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संघ को चाहिए ''अपनी" शिक्षा पद्धति

केंद्र और ज्यादातर राज्यों में भगवा विचारों की सरकारों के मद्देनजर बदलाव के लिए अनुकूल समय मानकर शिक्षा पद्धति और तंत्र को पूरी तरह से अपने विचारों के अनुरूप ढालने में जुटा संघ परिवार.

संघ के एक समारोह में शिरकत करते बच्चे संघ के एक समारोह में शिरकत करते बच्चे
संतोष कुमार
  • नई दिल्ली,
  • 17 अप्रैल 2017,
  • अपडेटेड 4:16 PM IST

भारत की ज्ञान परंपरा और शिक्षा पद्धति पर चिंतन होता रहा है. लेकिन एक कालखंड (मुगल-अंग्रेज शासनकाल) में अनुकूल वातावरण न होने से यह बंद हो गया. 500 साल पश्चात अब खुलकर चर्चा हो रही है तो समाज को आगे आना पड़ेगा क्योंकि भारतीय समाज ही परिवर्तन ला सकता है." राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत दिल्ली में 25-26 मार्च को दो दिवसीय ज्ञान संगम में बोल रहे थे. उनका संदेश स्पष्ट था कि भाजपा के राजनैतिक वर्चस्व के इस दौर में राष्ट्रवाद की भगवा सोच को भी उसी तीव्र गति से बढ़ाया जाए. आनुषंगिक संगठन प्रज्ञा प्रवाह के इस आयोजन ने संघ को सुखद एहसास कराया है और अपने एजेंडे पर आगे बढऩे की ऊर्जा दी है. वजह यह कि किसी संघ प्रायोजित बैठक में शायद पहली दफा देशभर से लगभग 700 प्रोफेसर, असिस्टेंट प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और 51 कुलपतियों ने शिरकत की.

दरअसल संघ शिक्षा पद्धति में आमूल-चूल बदलाव कर उसे भगवा विचारों में रंगना चाहता है. इसके लिए सुव्यस्थित रणनीति के साथ पहल हो रही है. बैठक के मकसद को लेकर संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख मनमोहन वैद्य कहते हैं, ''भारतीय मेधा को उपनिवेशवादी मानसिकता से मुक्त कराने की आवश्यकता है और इसकी शुरुआत शिक्षा से होनी चाहिए. शिक्षा के उद्देश्य, विषय-वस्तु और व्यवस्था में भारतीयता होनी चाहिए. संघ मानता है कि समाज में स्थायी परिवर्तन सत्ता से नहीं, बल्कि समाज के द्वारा ज्यादा प्रभावी होता है."

संघ की इस पहल के पीछे उसका दर्द भी है. हाल के वर्षों में रोहित वेमूला प्रकरण, जेएनयू में कन्हैया प्रकरण, पश्चिम बंगाल में जाधवपुर विवि की घटना और बिहार चुनाव से ठीक पहले असहिष्णुता के खिलाफ बुद्धिजीवियों की अवार्ड वापसी के झटकों ने भगवा ब्रिगेड को हिला दिया था. संघ का मानना है कि मोदी सरकार के आने के बाद वामपंथियों ने विश्वविद्यालयों को कमजोर कड़ी के तौर पर चुना, जहां अभी भी उनका वर्चस्व है और एनजीओ वाले उनके साथ खड़े दिखते हैं. संघ ने जेएनयू प्रकरण के बाद ही अपनी इस सोच को धार देनी शुरू की.

पिछले साल 22-23 मार्च को संघ-बीजेपी के शीर्ष स्तरीय चुनिंदा रणनीतिकारों ने दिल्ली के हरियाणा भवन में नए बौद्धिक आंदोलन का खाका तैयार किया. इसमें तय किया गया कि वामपंथी वर्चस्व को चुनौती बौद्धिक तरीकों से ही दी जा सकती है. संघ की ओर से तत्कालीन अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख जे. नंदकुमार को बुद्धिजीवियों की जमात खड़ा करने का जिम्मा सौंपा गया. फिर केंद्रीय आयुष मंत्री श्रीपद नाईक के सरकारी आवास के पिछले हिस्से में बाकायदा इसके लिए कार्यालय बनाया गया. वहां मुख्य तौर से तीन विषय- समाज विज्ञान, इतिहास, राजनैतिक विज्ञान से जुड़े अध्यापकों पर फोकस किया गया. विचारधारा से जुड़े या उसके करीब वाले शिक्षकों को चुनने का काम शुरू हुआ.

