बना कानून नाकाफी है. आंध्र प्रदेश अधिनियम के तहत अधिकतम एक साल जेल की सजा और 10,000 रु. जुर्माना है. लाल चंदन से करीब 1,200 प्रतिशत का लाभ होने की वजह से तस्कर अपनी जान जोखिम में डालकर हर साल 2,000 टन लाल चंदन चेन्नै, मुंबई, तूतीकोरिन और कोलकाता बंदरगाहों तथा नेपाल और तिब्बत के रास्ते प्रमुख बाजार चीन तक पहुंचाते हैं.

वे लकड़ी को एसबेस्टस की चद्दरों, सरसों की खली, नारियल के रेशे और नमक के बीच में छिपाकर एक से दूसरे स्थान पर ले जाते हैं. जाहिरा तौर पर तो चीन के लोग इसका इस्तेमाल फर्नीचर बनाने में करते हैं, लेकिन माना जाता है कि इसे ऐसे बहुमूल्य रसायनों की खातिर भी खरीदा जाता है जिनका इस्तेमाल दवाएं, इत्र, फव्शियल क्रीमों, सुगंध और यहां तक कि कामोत्तेजक औषधियां बनाने के लिए किया जाता है.

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हाल के वर्षों में वन अधिकारियों की ओर से निगरानी बढ़ने के कारण संघर्ष बढ़े हैं. 2002-03 में केवल 59 तस्कर गिरफ्तार किए गए और 18 टन लाल चंदन जब्त किया गया, जबकि 2010-11 में 1,591 गिरफ्तारियां हुईं और1,290 टन चंदन जब्त किया गया.

अलग-अलग श्रेणी का 500 करोड़ रु. मूल्य का करीब 7,000 टन लाल चंदन राज्‍य के वन अधिकारियों के भंडार में पड़ा है. इसके अलावा करीब 100 करोड़ रु. मूल्य का 1,000 टन लाल चंदन अन्य राज्‍यों के सीमा शुल्क और वन अधिकारियों के कब्जे में है. आंध्र प्रदेश के विशेष प्रमुख वन संरक्षक (उत्पादन) सीताराम गुप्ता का कहना है, ''नीलामी के जरिए बिक्री से हमें अच्छी आमदनी होगी और तस्करी की लकड़ी की मांग भी कम हो जाएगी.''

सक्षम कर्मचारियों की पर्याप्त संख्या न होने और मुश्किल इलाका होने से आंध्र के वन अधिकारियों को लाल चंदन को बचाने के लिए परेशानी उठानी पड़ती है. निगरानी रखने वाले कर्मचारियों की औसत आयु 50 वर्ष से अधिक है और हरेक कर्मचारी को 100 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र की निगरानी करनी होती है.

आलम ये है कि उनके पास पर्याप्त हथियार भी नहीं हैं. यहां तक कि उन्हें दी गई .303 राइफलें भी वापस ले ली गई हैं. वन अधिकारी, सामाजिक वानिकी कार्यक्रम और वन संरक्षण के लिए धन उपलब्ध होने के साथ स्थानीय लोगों को भाड़े पर लेकर क्षतिपूर्ति करने की कोशिश कर रहे हैं. वे लाल चंदन के इलाके में 75 आधार शिविरों से पैदल गश्त करते हैं.

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पर्यावरणविद् फल-फूल रहे इस अवैध व्यापार और जैव विविधता की रक्षा के प्रति सरकार की उदासीनता से दुखी हैं. आंध्र प्रदेश जैव विविधता परिषद् के अध्यक्ष डॉ. आर. हंपैया का कहना है कि लाल चंदन के लिए भौगोलिक संकव्त लगाना जरूरी है. उनका कहना है, ''अगर हमने लाल चंदन वाले जंगलों को बचाने का तरीका नहीं ढूंढ़ निकाला तो हमें खासा नुकसान उठाना पड़ेगा.''

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