
अभी नहीं तो कभी नहीं की स्थिति केरल में आरएसएस के लिए है. 2019 के लोकसभा चुनाव पर नजर रखते हुए संघ अपने कैडर में भारी वृद्धि के प्रयास में है. लक्ष्य है 9,00,000 हिंदुओं को शामिल कराना.
दूसरे परिप्रेक्ष्य से देखें तो, केरल में अभी आरएसएस का आधार 4,500 शाखाएं और 30,000 सक्रिय कार्यकर्ता हैं. (गुजरात जैसे बीजेपी के गढ़ की तुलना में, जहां 1,000 शाखाएं हैं). यह मजबूत आधार पार्टी के लिए कारगर रहा है (2016 के विधानसभा चुनावों में पार्टी को करीब 11 प्रतिशत और एनडीए को और 15 प्रतिशत वोट मिले).
आरएसएस के प्रांत सह कार्यवाह एम. राधाकृष्णन कहते हैं कि ''केरल में शिक्षित युवाओं का सकारात्मक रुख प्रेरित करने वाला है. अनेक युवा चिंतकों ने आरएसएस में शामिल होने में रुचि दिखाई है. यह हमारे लिए एक नई घटना है.'' उन्होंने जोर देकर यह भी कहा कि संघ इसे आंकड़ों का खेल नहीं बना रहा है. आरएसएस थिंक टैंक का मानना है कि जिस समय राज्य में इस्लामी कट्टरवाद के पंख फैलाने की रिपोर्ट हैं और अल्पसंख्यक तुष्टीकरण के कारण बहुसंख्यकों में भय आ गया है, तो ये समय बिल्कुल सही है. आरएसएस के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं ''जब माकपा-आरएसएस के संघर्ष चल रहे हैं और कट्टरपंथी इस्लामी समूह लव जिहाद के जरिए हिंदुओं का धर्मांतरण कर रहे हैं, तो संघ को केरल में जवाबी लड़ाई का नेतृत्व करना होगा. हम बड़े पैमाने पर संपर्क कार्यक्रम शुरू कर रहे हैं'' सत्तारूढ़ माकपा शत्रु शिविर के इस घटनाक्रम पर नजर रखे है. फिलहाल, उसका मानना है कि ये अभियान सिर्फ प्रचार है, जो 'मोदी और शाह का एक दिवास्वप्न है'. पूर्व विधायक और उत्तरी केरल के एक शक्तिशाली नेता पी. जयराजन ने इंडिया टुडे से कहा, ''हम जरा भी परेशान नहीं हैं. इस प्रकार का प्रचार मीडिया में संघ के संगी-साथियों ने पैदा किया है. जब उनके संगठन भ्रष्टाचार के आरोपों में डूब रहे हैं, तो आरएसएस या बीजेपी में शामिल कौन होगा? उनकी कोई राजनैतिक विश्वसनीयता ही नहीं है.''