ज्ञान संगम में मंथन
संघ का मानना है कि भारतीय शिक्षा पद्धति पर अंग्रेजियत और वामपंथ का वर्चस्व है इसलिए भाजपा के सत्ता में आने से बने अनुकूल माहौल में परिवर्तन की पहल करनी चाहिए. संघ ने प्राथमिक और कुछ जगहों पर माध्यमिक शिक्षा के लिए सरस्वती शिशु मंदिर और विद्या भारती के जरिए संस्कारित शिक्षा की पहल 1950 के दशक में ही कर दी, लेकिन उच्च शिक्षा में उसकी कोई खास पैठ नहीं रही. केंद्र में पहली एनडीए सरकर में मानव संसाधन मंत्री मुरलीमनोहर जोशी ने पहल की तो भगवाकरण का आरोप लगा. इसलिए संघ ने ज्ञान प्रवाह नाम से संस्था बनाई जो पहले छोटे स्तर पर काम रही थी. लेकिन अनुकूल राजनैतिक माहौल से संघ की सोच कुलांचे भरने को तैयार है. इसलिए 19-21 मार्च को कोयंबतूर में संपन्न हुई अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में संघ ने अपने वरिष्ठ प्रचारक जे. नंदकुमार को सह प्रचार प्रमुख से मुक्त कर ज्ञान प्रवाह का राष्ट्रीय संयोजक बना दिया.

संघ इस ज्ञान संगम को लेकर कितना गंभीर है, इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि खुद सरसंघचालक मोहन भागवत दोनों दिन बैठक में मौजूद रहे और खुला संवाद किया और संघ के शिक्षा क्षेत्र से जुड़े तमाम संगठनों के प्रमुख नेताओं ने भी इसमें हिस्सा लिया. संघ के सह सरकार्यवाह सुरेश सोनी ने बैठक में बीज वक्तव्य रखा, जिसमें उन्होंने भारतीयता से परिचय कराने की कोशिश की. सोनी ने कहा, ''भारत की शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह से आध्यात्म आधारित रही है. आर्थिक उपार्जन आवश्यक है लेकिन वह सिर्फ जीवन जीने के लिए है. आध्यात्म के आधार पर ही राष्ट्र का उत्थान हो सकता है. दुनिया के अन्य देश भी अपनी संस्कृति को बढ़ावा दे रहे हैं." उसके बाद एस. गुरुमूर्ति ने भारतीय अर्थचिंतन की भारतीय दृष्टि पर विचार रखा तो अमेरिका से आए प्रो. वेद पी. नंदा और मनोहर शिंदे ने एक सत्र में विचार रखे. 

विचारों के आदान-प्रदान की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए दर्जन भर विषयों के हिसाब से प्रतिभागियों को समूहों में बांट दिया गया. उसके बाद समूहों को दो हिस्सों में बांटकर सीधे मोहन भागवत से संवाद का कार्यक्रम हुआ. इस संवाद में भागवत से एक रोचक सवाल किया गया. सत्ता भी है और समय भी अनुकूल है, ऐसे में देश स्वाभिमान के साथ क्यों खड़ा नहीं हो पा रहा? इस पर भागवत ने मुस्कराते हुए मुंबई प्रवास के दौरान भारत-इंग्लैंड क्रिकेट मैच का वाकया साझा किया. कमेंट्री सुन रहे लोग पहले इंग्लैंड की जीत की बात कर रहे थे. लेकिन भारत जीता और कमेंटेटर के सवाल पर नवजोत सिंह सिद्धू ने कहा कि हमारे हर खिलाड़ी जीत के लिए खेल रहे थे.

भागवत ने कहा कि अगर खिलाड़ी भारत के लिए खेलेगा तो जीतेगा ही, इसलिए सरकार पर आश्रित होने की बजाए समाज को परिवर्तन करना चाहिए. उन्होंने यहां तक कहा कि सरकार समाज में परिवर्तन नहीं कर सकती लेकिन समाज चाहे तो सरकार में परविर्तन जरूर कर सकता है. सूत्रों के मुताबिक, ज्ञान संगम में संघ के सह सरकार्यवाह और भाजपा तथा सरकार के बीच समन्वय का काम देख रहे कृष्ण गोपाल ने 51 कुलपतियों के साथ अलग से भी बैठक की. इसमें पूर्व मानव संसाधन विकास मंत्री मुरली मनोहर जोशी और एबीवीपी से सुनील आंबेकर भी मौजूद थे.

