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ऋषि कपूर कैंसर को हराकर अब अपनी अभिनय की दुनिया में लौट आए हैं. वो अपनी अधूरी फिल्म शर्माजी नमकीन को पूरी करने में लगे हैं. अपनी पत्नी नीतू सिंह कपूर के साथ जहां वो एक फिल्म करने जा रहे हैं वहीं उन्होंने तीन-चार और फिल्में साइन कर ली हैं. उनकी फिल्म द बॉडी रिलीज हो रही है. मुंबई में उन्होंने नवीन कुमार के साथ दिल खोलकर बात की.
द बॉडी के बारे में कुछ बताइए?
इसके बारे में कुछ नहीं बता सकता. क्योंकि, यह एक सस्पेंस थ्रिलर पिक्चर है. इतना बता सकता हूं कि मैं पुलिस अफसर का रोल कर रहा हूं. इसके आगे अगर मैं कुछ भी कहूंगा तो फिल्म की गुत्थी सुलझ जाएगी.
इसके डाइरेक्टर जीथू जोसेफ साउथ से हैं. ऐसे नए डाइरेक्टर की दुनिया में घुसना कितना आसान होता है आपके लिए?
मेरा घुल मिल जाना आसान होता है. बेसिकली, मैं डाइरेक्टर का ऐक्टर हूं. उनके सुर ताल में जुड़कर मैं काम करता हूं. हां, कुछ अड़ियल डाइरेक्टर होते हैं जिनके साथ काम करना मुश्किल होता है. लेकिन जीथू के साथ काम करने में मजा आया.
कहते हैं कि कपूर खानदान के खून में ऐक्टिंग है. इसमें आपको कितना विश्वास है?
यह एक मुहावरा है जिसे आपलोग गंभीरता से लेते हैं. अब देखिए, अभी तो मैं इलाज के लिए विदेश गया था और वहां कई बार मेरा खून बदला गया. तो क्या मैं कुछ और हो गया, नहीं न. मैं अब भी ऐक्टिंग ही कर रहा हूं. खून में कुछ नहीं होता.
आप कई दशकों से काम कर रहे हैं. हिंदी सिनेमा के बदलते हुए दौर को किस तरह से देखते हैं?
मैं 46 साल से काम कर रहा हूं. मेरे जमाने में मुझ पर रोमांटिक हीरो की छाप लग गई थी. बच्चन साहब एक्शन हीरो थे. उस दौर में विकी डोनर, बाला, अंधाधुन जैसी फिल्में देखने के लिए दर्शक तैयार नहीं थे. तब विकी डोनर बनती तो बैन हो जाती. लेकिन आज के दौर में दर्शक हर तरह की फिल्म देखने के लिए तैयार है.
यह बदलाव ऐक्टर की वजह से है?
ऐक्टर क्या बदलाव लाएंगे. उनका काम तो तीन घंटे में खत्म हो जाता है. इस क्रांतिकारी बदलाव में आज के पढ़े-लिखे लोग और युवा हैं जो सिनेमा और वक्त दोनों को समझते हैं. अपने जमाने में मैंने भी दूसरा आदमी, एक चादर मैली सी के अलावा दो-चार प्रोगेसिव फिल्में भी की थी. नहीं चली. उस वक्त मेरा नाम जोकर भी लोगों को समझ में नहीं आई थी. लेकिन आज मुल्क जैसी पिक्चर लोगों को खूब पसंद है.
मुल्क को लेकर आपके दिल में एक दर्द है?
बिल्कुल. इस फिल्म को राष्ट्रीय एकता के लिए नेशनल अवार्ड मिलना चाहिए था. लेकिन नहीं मिला. जब मैं मोदी साहब की किताब के लिए दिल्ली गया था तब वहां कुछ सांसदों और मंत्रियों ने मुझे बताया था कि इस फिल्म के डाइरेक्टर अनुभव सिन्हा भाजपा विरोधी हैं. इसलिए इसे भाव नहीं दिया गया. यह जानकर मुझे दुख हुआ कि कम से कम फिल्म को तो पॉलिटिकल मत करो.
अब जब मुल्क की बात निकलती है तो आपको कैसा महसूस होता है?
मुझे बहुत खुशी होती है जब कोई मुल्क की बात करता है. क्योंकि, यह फिल्म आज की जरूरत है. मुल्क में काम करके मुझे गर्व महसूस होता है.
आप पिता का रोल नहीं करना चाहते?
मैं फादर का रोल क्यों करूं. मैं अपनी उम्र के हिसाब से रोल करना चाहता हूं. मुझे खुशी है कि मैंने अमितजी के साथ 102 नॉट आउट फिल्म की. मैं ऐक्टर हूं और अब मैं अपनी उम्र के हिसाब से कैरेक्टर करना चाहता हूं. मैं मुद्दे वाली फिल्में करना चाहता हूं जिसमें कैरेक्टर की डिमांड रहती है. मुल्क में मैंने कैरेक्टर किया था.
आप अपने काम को देखकर क्या महसूस करते हैं?
डबिंग के समय ही देखता हूं. उसके बाद मैं अपनी फिल्में नहीं देखता. क्योंकि, मुझे समझ में आती नहीं है. इसलिए मैं रणबीर कपूर की भी फिल्में नहीं देखता हूं. हां, नीतू देखती हैं. उन्हें अच्छी और बुरी फिल्म समझ में आती है.
आपने राज कपूर के अलावा कई डाइरेक्टर के साथ काम किए हैं. बतौर डाइरेक्टर राज कपूर की क्या खासियत थी?
राज साहब अपने ऐक्टर से कैसे काम कराते थे इस पर मैं एक किताब लिख सकता हूं. वो एक्टर और डाइरेक्टर दोनों थे. उनकी सबसे बड़ी खासियत यह थी कि वो अपने ऐक्टर का कभी मजाक नहीं उड़ाते थे. काम के दौरान वो उनको फुसलाकर काम कराते थे. वो उनमें आत्मविश्वास पैदा करते थे. लेकिन दूसरे कई ऐसे डाइरेक्टर हैं जो अपने ऐक्टर का मजाक उड़ाते हैं. इससे ऐक्टर का कम फिल्म का ज्यादा नुकसान होता है.
आज के दौर में ऐसा कोई डाइरेक्टर है जिनके बारे में कह सकते हैं कि ये राज साहब की तरह हैं?
बेशक, राकेश रोशन. उऩको दाद देना चाहता हूं कि उन्होंने अपने बेटे ऋतिक रोशन के करियर को फिर से खड़ा किया. मैं कह सकता हूं कि वो आज के राज कपूर हैं.
क्या आप कोई बायोपिक करना चाहेंगे?
मैं बायोपिक के लिए टोटल जीरो हूं. मैं अगर करूंगा तो वह दुनिया की सबसे फ्लाप पिक्चर होगी. कारण यह है कि मैं नेचुरल ऐक्टर हूं. मैं किसी की नकल नहीं कर सकता. बायोपिक में नकल करनी पड़ती है. रणबीर ने संजू का कैरेक्टर प्ले किया था.
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