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केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने राज्य मोटर वाहन (संशोधन) अधिनियम, 2019 के नियमों का पालन नहीं करने वाले राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाने की चेतावनी दी है. केंद्र का कहना है कि यातायात के संशोधित नियमों के खिलाफ जाकर जुर्माना वसूलने वाले राज्यों के पास ऐसा करने का अधिकार नहीं है. अगर कोई राज्य सरकार नियमों के खिलाफ जाकर जुर्माने की राशि को घटाती है तो इसे संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन मानते हुए केंद्र वहां राष्ट्रपति शासन भी लगा सकता है.
केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने सोमवार को कहा कि कोई भी राज्य मोटर वाहन (संशोधन) अधिनियम, 2019 के वैधानिक प्रावधानों के तहत तय किए गए जुर्माने की उसकी निर्धारित सीमा से कम नहीं कर सकता है.
मंत्रालय ने कहा कि कोई भी कानून किसी भी राज्य सरकार द्वारा तब तक लागू नहीं किया जा सकता है जब तक कि उसे भारत के राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त न हो.
मंत्रालय ने राज्यों को भेजे अपने परामर्श में कहा है कि मोटर वाहन (संशोधन) अधिनियम 2019 संसद से पारित कानून है. राज्य तय जुर्माने की सीमा को घटाने को लेकर कोई कानून पास नहीं कर सकता है और न ही कार्यकारी आदेश जारी कर सकता है.
कई राज्यों द्वारा कुछ मामलों में जुर्माने की राशि को कम करने के बाद परिवहन मंत्रालय ने इस मुद्दे पर कानून मंत्रालय से सलाह मांगी थी. क्योंकि सितंबर 2019 से लागू नए मोटर वाहन एक्ट में यातायात नियमों के उल्लंघन पर प्रावधानों को कड़ा किया गया है.
न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक मंत्रालय ने परामर्श में कहा, 'अटॉर्नी जनरल का मानना है कि मोटर वाहन अधिनियम को 2019 में संशोधित किया गया है. यह एक संसदीय कानून है और राज्य की सरकारें इसमें तय जुर्माने की सीमा को कम करने के लिए तब तक कानून पारित या कार्यकारी आदेश जारी नहीं कर सकती हैं जब तक कि वह संबंधित कानून पर राष्ट्रपति की सहमति नहीं प्राप्त कर लें.'
सरकार ने इस बात की जानकारी दी थी कि गुजरात, कर्नाटक, मणिपुर और उत्तराखंड ने केंद्र द्वारा संशोधित किए गए कानून के खिलाफ जाकर कुछ अपराधों के मामले में जुर्माने की रकम को कम किया था.
राष्ट्रपति शासन
बता दें कि राष्ट्रपति शासन से जुड़े प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 356 में दिए गए हैं. आर्टिकल 356 के मुताबिक राष्ट्रपति किसी भी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा सकते हैं यदि वे इस बात से संतुष्ट हों कि राज्य सरकार संविधान के विभिन्न प्रावधानों के मुताबिक काम नहीं कर रही है.
ऐसा जरूरी नहीं है कि राष्ट्रपति उस राज्य के राज्यपाल की रिपोर्ट के आधार पर ही यह फैसला लें. यह अनुच्छेद एक साधन है जो केंद्र सरकार को राज्य सरकार पर अपना अधिकार स्थापित करने में सक्षम बनाता है.
संविधान में इस बात का भी उल्लेख है कि राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के दो महीनों के अंदर संसद के दोनों सदनों द्वारा इसका अनुमोदन किया जाना जरूरी है. यदि इस बीच लोकसभा भंग हो जाती है तो इसका राज्यसभा द्वारा अनुमोदन किए जाने के बाद नई लोकसभा द्वारा अपने गठन के एक महीने के भीतर अनुमोदन किया जाना जरूरी है.