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रियो ओलंपिक: साइना नेहवाल का जोरदार स्मैश

विश्व की नंबर एक खिलाड़ी रह चुकीं साइना शीर्ष स्थान फिर से हासिल करने के लिए रियो, और एक नई जंग का इंतजार कर रही हैं.

साइना नेहवाल साइना नेहवाल
अमरनाथ के. मेनन
  • हैदराबाद,
  • 26 जुलाई 2016,
  • अपडेटेड 7:32 PM IST

साइना नेहवाल
26 वर्ष, बैडमिंटन
क्वालीफाइ कैसे कियाः बीडब्लूएफ की रैंकिंग में विश्व में नंबर 6 पर
उपलब्धियां: 2010 में वे विश्व में नंबर 2 खिलाड़ी बनीं, 2010 में उन्होंने कॉमनवेल्थ खेलों में स्वर्ण पदक जीता. 2015 में वे विश्व की नंबर 1 खिलाड़ी बनीं.

साइना नेहवाल को जिन कई सारी बातों के लिए जाना जाता है—नेट पर उनके खेल, उनके स्मैश, तिरंगी हेयरपिन—उनमें से सबसे ज्यादा चर्चा जिस बात के लिए होती है, वह है चीन को झेलने का उनका जुनून. भारत के इस पड़ोसी देश के खिलाड़ी उनके करियर की शुरुआत से ही हमेशा उनकी आंखों में चुभते रहे हैं. अब यह कोई हमारे पड़ोसी देश की साजिश तो नहीं है लेकिन हकीकत यही है कि चीन में लगातार अव्वल दर्जे के बैडमिंटन खिलाडिय़ों की नई पौध दुनिया से मुकाबले के लिए हमेशा खड़ी रहती है.

साइना अकेली खिलाड़ी रही हैं जिन्होंने चीन की इस बैडमिंटन ब्रिगेड का डटकर सामना किया है और कभी-कभी उसे परास्त भी किया है. इसी वजह से बैडमिंटन जगत में साइना की अलग पहचान बन गई है. ''साइना बनाम चाइना" की यही ख्यातिप्राप्त प्रतिस्पर्धा इस बार 2016 के ओलंपिक खेलों में फिर से उनकी किस्मत का फैसला करेगी. वे रियो में कम से कम 2012 के लंदन ओलंपिक खेलों का प्रदर्शन दोहराने की उम्मीद लेकर ही जा रही हैं, जहां उन्होंने कांस्य पदक जीता था. हालांकि उनकी भरसक कोशिश उससे भी दो मुकाम ऊपर पहुंचने की ही होगी.

पिछले चार साल में साइना का कद लगातार ऊंचा ही हुआ है. वे विश्व की नंबर एक खिलाड़ी भी बनीं, भले ही कुछ ही दिनों के लिए. लेकिन उन्होंने यकीनन विश्व बैडमिंटन पर अपना जादू तो छोड़ा ही है और इतना कुछ हासिल कर लिया है कि खेल से विदा लेने के बाद लंबे समय तक उनका नाम याद रखा जाएगा. लेकिन उनके लिए कांस्य से स्वर्ण पदक तक का सफर तय करना इतना आसान नहीं होगा. इस बात का एहसास खुद साइना को भी है. वे कहती हैं, ''चुनौतियां कई सारी हैं. जरूरत इस बात की है कि दिन हो, चाहे रात, हर वक्त सिर्फ बैडमिंटन के बारे में ही सोचा जाए."

