
ऑनलाइन मीडिया
लेखकः सुरेश कुमार
प्रकाशकः पियरसन
मूल्यः 285 रु.
यह किताब ऐसे समय में प्रकाशित हुई है जब ऑनलाइन मीडिया हमारे जीवन के लगभग हरेक हिस्से में दाखिल हो चुका है और उसके प्रभाव का सही अंदाज लगा पाना बड़े-बड़े जानकारों के वश की बात नहीं रह गई है. जाहिर है, ऑनलाइन मीडिया बिल्कुल मौजूं किताब है. यह ऑनलाइन मीडिया के क्रिया-कलापों को समझने के उद्देश्य के साथ आगे बढ़ती है और उसके तौर-तरीके, तकनीक, अंदाज, कंटेंट, विज्ञापन आदि विषयों पर विस्तृत प्रकाश डालती है.
यह पुस्तक पत्रकारिता के छात्रों, विशेषकर ऑनलाइन पत्रकारिता में दिलचस्पी रखने वाले छात्रों, अध्यापकों और पेशेवर मीडियाकर्मियों के लिए जरूरी तो है ही, साथ ही यह अन्य ऐसे लोगों के लिए भी जरूरी है जो ऑनलाइन मीडिया के इस उफान मारते समंदर में अपने व्यवसाय या कार्यहित में कुछ भविष्य देखते हैं. बल्कि व्यवसाय ही क्यों, एक आम आदमी जिसके जीवन के हर कोने में ऑनलाइन मीडिया पहुंच चुका है, उसके लिए भी यह किताब जरूरी है ताकि खबर और प्रोपेगैंडा के अंतर को समझा जा सके, ताकि, बकौल लेखक, हम अपनी ''निजता के दुरुपयोग" से भी बच सकें.
हिंदी में इस तरह की किताबें इक्का-दुक्का हैं और जो हैं भी, वे अकादमिक होकर एकांगी रह गई हैं. लेकिन यह इनसे अलहदा है. यह किताब नए अंदाज में लिखी गई है जिसमें सिलसिलेवार ढंग से हर अध्याय के शुरू में टेलीविजन टीजर के अंदाज में कंटेंट के बारे में इशारा किया गया है. यानी आप चाहें तो किसी भी अध्याय को एक अलग इकाई के रूप में भी पढ़कर उस अध्याय विशेष से बिना बोझिल हुए जानकारी हासिल कर सकते हैं. यह किताब ऑनलाइन मीडिया के साथ-साथ, मोबाइल न्यूज, मोबाइल विज्ञापन, नई-नई तकनीक इत्यादि पर भी भरपूर रोशनी डालती है. कई बार ऐसा लगता है कि मीडिया की कोई किताब पढ़ते-पढ़ते पाठक तकनीक की दुनिया में गोते लगा रहा हो.
लेखक की पहली किताब इंटरनेट पत्रकारिता 2004 में आई थी, तब से लेकर अब तक इंटरनेट की दुनिया लंबी छलांग लगा चुकी है और इसमें बीते साल के बदलाव, रुझानों और कमियों को बखूबी दर्ज करने का प्रयास किया गया है. चूंकि सोशल मीडिया और ऑनलाइन मीडिया जीवन का अहम हिस्सा बन चुका है—ऐसे में इस किताब में उस पर खास ध्यान दिया गया है. सोशल मीडिया के चरित्र, उसके खुलते आयामों, उसका संभावित भविष्य आदि पर इसमें चर्चा की गई है.
ऑनलाइन मीडिया का वर्तमान और भविष्य दोनों ही तेजी से मोबाइल केंद्रित हुआ है और होता जा रहा है. तो ऐसे में एक संचार के माध्यम के रूप में मोबाइल की उपयोगिता पर किताब कायदे से विचार करती है. इस किताब ने वर्तमान की वास्तविकता के साथ ही भविष्य के संकेतों को भी बखूबी पकड़ा है और सतर्क अंदाज लगाया है कि ऑनलाइन दुनिया किस दिशा में जा सकती है. कुल मिलाकर इस किताब ने उन सारी बातों को समेटने की कोशिश की है जो ऑनलाइन मीडिया में हो रही हैं और भविष्य में हो सकती हैं.