भविष्य की भगवा योजना
ऐसे आयोजनों के पीछे संघ की आवधारणा है कि मुगलों और तुर्कों ने मंदिरों और भारतीय शिक्षा के केंद्रों पर प्रहार किया तो अंग्रेजों ने ऐसी शिक्षा व्यवस्था विकसित की जिसने आस्था को खत्म किया. वही उपनिवेशवादी सोच आज भी भारतीयों को कुछ नया करने में बाधक साबित हो रही है. इसलिए जरूरत है कि भारतीय सभ्यता और ज्ञान के केंद्रों का पुनरुद्धार किया जाए. इस संकल्पना पर संघ परिवार लगातार काम कर रहा है (देखेः ग्राफिक्स). संघ की सोच शिक्षा में बदलाव के जरिए वामपंथी विचारधारा के उलट एक ऐसी दक्षिणपंथी विचारधारा (जिसे संघ राष्ट्रवादी कहता है) का दबाव समूह खड़ा करने की है, जो भगवा विचारों की सरकार नहीं होने पर भी एक मजबूत दबाव समूह के रूप में काम करे.

समान विचारों वाले शिक्षकों को जोडऩे के अलावा संघकी रणनीति लेखन और कला के दूसरे क्षेत्रों में भी पहल करने की है. लेखकों से कहा गया है कि दर्जन भर विषयों पर किताबें और आलेख लिखते वक्त संदर्भ सूची में समविचारी किताबों का उल्लेख जरूर करें. थियेटर में ''उड़ान" नामक समूह भी तैयार किया गया है. फिर, मोदी सरकार को वामपंथी बुद्धिजीवियों से मिलने वाली चुनौती को अपनी विचारधारा वाले बुद्धिजीवियों के माध्यम से जवाब देना भी है. नंदकुमार को इसकी जिम्मेदारी देने के पीछे वजह भी यही है कि वे केरल में वामपंथियों से लोहा लेते रहे हैं. इसके अलावा संघ की रणनीति अनूकूल माहौल वाले विश्वविद्यालयों-स्कूलों में अपनी विचारधारा से जुड़ी पुस्तकों को ज्यादा से ज्यादा समावेश कराने की है.

इस बौद्धिक मुहिम को संघ की ओर से शीर्ष स्तर कृष्ण गोपाल खुद देख रहे हैं. इसलिए सूत्रों की मानें तो ज्ञान संगम में सबसे उत्तेजक संबोधन उन्हीं का रहा. कृष्ण गोपाल ने कहा, ''एक समय था जब ह्वेन सांग जैसे विदेशियों ने भारत के बारे में अच्छा लिखा कि यहां लोग समृद्ध हैं. लेकिन रूडयार्ड किपलिंग जैसे लोगों को लिखना पड़ा कि भारतीय असभ्य हैं." उनका इशारा था कि यह सब ईसाई मिशनरी और चर्च के डिजाइन के तहत किया गया, इसलिए अब इतिहास को खंगालने की जरूरत है क्योंकि भारतीय इतिहास को शिकारियों ने लिखा है, शेर ने खुद नहीं.

सूत्रों के मुताबिक, उन्होंने बौद्धिक मुहिम के लिए मंत्र दिएः हर विषय में अपने लोगों की पहचान करो, विषयवार समूह तैयार करो, किताब-लेख लिखते वक्त भारतीय विचार की संदर्भ सूची बनाओ, विश्वविद्यालय में जहां अनुकूल माहौल है वहां अपनी किताब लगवाओ. कृष्ण गोपाल ने कहा कि भारत में भारतीय संदर्भों से ही शिक्षा को बढ़ाना चाहिए. संघ ने तय किया है कि ऐसे ही ज्ञान संगम देश के छह शहरों चंडीगढ़, जयपुर, काशी, भोपाल, कोलकाता, बेंगलूरू में किया जाएगा.

अब भगवा ब्रिगेड ने सधी हुई रणनीति के साथ बुद्धिजीवियों का समूह खड़ा करने और शिक्षा के भारतीयकरण की मुहिम को रफ्तार देने का फैसला कर लिया है.

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