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पश्चिमी उत्तर प्रदेश में धर्मांतरण या ‘घर वापसी’ की कमान संभाल रहा राजेश्वर सिंह नाम का शख्स समझौता एक्सप्रेस और मक्का मस्जिद विस्फोट के कथित मास्टरमाइंड स्वामी असीमानंद और सुनील जोशी समेत अन्य को जानता था. आरएसएस से संबद्ध धर्मांतरण कराने वाले संगठन धर्म जागरण मंच के प्रमुख राजेश्वर सिंह अब दोनों विस्फोट कांडों में गवाह हैं. गौर तलब है कि धर्मांतरण के मुद्दे पर देश भर में बवाल मचा हुआ है.
राजेश्वर सिंह ने मई 2007 के मक्का मस्जिद विस्फोट कांड के संबंध में पहले अपना बयान केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआइ) को दिया और उसके बाद फरवरी 2007 में दिल्ली-लाहौर समझौता एक्सप्रेस विस्फोट कांड पर अपना बयान राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) को दर्ज करवाया है.
समझौता एक्सप्रेस और मक्का मस्जिद के अलावा जोशी और असीमानंद के नेतृत्व वाला मॉड्यूल मालेगांव (महाराष्ट्र), अजमेर दरगाह (राजस्थान) और मोडासा (गुजरात) में हुए धमाकों के लिए भी जिम्मेदार है. बाद में जोशी की उसी के आदमियों ने मध्य प्रदेश के देवास में दिसंबर 2007 में कथित रूप से हत्या कर दी जबकि असीमानंद को सीबीआइ ने नवंबर 2010 में गिरफ्तार कर लिया था.
अपने बयान में राजेश्वर सिंह ने यह भी बताया है कि वह कर्नल श्रीकांत पुरोहित से मिले थे जो फिलहाल 2008 के मालेगांव धमाकों के सिलसिले में सलाखों के पीछे है.
राजेश्वर का दावा है कि उन्होंने “अब तक उत्तर प्रदेश के कई जिलों में 20,000 मुसलमानों का धर्मांतरण” करवाया है. इस बार अलीगढ़ में प्रस्तावित सामूहिक ‘घर वापसी’ कार्यक्रम के चलते वह राष्ट्रीय चर्चा में आया. यह कार्यक्रम अब टाल दिया गया है.
चेहरे पर खिन्न भाव के साथ उन्होंने 16 दिसंबर को अलीगढ़ में इंडिया टुडेसे कहा, “मैं मुक्त कर दिया गया हूं; जो पूछना हो पूछिए.” धर्मांतरण कार्यक्रमों के अपने अतीत का हवाला देते हुए 12वीं तक पढ़ाई किए राजेश्वर सिंह ने बताया, “1996 में हमारा काम ‘परावर्तन’ के नाम से शुरू हुआ था. इसे 1997 में घर वापसी का नाम दिया गया. मैं इस क्षेत्र में काम करने वाला पहला संघ प्रचारक हूं.”
राजेश्वर सिंह का दावा है कि उन्होंने अलीगढ़ को इसलिए चुना क्योंकि यहां मुसलमानों (20 फीसदी से ज्यादा) और ईसाइयों की संख्या बहुत ज्यादा है. उनका कहना है कि “चूंकि जिले में करीब 60 फीसदी मुसलमान राजपूत हैं, जिन्होंने धर्म बदल लिया था, इसलिए उसने जब उन्हें दोबारा परावर्तित करने का फैसला किया तो वे (नकारात्मक) प्रतिक्रिया पर उतर आए.” यह पूछे जाने पर कि उन्हें किसने रोका, राजेश्वर सिंह ने बचाव में कहा, “इस बारे में खुलासा करना ठीक नहीं. क्षेत्र प्रचारक ने सीधे मुझसे कहा था. उन्होंने मुझसे कहा कि काफी दबाव है, इसलिए अभी इसको छोड़ दो. मैं राजी हो गया.”
उनका अंदाजा है कि “किसी कमजोर दिल वाले नेता” ने अलीगढ़ का आयोजन “मुसलमानों..., आइएसआइ द्वारा हत्या किए जाने के डर से” रद्द करवा दिया. उनका कहना था कि यह एक बड़ा झटका है, और फिर उसने वही जहरीली भाषा दोबारा इस्तेमाल की जिसके लिए वे कुख्यात रहे हैं, “लेकिन जब हम लौटेंगे तो हम बदला लेंगे. हमारा उद्देश्य इस्लाम और ईसाइयत को खत्म कर देना है, और 31 दिसंबर 2021 भारत में दोनों धर्मों का आखिरी दिन होगा.”
पहले भी उन्होंने ऐसी ही बातें कही हैं. अपने 2011 के एक बयान में उन्होंने कहा था, “मैं 2006 में शबरी कुम्भ (स्वामी असीमानंद के आयोजन वाला) में गया था. वहां यह तय हुआ कि वीर सावरकर के 1930 में निर्मित अभिनव भारत संगठन को दोबारा जिंदा करना है. यह महसूस किया गया था कि वक्त की जरूरत है कि मुस्लिम कट्टरपंथियों पर हिंदू प्रार्थनास्थलों में पलटवार किया जाए और उन्हें माकूल जवाब दिया जाए.”