विभिन्न व्यक्तिगत खेल स्पर्धाओं में ड्रॉ अक्सर बहुत अहम भूमिका निभा सकता है. इसलिए बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि उनका मुकाबला किससे किस दौर में होता है—खास तौर पर चीनी ताइपे की ताई त्जू-विंग से, जिनकी गुत्थी सुलझाना उनके लिए नई बड़ी पहेली बन गई है. साइना कहती हैं, ''लंदन ओलंपिक के बाद मैं नंबर एक खिलाड़ी बनी, विश्व चैंपियनशिप में रजत पदक जीता और कई ऐसे खिलाडिय़ों को हराया जिन्हें मैं पहले कभी नहीं हरा पाई थी. लेकिन अब एक चीनी ताइपे की एक नई गुत्थी सामने है—ताई त्जू-विंग. चीनियों से हर बार की तरह उलझने से पहले इस बार उनसे पार पाना मेरे लिए सबसे बड़ा काम होगा."

नेहवाल के त्जू-विंग से पिछले छह मुकाबले ताईवान की खिलाड़ी के हक में गए हैं. नेहवाल उन खिलाडिय़ों के खिलाफ अच्छा प्रदर्शन कर लेती हैं जिनका खेल वे समझ जाती हैं और फिर उनके सामने तैयारी से उतरती हैं. लेकिन त्जू-विंग के मामले में ऐसा नहीं हो पा रहा है. भारत की पूर्व अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी अपर्णा पोपट कहती हैं, ''त्जू-विंग का खेल उन्मुक्त प्रवाह वाला है, जिसका कोई एक तय रुख नहीं होता और उसमें अचानक से धोखा हो जाता है. साइना के लिए यह एक चुनौती है लेकिन वे उससे पार पा सकती हैं." अगर वे ऐसा कर लेती हैं तो दूसरा ओलंपिक मेडल उनकी पहुंच में होगा. पिछले ओलंपिक खेलों में पुलेला गोपीचंद उनके कोच थे, उसके बाद उन्होंने उसमें परिवर्तन करके विमल कुमार (दो बार के पूर्व फ्रेंच ओपन विजेता) को अपना कोच बनाया है. अपना ठिकाना भी उन्होंने हैदराबाद से बेंगलूरू कर लिया. साइना कहती हैं, ''यह बदलाव महत्वपूर्ण और जरूरी था. एक व्यक्तिगत ट्रेनर बहुत अहम होता है क्योंकि खेल के दौरान हर वक्त सुधार और बदलाव करते रहना जरूरी होता है."

गोपी राष्ट्रीय कोच भी हैं और उन्हें कई सारे खिलाडिय़ों पर निगाह रखनी होती है जिनमें बैडमिंटन में भारत की एक और बड़ी उम्मीद पी.वी. संधू भी शामिल हैं. फिर एक यह क्चयाल भी चल रहा था कि गोपी वह सब कुछ साइना को पहले ही दे चुके हैं जो वह साइना को इस मुकाम तक लाने के लिए कर सकते थे. यह सहजता से देखा जा सकता है कि वे उस अतिरिक्त फासले को लांघने के लिए पहले से कहीं ज्यादा मेहनत कर रही हैं. उनके ट्रेनिंग सत्र के एक वीडियो में उन्हें सामने पुरुष खिलाडिय़ों को खड़ा करके अञ्जयास करते देखा जा सकता था. यह इस बात की छोटी-सी झलक थी कि वे इस अनंतिम चुनौती को पार पाने के लिए खुद को शारीरिक रूप से तैयार करने के मकसद से किस हद तक जा रही हैं. रियो से पहले साइना को कई उपनाम मिल चुके हैं, जिनमें से एक भारत के शीर्ष पुरुष बैडमिंटन खिलाड़ी परुपल्ली कश्यप ने दिया था— ''बैडमिंटन की तेंडुलकर." साइना ने वाकई इतनी उपलब्धि हासिल कर ही ली है कि बैडमिंटन के संदर्भ में उन्हें यह कहकर पुकारा जा सके. अब क्या वह इसे विश्व स्तर पर एक नई ऊंचाई तक ले जा सकती हैं? यह सब इस पर निर्भर करेगा कि रियो में उनका प्रदर्शन कैसा रहता है.

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