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जज विवाद: चाय के प्याले में उठा तूफान चाय की चुस्कियों के साथ शांत

सवाल ये भी है कि जब न्यायिक प्रक्रिया की खामियों की ओर ध्यान दिलाया गया है तो बिना उनकी दुरुस्तगी के सब कुछ सामान्य कैसे हो सकता है?

सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो) सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
अजीत तिवारी/संजय शर्मा
  • दिल्ली,
  • 15 जनवरी 2018,
  • अपडेटेड 7:14 PM IST

सुप्रीम कोर्ट जज विवाद मामले को लेकर सोमवार को सभी जज इकट्ठा हुए. कोर्ट की कार्यवाही शुरू होने से पहले हर कार्यदिवस की तरह लाउंज में करीब 10 बजे सारे जज इकठ्ठा हुए. चाय, कॉफी और बिस्किट परोस दिए गए. बातचीत शुरू हुई.

अचानक हॉल के कोने में खड़े जजों के पर्सनल स्टाफ को बाहर जाकर इंतज़ार करने को कहा गया. इसके बाद खुल कर बातचीत हुई. इस अनौपचारिक बातचीत में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के अलावा प्रेस कॉन्फ्रेंस करने वाले जज भी शामिल थे.

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बातचीत चली तो आधा घंटे से ज्यादा लंबी खिंची. घड़ी ने साढ़े दस बजा दिए. सारे कील कांटे देखकर रोज साढ़े 10 बजे अदालत में आ जाने वाले मीलार्ड अब तक लाउंज में ही थे. दरवाजे अंदर से बन्द. बाहर सवालिया निगाहें और कयास. कोर्टरूम और सुप्रीम कोर्ट के भव्य बुलन्द गलियारों में भी शरारती मुस्कान के बीच खुसुर-फुसुर चल रही थी- 'अब आज नया पवाड़ा क्या हो गया?'

10 बजकर 35 मिनट हुए तो दरवाज़े खुले और सारे न्यायमूर्ति अपने-अपने अदालत कक्षों की ओर रवाना हुए. अदालत की दहलीज पर दाखिल होने से एन पहले अर्दली ने गाउन पहनाया और अदालत का कामकाज शुरू हो गया. तब 10 बजकर चालीस मिनट हो चुके थे.

थोड़ी देर बाद अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट के गलियारे में आजतक के साथ बातचीत के दौरान हल्के-फुल्के अंदाज में कहा कि अब तो सब कुछ सामान्य हो गया है. कोर्ट में रोजमर्रा का काम पहले की तरह सामान्य रूप से चल रहा है. केके वेणुगोपाल ने बातचीत खत्म करते हुए हंसते-हंसते कहा कि चाय के प्याले में उठा तूफान चाय की चुस्कियों के साथ ही शांत हो गया. नाउ के एवरीथिंग इज़ नॉर्मल के एंड फाइन!

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ऊपर से सामान्य दिख रहा सुप्रीम कोर्ट का माहौल वाकई शांत है? इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं. वैसे सवाल तो और भी कई तैर रहे हैं, जिनको जवाब चाहिए.

सवाल ये भी है कि जब न्यायिक प्रक्रिया की खामियों की ओर ध्यान दिलाया गया है तो बिना उनकी दुरुस्तगी के सब कुछ सामान्य कैसे हो सकता है? जब आरोपों के घेरे में आई खामियों की वजह से आम आदमी के न्याय पाने के अधिकार पर असर पड़ रहा है तो ये मामला आंतरिक कैसे रहा?

अब न्यायपालिका के आंतरिक मामलों में बाहरी दखल न देने की पुरज़ोर वकालत करने वालों के पास इस सवाल का भी जवाब नहीं कि आखिर बाहरी लोगों के लिए दरवाजे खोले किन्होंने थे? अब सब घुस आए तो पता चल रहा है कि ये तो पंचतंत्र की वो कथा हो गई जिसमें सांप आखिर में कुएं के सारे मेढ़क खा जाता है.

खैर कथा से बाहर निकल कर भी देखें तो बाहरी लोगों के सामने दरवाज़े खोलने वाले भी तो ज़िम्मेदार हैं. तीसरा स्तंभ न्याय के लिए चौथे स्तंभ के पास गया.

दरवाज़े तो खोल दिए पर देश के नागरिक बाहरी होकर बोलने लगे तो नागवार गुज़रे.

' हमने हवा के वास्ते खोली थी खिड़कियां!

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सारे जहां का शोर मेरे घर मे भर गया।'

जवाब कोई देने को तैयार नहीं. सबको अपनी बचाने की पड़ी है.

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