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पर्दे पर बेझिझक समलैंगिकता उतारने वाले इस डायरेक्टर ने जीते थे 12 नेशनल अवॉर्ड्स

अपने जीवन के अंतिम समय में रितुपर्णो घोष काफी अकेले पड़ गए थे. वे अकेले रहते थे. सिनेमा की चकाचौंध के बावजूद, इतना नाम कमाने के बावजूद उनकी पर्सनल लाइफ में कुछ भी नहीं था.

रितुपर्णो घोष रितुपर्णो घोष
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 30 मई 2020,
  • अपडेटेड 9:05 AM IST

रितुपर्णो घोष सिनेमा जगत का एक बड़ा नाम माने जाते रहे हैं. उन्होंने कई सारी फिल्में ऐसी बनाईं जिनके लिए वे नेशनल अवार्ड से भी नवाजे गए. रितुपर्णो घोष को देश के सबसे सफल फिल्म निर्देशकों में शुमार किया जाता है. LGBTQ कॉम्युनिटी और उनके राइट्स को भी रितुपर्णो ने अपनी फिल्मों के जरिए रेखांखित करने की कोशिश की और इसमें वे सफल भी रहे. वे बेबाकी से समलैंगिक इशूज पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते थे.

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रितुपर्णो के लिए उनका जीवन हमेशा एक पहेली जैसा रहा. वे अपनी आइडेंटटी को लेकर कन्फ्यूज रहे. मगर उन्होंने अपनी तरफ से इस बात को कुबूला कि वे क्वीर (Queer) हैं और बेबाकी से अपनी राय रखी. धीरे-धीरे वे इंडस्ट्री में LGBTQ कॉम्युनिटी का लीडिंग चेहरा बन गए और उनसे जुड़े विषयों पर फिल्में बनाने लगे. इन फिल्मों में उन्होंने खुद भी एक्टिंग की और LGBTQ कैरेक्टर्स प्ले किए.

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Arekti Premer Golpo नाम की बंगाली फिल्म साल 2010 में रिलीज हुई थी. इस फिल्म में रितुपर्णो ने एक गे फिल्ममेकर का रोल प्ले किया था. फिल्म का निर्देशन कौशिक गांगुली ने किया था. फिल्म को नेशनल अवार्ड भी मिला था. इसके अलावा उन्होंने चित्रांगदा नाम की फिल्म बनाई थी, जो साल 2012 में रिलीज हुई थी. फिल्म का लेखन और निर्देशन दोनों ही रितुपर्णो ने किया था. इसके अलावा वे फिल्म में एक्टिंग करते भी नजर आए थे. फिल्म में वे एक ऐसे कोरियोग्राफर के रोल में नजर आए थे जो अपनी आइडेंटिटी को लेकर कन्फ्यूज रहता है. बहुत लोगों का मानना था कि ये फिल्म उन्होंने खुद अपनी रियल लाइफ से प्रेरित होकर बनाई थी.

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तन्हाई में बीता जीवन

अपने जीवन के अंतिम समय में वे काफी अकेले पड़ गए थे. वे अकेले रहते थे. सिनेमा की चकाचौंध के बावजूद, इतना नाम कमाने के बावजूद उनकी पर्सनल लाइफ में कुछ भी नहीं था. लोग भी काफी हैरान रहते थे कि कभी मर्दों जैसे दिखने वाले पैंट शर्ट पहनने वाले रितुपर्णो लड़कियों की सी वेशभूषा में नजर आने लग गए थे. वे सलवार कमीज पहनते और दुपट्टा भी लगाए रहते. उन्होंने अपने करीबियों से बातचीत करनी बंद कर दी थी. 30 मई, 2013 को उनका निधन हो गया. उन्हें डायबेटीज टाइप 2 थी और वे इनसॉमनिया का भी इलाज करा रहे थे.

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